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    Home»विशेष»आजाद भारत में जमींदारी तो खत्म हो गयी, लेकिन पैदा हो गया वक्फ बोर्ड
    विशेष

    आजाद भारत में जमींदारी तो खत्म हो गयी, लेकिन पैदा हो गया वक्फ बोर्ड

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 9, 2024No Comments15 Mins Read
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    विशेष
    कांग्रेस की सरकारों ने प्रदान की असीमित शक्तियां, बता डाला 1500 साल पुराने मंदिर को अपना
    पूरे देश में नौ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन, समा जाये तीन दिल्ली
    सेना और रेलवे के बाद तीसरी सबसे बड़ी संस्था है वक्फ बोर्ड

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    स्वतंत्र भारत में जमींदारी तो खत्म हो गयी, लेकिन पैदा हो गया एक मजहबी जमींदार, जिसे वक्फ बोर्ड के नाम से जाना जाता है। रेल और सेना के बाद वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमींदार है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसके पास पूरे देश भर में नौ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है, यानी तीन दिल्ली उसमें समा जाये। वक्फ बोर्ड को मिली असीमित शक्तियों पर अंकुश लगाने और बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता के लिए मोदी सरकार ने लोकसभा में गुरुवार को वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया। बिल को पेश किया संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने। जैसे ही ये बिल सदन के पटल पर रखा गया, कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, सपा समेत प्रमुख विपक्षी दलों ने विधेयक का विरोध किया। वहीं एनडीए में शामिल जेडीयू ने बिल का सपोर्ट कर दिया है। इस बिल के सदन में पेश होते ही देश की सबसे बड़ी और ताकतवर मुस्लिम संस्था वक्फ बोर्ड एक बार फिर से चर्चा में है। कैसे वक्फ बोर्ड मनमानी कर रहा है, उसके कई उदाहरण भी सदन में किरेन रिजिजू ने सामने रखे। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड पर माफियाओं ने कब्जा कर लिया है। आम लोगों के हित में यह बिल लाना जरूरी है। कांग्रेस शासनकाल में वक्फ बोर्ड को दी गयी असीमित शक्तियों को लेकर मोदी सरकार अब वक्फ बोर्ड पर लगाम लगाना चाहती है। इससे संपत्तियों के दुरूपयोग पर रोक लगाने की कोशिश होगी। देश भर में 8.7 लाख से अधिक संपत्तियां, कुल मिला कर लगभग 9.4 लाख एकड़ वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में हैं। समझने वाली बात है कि एक बार अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गयी, तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। कैसे मिली वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां, कैसे लगातार इजाफा होता चला गया इसकी संपत्ति में, कैसे गांव के गांव और मंदिरों पर कब्जा जमा रहा है वक्फ बोर्ड, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    भारत में वक्फ की शुरूआत दिल्ली सल्तनत से हुई। एस अतहर हुसैन और एस खालिद राशिद की किताब ‘वक्फ लॉज एंड एडमिनिस्ट्रेशन इन इंडिया’ (1968) में कहा गया है कि सुल्तान मुइजुद्दीन सैम घावोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव दिये थे। जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत थी, तब भी वक्फ की संपत्ति को लेकर खूब विवाद हुआ। यह विवाद इतना बढ़ा कि लंदन स्थित प्रीवी काउंसिल तक जा पहुंचा। चार ब्रिटिश जजों ने वक्फ को अवैध करार दिया था। मगर, उनके फैसले को तत्कालीन ब्रिटिश भारत की सरकार ने नहीं माना। मुसलमान वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट, 1913 के जरिये वक्फ को बचा लिया गया।

