विशेष
पैतृक गांव नेमरा में दिख रहा है मुख्यमंत्री का अलग रूप
पुत्र धर्म का पालन करते हुए परंपराओं में डूबे नजर आते हैं

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। लोग उन्हें उसी नजर से देखते हैं। पूरे राज्य में मान-सम्मान, मेल-मुलाकात मुख्यमंत्री की तरह होती है। वहीं, राज्य में एक छोटा सा गांव ऐसा भी है, जहां हेमंत को मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं, बेटा, भाई, दादा के तौर पर देखा जाता है। यह एहसास होता है हेमंत सोरेन के पैतृक गांव नेमरा पहुंचने पर। लोगों से बातचीत करने पर एहसास होता है कि यहां की मिट्टी से किस तरह हेमंत सोरेन के दादा का लगाव था। किस तरह गुरुजी शिबू सोरेन का जुड़ाव था। हेमंत सोरेन भी नेमरा में मुख्यमंत्री नहीं, गांव का बेटा बने हुए दिखते हैं। नेमरा की मिट्टी से पिता और दादा की तरह उनका भी लगाव दिखता है। नतीजतन यहां के लोग हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं, गांव का बेटा मानते हैं। इस बात को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दो दिन पहले अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। इसका एहसास नेमरा पहुंच कर ही हो सकता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन दिनों नेमरा में हैं। वह गुरुजी के श्राद्ध कर्म गांव से ही संपन्न कर रहे हैं। गुरुवार की शाम कुछ समय के लिए ‘आजाद सिपाही’ परिवार की ओर से प्रबंध निदेशक राहुल सिंह, राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा और छायाकार प्रदीप ठाकुर के साथ राजनीतिक संपादक प्रशांत झा नेमरा गये थे। इस यात्रा का मकसद गुरुजी को श्रद्धांजलि देना और मुख्यमंत्री से मिल कर संवेदना व्यक्त करना था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात भी हुई। साथ ही गांव के लोगों से भी मिलने का मौका मिला। नेमरा यात्रा के दौरान जो एहसास हुआ, उसकी एक झलक प्रस्तुत कर रहे हैं राजनीतिक संपादक प्रशांत झा।

वैसे तो नेमरा गांव पहचान का कभी मोहताज नहीं रहा, लेकिन दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद इसका नाम राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। रांची से 82 किमी दूर रामगढ़ जिले में एक छोटा सा गांव नेमरा है। गुरुजी के नाम से मशहूर शिबू सोरेन का चार अगस्त को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में निधन हुआ। अस्पताल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम नेता उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। गुरुजी के पार्थिव शरीर को उसी दिन शाम में रांची लाया गया। रात भर रांची के मोरहाबादी स्थित उनके आवास पर पार्थिव शरीर को रखा गया। दूसरे दिन यानी पांच अगस्त को पार्थिव शरीर को विधानसभा लाया गया। आवास और विधानसभा में राज्य के खास और आम लोगों ने उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दी। इसके बाद पार्थिव शरीर को नेमरा ले जाया गया, जहां संथाली रीति-रिवाज और राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार हुआ। अंतिम संस्कार में हजारों की संख्या मं लोग उमड़ पड़े। जन सैलाब ऐसा उमड़ा कि पांव रखने की जगह नहीं थी। 7-8 किमी तक केवल लोग ही लोग नजर आ रहे थे। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव समेत राष्ट्रीय और राज्य के कई नेता नेमरा गांव पहुंच गये। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अभी नेमरा में हैं। गुरुजी को श्रद्धांजलि देने हर दिन गणमान्य लोग पहुंच रहे हैं। राज्यपाल संतोष गंगवार हों या फिर समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव, सभी का नेमरा आना-जाना लगा है। इसलिए गुरुजी के नाम की तरह नेमरा का नाम भी राष्ट्रीय स्तर पर चमकने लगा है।

नेमरा में पुत्र धर्म निभा रहे हेमंत
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन दिनों नेमरा में हैं। वह पुत्र का पिता के प्रति जो धर्म होता है, उसे निभा रहे हैं। सफेद कपड़े में खुद को लपेटे, चप्पल पहने, गांव के लोगों से घर-घर जा कर मिलना, उनके साथ उठना-बैठना चल रहा। हर दिन श्राद्ध कर्म से जुड़े अनुष्ठानों को पूरा करना, गांव और परिवार के बड़े-बुजुर्ग से विचार-विमर्श करना और उन्हीं के बीच पिता को खोने का दर्द छिपाते हुए गांव के छोटे-छोटे बच्चों को गोद में उठा कर हंस-बोल लेना। यह सब उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर दिख रहा। हर दिन सोशल मीडिया पर हेमंत कुछ न कुछ पोस्ट कर रहे, जिसमें पिता शिबू सोरेन को मिस करने और शोकमग्न होने की झलक दिखती है। वहीं पुत्र धर्म और गांव से लगाव दिखाई देता है। इन सब के बीच बच्चों के साथ समय बिताते हुए दुख को कम करने और छिपाने का प्रयास भी झलकता है। जब नेमरा गया, तो सोशल मीडिया के पोस्ट को वहां प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिला।