    तीन दिल्ली जितनी जमीन है वक्फ के पास, सेना और रेलवे के बाद तीसरी सबसे बड़ी संस्था
    कांग्रेस के शासनकाल में वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां प्रदान की गयी थीं। वक्फ एक्ट नियमों के मुताबिक एक बार जब कोई जमीन वक्फ के पास चली जाती है, तो उसे पलट नहीं सकते। भारत के वक्फ के पास सबसे ज्यादा संपत्ति है। दुनिया के किसी भी देश में वक्फ बोर्ड के पास इतनी शक्तियां नहीं हैं, जितनी भारत में दी गयी हैं। साल 2022 में देश के तत्कालीन केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में बताया था कि देश में वक्फ बोर्ड के पास कुल कितनी संपत्ति है। इस जवाब के अनुसार, वक्फ बोर्ड के पास देश में कुल 7 लाख 85 हजार 934 संपत्तियां हैं। वहीं सबसे ज्यादा संपत्ति की बात करें तो यूपी में है। उत्तरप्रदेश में वक्फ बोर्ड के पास कुल 2 लाख 14 हजार 707 संपत्तियां हैं। इन संपत्तियों में से 1 लाख 99 हजार 701 सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास हैं और 15006 शिया वक्फ बोर्ड के पास हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर बंगाल है। पश्चिम बंगाल में वक्फ बोर्ड के पास 80 हजार 480 संपत्तियां हैं। कहा गया कि कांग्रेस सरकार में किये गये संशोधनों की वजह से वक्फ बोर्ड हाल के दिनों में भू-माफिया की तरह व्यवहार कर रहा है, जिसमें निजी संपत्ति से लेकर सरकारी भूमि तक और मंदिर की भूमि से लेकर गुरुद्वारों तक की संपत्ति पर कब्जा कर रहा है। मूल रूप से, वक्फ के पास पूरे भारत में लगभग 52,000 संपत्तियां थीं। 2009 तक, 4 लाख एकड़ में फैली 300,000 पंजीकृत वक्फ संपत्तियां थीं। पिछले 15 साल में यह दोगुनी हो गयी हैं। वर्तमान में वक्फ बोर्डों के पास करीब 9 लाख 40 हजार एकड़ में फैली करीब 8 लाख 72 हजार 321 अचल संपत्तियां हैं। चल संपत्ति 16,713 हैं, जिनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये बतायी जा रही है। सोचिये शुरूआत में मूल रूप से पूरे भारत में वक्फ बोर्ड के पास लगभग 52 हजार संपत्तियां थीं। लेकिन आज इसमें अप्रत्याशित इजाफा देखा जा सकता है। सबसे ज्यादा संपत्ति उत्तरप्रदेश में है। यूपी में वक्फ के पास कुल 2 लाख 14 हजार 707 संपत्तियां हैं। इसमें से 1 लाख 99 हजार 701 सुन्नी और 15006 शिया के पास है। इसके बाद बंगाल में वक्फ के पास 80 हजार 480 और तमिलनाडु में 60 हजार 223 संपत्तियां हैं। जमीन के मामले में वक्फ बोर्ड सेना और रेलवे के बाद तीसरी सबसे बड़ी संस्था है। दिल्ली का कुल एरिया करीब 3.6 लाख एकड़ है, जबकि वक्फ बोर्ड के पास 9 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है।

    कैसे काम करता है वक्फ बोर्ड
    वक्फ का मतलब होता है ‘अल्लाह के नाम’, यानी ऐसी जमीन, जो किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है। आमतौर पर वक्फ की संपत्ति या इससे होनेवाली आमदनी को शैक्षणिक संस्थाओं, कब्रिस्तानों, मस्जिदों में धर्मार्थ और अनाथालयों में खर्च किया जाता है। वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन का लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ। वक्फ बोर्ड मुस्लिम समाज की जमीनों पर नियंत्रण रखने के लिए बनाया गया था। इन जमीनों के बेजा इस्तेमाल को रोकने और गैर-कानूनी तरीकों से बेचने पर रोक के लिए बनाया गया था। वक्फ बोर्ड देशभर में जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। इन मजारों और आसपास की जमीनों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है। चूंकि 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताये कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है, तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है। सारे कागज और सबूत उसे देने हैं, जो अब तक दावेदार रहा है। कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास जमीन का पुख्ता कागज नहीं होता है। वक्फ बोर्ड इसी का फायदा उठाता है, क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है।

    चाचा नेहरू ने 1954 में बनाया वक्फ एक्ट
    आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में वक्फ एक्ट बनाया, जिसका काम वक्फ का केंद्रीकरण करना था। इसी एक्ट के तहत सरकार ने 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन किया। 1995 में कानूनों में बदलाव किया गया। हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गयी। वक्फ की प्रॉपर्टी को लेकर किसी मामले में सेंट्रल वक्फ काउंसिल केंद्र को सलाह देती है। किसी विवाद की स्थिति में वक्फ प्रॉपर्टी ट्रिब्यूनल ही फैसला करेगा। एक्ट में दिये गये प्रविधानों के मुताबिक वर्ष 1964 में अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन हुआ। यह वक्फ बोर्डों के कामकाज के मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देती है। वर्ष 1995 में वक्फ एक्ट में बदलाव भी किया गया और हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गयी।

    कांग्रेस की सरकारों ने लगातार बढ़ायी वक्फ बोर्ड की शक्तियां
    1995 में बाबरी विध्वंस के बाद पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने 1955 के बाद, दूसरी बार वक्फ एक्ट 1954 में बदलाव किया। इस बदलाव के बाद इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड को काफी ज्यादा शक्तियां मिल गयीं। पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नये-नये प्रावधान जोड़ कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। अब इस कानून में इतनी ताकत थी कि वक्फ एक्ट 1995 के सेक्शन 3 (आर) के मुताबिक, अगर बोर्ड किसी संपत्ति को मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चैरिटेबल) परोपकारी मान ले, तो वह संपत्ति वक्फ बोर्ड की हो जायेगी। अगर किसी को इस फैसले से एतराज है, तो वह वक्फ से गुहार लगा सकता है। वक्फ एक्ट 1995 के आर्टिकल 40 के अनुसार यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड ही तय करेगा।

    अगर किसी को वक्फ बोर्ड के फैसले से एतराज है तो वो अपनी संपत्ति से जुड़े विवाद को निपटाने के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल में जा सकता है। इस कानून की एक खास बात यह भी है कि जमीन या संपत्ति पर आखिरी फैसला वक्फ ट्रिब्यूनल में ही होता है। इस कानून के सेक्शन 85 के मुताबिक वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को सिविल, राजस्व या अन्य अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती है। उसके बाद 2013 में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड के कानून में बदलाव कर उनकी शक्तियों और अधिकारों को और बढ़ाया। इस बार देशभर में वक्फ संपत्तियों की निगरानी करने के लिए जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम मैपिंग की व्यवस्था की गयी, ताकि संपत्तियों का सही और सटीक रिकॉर्ड रखा जा सके। साथ ही यह ध्यान रखा गया कि बोर्ड पर किसी तरह का बाहरी दबाव या हस्तक्षेप नहीं हो।

    वक्फ बोर्ड को मिली हैं ये शक्तियां
    अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गयी, तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।

    देश में एक सेंट्रल और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं
    देश में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 32 स्टेट बोर्ड हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सेंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है। अब तक की सरकारों में वक्फ बोर्ड में अनुदान दिया जाता रहा है। मोदी सरकार में भी वक्फ को लेकर उदारता दिखायी गयी। सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नियम बनाया कि अगर वक्फ की जमीन पर स्कूल, अस्पताल आदि बनते हैं तो पूरा खर्च सरकार का होगा। यह तब हुआ, जब मुख्तार अब्बास नकवी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे।