मिट्टी में महसूस होती है गुरुजी की मौजूदगी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गुरुवार को अपने सोशल मीडिया पर झार-जंगल के बीच खड़े अपनी एक तस्वीर के साथ पोस्ट किया था। उन्होंने लिखा, नेमरा की यह क्रांतिकारी और वीर भूमि, दादाजी की शहादत और बाबा के अथाह संघर्ष की गवाह है। यहां के जंगलों, नालों-नदियों और पहाड़ों ने क्रांति की उस हर गूंज को सुना है-हर कदम, हर बलिदान को संजोकर रखा है। नेमरा की इस क्रांतिकारी भूमि को शत-शत नमन करता हूं। वीर शहीद सोना सोबरन मांझी अमर रहें! झारखंड राज्य निर्माता वीर दिशोम गुरु शिबू सोरेन अमर रहें! सचमुच नेमरा जाने पर यह एहसास होता है। मुख्य सड़क के पास से उनके घर तक गुरुजी की याद में बड़ी तस्वीर के साथ उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए पोस्टर लगे हैं। जंगल-पहाड़ों से घिरा गांव कच्चे-पक्के मकान, लोगों की जीवन शैली, बोलचाल सब कुछ अलग अनुभव कराता है। बातचीत में लोगों का दर्द और मिट्टी में गुरुजी के रचे-बसे होने का एहसास होता है।

लगा ही नहीं मुख्यमंत्री के साथ चल रहा:
गुरुवार शाम जब हम नेमरा गांव पहुंचे, तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हाथ में टॉर्च लिये गांव के 40-50 लोगों के साथ घूम रहे थे। उनके पीछे सुरक्षा कर्मी और अधिकारी मौजूद थे। रांची या अन्य जगहों पर जहां किसी आम व्यक्ति को मुख्यमंत्री तक पहुंचना कठिन होता है, वहीं गांव में सभी बेरोक-टोक उन तक तक पहुंच रहे थे। उनके साथ चलते हुए यह एहसास ही नहीं हो रहा था कि राज्य के मुख्यमंत्री घूम रहे हैं। अगर हेमंत सोरेन के सुरक्षा कर्मी और पुलिस के अधिकारी मौजूद नहीं होते, तो ऐसा लगता कि गांव का कोई सामान्य नेता या सामाजिक कार्यकर्ता लोगों के साथ है। मुख्यमंत्री का व्यवहार भी ऐसा ही था। वह भी आते-जाते लोगों से रुक कर एक-दो मिनट स्थानीय भाषा में बतिया लेते। वहीं चलते-चलते अकेले ही गांव के एक व्यक्ति के घर के अंदर चले गये। वहां 10 करीब मिनट अंदर रहे, बात की। वापस अपने घर के पास पहुंचे, तो एक बच्चे को गोद में उठा कर हंसने-बोलने लगे।

गांव आत्मा में बसा है:
गांव में लोगों से बातचीत हुई। उनसे मुख्यमंत्री और गुरुजी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने स्थानीय भाषा में तमाम सवालों के जवाब दिये। बहुत अधिक तो बात समझ में नहीं आयी, लेकिन इतना जरूर समझ में आया कि गुरुजी शिबू सोरेन के निधन से वे दुखी थे। गुरुजी उनके लिए भगवान से कम नहीं थे। दूसरा हेमंत सोरेन गांव के लिए मुख्यमंत्री नहीं, बेटा, भाई, दादा हैं। मुख्यमंत्री के व्यवहार में भी यही झलक रहा था। चेहरे पर थकान, पिता के निधन का शोक के साथ गांव के जीवन में खुद को ढाले दिखे हेमंत सोरेन। नेमरा में बिताये कुछ पल और लोगों से थोड़ी-बहुत बातचीत ने दिखा दिया कि गुरुजी की तरह हेमंत का भी अपने पैतृक गांव से लगाव है। वह आत्मा से गांव से जुड़े हैं। राज्य के सर्वोच्च पद पर बैठे होने के बाद भी पांव गांव की जमीन पर हैं। वह गांव की समस्या, वहां की जीवन शैली, वहां के दुख-दर्द को बखुबी जानते हैं। इसलिए संभवत: वह अक्सर कहते हैं कि यह गांव की सरकार है।

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