    वक्फ बोर्ड में कौन होता है शामिल?
    बात करें वक्फ बोर्ड के सदस्यों की तो इसमें शीर्ष पर सारे मुस्लिम अधिकारी होते हैं। जैसे एक अध्यक्ष, राज्य सरकार की ओर से एक या दो नामित व्यक्ति, मुस्लिम विधायक, मुस्लिम एमपी, मुस्लिम वकील, मुस्लिम आइएएस, इस्लामी स्कॉलर, टाउन प्लॉनर और इनके अलावा एक लोकल लेवल पर मुतवल्ली भी होता है।

    जब संविधान में ही वक्फ शब्द नहीं था, तो ये वक्फ एक्ट बना कैसे
    वक्फ के नाम पर वक्फ बोर्ड में जोड़ी गयी इतनी सम्पत्तियों पर पिछले दिनों बहुत सवाल उठे। उत्तरप्रदेश में तो वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को जांचने के लिए राज्य सरकार ने आदेश भी दे दिया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में कुछ साल पहले वक्फ बोर्ड को अंसवैधानिक करार देने के लिए एक याचिका डाली गयी थी। हालांकि उस वक्त कोर्ट ने याचिका यह कह कर खारिज कर दी कि इस मामले में याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं हुए। याचिका डालने वाले अश्विनी उपाध्याय इसकी संवैधानिक मान्यताओं पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं, वक्फ के नाम से भारतीय संविधान में एक शब्द नहीं है। सरकार ने 1995 में वक्फ एक्ट बनाया और ये सिर्फ मुस्लिमों के लिए बना दिया। उन्होंने पूछा कि जब संविधान में ही ऐसा शब्द नहीं था तो ये वक्फ एक्ट बना कैसे। इसमें मुस्लिम विधायक, एमपी, वकील, आइएएस, स्कॉलर और टाउन प्लॉनर और एक मुतवल्ली होता है। मगर जो इसका पूरा खर्चा होता है वो पूरा का पूरा जनता के टैक्स से दिया जाता है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकार मस्जिद, मजारों से पैसे ही नहीं लेती और वक्फ पर उसके सदस्यों के वेतन में पैसे खर्च करेगी, तो ये आर्टिकल 27 का उल्लंघन नहीं हुआ क्या?

    1500 साल पुराने हिंदू मंदिर पर मालिकाना हक जताया, वक्फ बोर्ड के दुरूपयोग के कई उदाहरण हैं
    आज देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जिन्होंने अब तक संपत्तियों और मंदिर की जमीनों का उल्लंघन किया है। तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड ने हाल ही में एक पूरे गांव पर स्वामित्व का दावा किया है, जिससे गांव वाले हैरान हैं। तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने तिरुचि जिले के तिरुचेंथुरई गांव में 1,500 साल पुराने मानेदियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक जताया है। गांव में और उसके आसपास मंदिर की 369 एकड़ संपत्ति है। वक्फ बोर्ड के इस दावे की जानकारी उस वक्त सामने आयी, जब एक स्थानीय किसान ने अपनी खेती की जमीन बेचने की कोशिश की। राजगोपाल नामक किसान ने जब गांव के ही एक दूसरे किसान को अपनी 1.2 एकड़ खेती की जमीन बेचनी चाही, तो रजिस्ट्रार दफ्तर द्वारा उसे बताया गया कि यह जमीन उसकी नहीं, बल्कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की है। राजगोपाल ने मीडिया से कहा कि रजिस्ट्रार ने उसे बताया कि जमीन उसकी नहीं है, तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की है और उसे चेन्नई स्थित वक्फ बोर्ड के कार्यालय से एनओसी लेनी होगी। राजगोपाल ने रजिस्ट्रार से कहा कि उसने 1992 में यह जमीन खरीदी थी और उसे वक्फ बोर्ड से एनओसी लेने की क्यों जरूरत है। राजगोपाल के अनुसार रजिस्ट्रार ने उनसे कहा कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने दस्तावेज विभाग को 250 पेज का एक पत्र भेजा है और कहा है कि तिरुचेंथुरई गांव में किसी भी जमीन की खरीद-बिक्री उसकी एनओसी के साथ किया जायेगा। गांव के लोगों को जब यह बात पता चली तो वे स्तब्ध रह गये, क्योंकि गांव में हर पुरुष या महिला के नाम पर जमीन है। वहीं कर्नाटक माइनॉरिटी कमीशन की रिपोर्ट में 2012 में कहा गया कि वक्फ बोर्ड ने 29 हजार एकड़ जमीन को कमर्शियल प्रॉपर्टी में कन्वर्ट कर दिया। हरियाणा के यमुनानगर जिले के जठलाना गांव में वक्फ की ताकत तब देखने को मिली, जब गुरुद्वारा (सिख मंदिर) वाली जमीन को वक्फ को हस्तांतरित कर दिया गया। इस जमीन पर किसी मुस्लिम बस्ती या मस्जिद के होने का कोई इतिहास नहीं है। नवंबर 2021 में मुगलीसरा में सूरत नगर निगम मुख्यालय को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया था। तर्क यह दिया गया था कि शाहजहां के शासनकाल के दौरान, संपत्ति को सम्राट ने अपनी बेटी को वक्फ संपत्ति के रूप में दान कर दिया था। और इसलिए, आज लगभग 400 साल बाद भी इस दावे को उचित ठहराया जा सकता है। 2018 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि ताजमहल का स्वामित्व सर्वशक्तिमान के पास है। और व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शाहजहां से हस्ताक्षरित दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहे जाने पर, इस निकाय ने दावा किया कि स्मारक सर्वशक्तिमान का है, और उनके पास कोई हस्ताक्षरित दस्तावेज नहीं है, लेकिन उन्हें संपत्ति का अधिकार दिया जाना चाहिए।

    लोकतांत्रिक देश में वक्फ के मायने
    सुप्रीम कोर्ट में भले ही वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका खारिज कर दी गयी, लेकिन उठाये सवाल गलत नहीं थे। भारत जैसे लोकतांत्रित देश में मजहबी आधार पर ऐसे बोर्ड और कानून बनाना कहां तक उचित है। अभी बीते एक साल पहले ही खबर आयी थी कि एक पूरे गांव पर वक्फ बोर्ड ने अपना अधिकार बता दिया है, जबकि लोग उस पर सालों से रह रहे हैं और जमीन पर मंदिर भी है। यह पहली बार नहीं हुआ है, जब वक्फ बोर्ड ने इस तरह का दावा किया है। कई बार वक्फ बोर्ड ने ऐसे दावे किये हैं और जगह को अपना बताया है। बस फिर क्या अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गयी तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। साबित करते रहिये वक्फ ट्राइब्यूनल में। ये भेदभाव नहीं तो क्या है। जरा सोचिये किसी अन्य धर्म की संपत्ति से जुड़े मामलों पर सिविल कोर्ट सुनवाई कर लेता है, जबकि किसी वक्फ की संपत्ति का विवाद हो, तो वे केवल ट्रिब्यूनल कोर्ट में सुना जाता है। यानी अगर वक्फ कभी कहता है कि किसी गैर इस्लामी शख्स की जमीन भी उसके हिस्से में आती है तो उस व्यक्ति को ट्रिब्यूनल कोर्ट जाकर शिकायत करनी पड़ती है और देश में इन कोर्टों की संख्या मात्र 14 है। वहीं अगर यही विवाद किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से जुड़ा है तो बड़े आराम से मामला सिविल कोर्ट में सुना जाता है। आपको जान कर हैरानी होगी कि वक्फ का कॉन्सेप्ट इस्लामी देशों तक में नहीं है। फिर वो चाहे तुर्की, लिबिया, सीरिया या इराक हो। लेकिन भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते आज हालात ऐसे हैं कि इन्हें देश में तीसरा सबसे बड़ा जमींदार बताया जा रहा है, जिसके पास अकूत संपत्ति है।

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