Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, September 1
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»मैंने आज तक पापा की आंखों में आंसू नहीं देखे थे, उनके आंसुओं को देख मैं रो भी न सका
    विशेष

    मैंने आज तक पापा की आंखों में आंसू नहीं देखे थे, उनके आंसुओं को देख मैं रो भी न सका

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 30, 2025Updated:August 31, 2025No Comments18 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    दिल के अंदर अगर आंखें होती, तो वहां बरसात हो रही होती
    मैं भागता रहा, कभी, डॉक्टर, कभी प्रकृति और कभी ईश्वर के पास
    लेकिन पापा की रेस कहीं और की थी, मैं उन्हें पकड़ न सका और पापा मुझे छोड़कर चले गये
    हां पापा नहीं रहे, लेकिन उनका सपना अभी भी जीवित है, जिसे पूरा करना उनके दोनों बच्चों की जिम्मेदारी है

    इलाज के क्रम में ही कैंसर फैलने लगा
    मेदांता अस्पताल से रांची पहुंचने के बाद पापा ने कहा कि किसी हड्डी विशेषज्ञ से भी दिखा लिया जाये। हमने हड्डी के कुछ डॉक्टरों को दिखाया कि पीठ में दर्द का क्या कारण हो सकता है। उनका कहना था कि विटामिन की कमी है। सो पापा ने विटामिन की गोलियां खानी शुरू कर दीं। लोकल कैंसर स्पेशलिस्ट से भी बात की, तो उनका भी कहना था कि कैंसर रिलेटेड समस्या नहीं दिखायी पड़ती। ये हड्डी के डॉक्टरों का मामला लगता है। इसी बीच पापा को यूरिन इनफेक्शन भी हो गया। ठंड लग कर फीवर आने लगा। मैंने मेदांता के डॉक्टर से बात की, तो उन्होंने कहा कि लोकल फिजिशियन से दिखाना चाहिए। आप यूरिन कल्चर करा लें और मुझे भी रिपोर्ट भेज दें। हमने लोकल डॉक्टर को दिखाया। कुछ एंटीबायोटिक्स उन्होंने दिया। यूरिन कल्चर रिपोर्ट आने में तीन-चार दिन का वक्त लगता है। साथ ही हमने रांची में हड्डी के स्पेशलिस्ट डॉक्टर अंचल कुमार को भी दिखाया। कुछ दिनों से वह बाहर थे, लेकिन उनके आते ही हम उनके पास गये। पापा पीठ के दर्द से परेशान थे। डॉक्टर ने एमआरआइ करवायी। रिपोर्ट आने के बाद मैं डॉक्टर से मिलने गया। उन्होंने कहा कि पापा को जितना जल्दी हो, आप मेदांता अस्पताल ले जाइए, जहां उनका इलाज चल रहा है। मुझे लग रहा है कि कैंसर हड्डियों में फैल रहा है। कुछ ट्यूमर्स भी दिख रहे हैं। मैं घर आया और पापा को कहा कि मेदांता चलते हैं। मम्मी ने जाने की जिद की। मैंने कहा मां मैं दोनों को कैसे संभाल पाऊंगा। मां ने कहा मुझे भी ले चलो। मेरे मन में क्या आया मैंने भी कहा चलो। अगले ही दिन मैं, पापा और मम्मी मेदांता अस्पताल के लिए रवाना हो गये। हम गुरुग्राम के स्टार होटल पहुंचे। तब तक पापा की यूरिन कल्चर रिपोर्ट भी आ गयी। अगले दिन हम पापा के डॉक्टर से मिले। पापा को एडमिट किया गया और पापा का यूरिन इनफेक्शन का इलाज शुरू हुआ। इस दौरान पापा का हीमोग्लोबिन भी तेजी से गिर रहा था। दो यूनिट ब्लड भी चढ़ाया गया। ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर राउंड पर आये और कहा कि एक पेटसिटी भी करा लेते हैं। पेटसिटी हुई। रिपोर्ट आयी तो पता चला कि कैंसर बढ़ चुका है। डॉक्टर भी हैरान थे कि ट्रीटमेंट के दौरान कैंसर इतना बढ़ कैसे गया। हमने भी पूछा ऐसा क्यों हुआ। अभी तो ट्रीटमेंट चल ही रहा है। डॉक्टर ने कहा कि अब रेडिएशन करना पड़ेगा। मेरा दिमाग खराब हो गया था। मुझे अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। मैं समझ चुका था कि पापा का कीमो फेल हो चुका है। अब मैं ब्लैंक हो गया था, सोच रहा था कि रेडिएशन पापा कैसे बर्दाश्त करेंगे। मैंने डॉक्टर से कहा बिना रेडिएशन कोई उपाय नहीं है। उन्होंने कहा बोन फ्रैक्चर होने का खतरा है। लाइट रेडिएशन देंगे। इससे पीठ का दर्द भी ठीक हो जायेगा और मजबूती भी आयेगी। मैंने कहा कि साइड इफेक्ट। उन्होंने कहा नहीं, कोई मेजर साइड इफेक्ट नहीं होगा। पापा ने मुझसे कहा कि इतने दिनों से इन लोगों को कह रहा था कि पीठ में दर्द हो रहा है और ये लोग बस मसल पेन होगा बोलते रह गये। मैं रेडिएशन से पहले दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल भी गया। सेकेंड ओपिनियन के लिए। लेकिन वहां भी सेम ट्रीटमेंट। मैं मेदांता आ गया। अब हमारे पास कोई चारा नहीं था, रेडिएशन के सिवा। पापा ने घबरा कर मुझसे कहा भी कि रेडिएशन के बाद कोई बचता नहीं। मैंने कहा कि पापा आप ऐसा मत सोचिये। डॉक्टर ने कहा है कि लाइट रेडिएशन देंगे। आपको दिक्कत नहीं होगी। अब रेडिएशन के अलावा हमारे पास कोई चारा भी नहीं था। रेडिएशन न होता तो बोन फ्रैक्चर होने का खतरा भी था। फिर पापा के लिए और भी मुश्किल हो जाती। मैंने कहा कि डॉक्टर ने तो भरोसा दिलाया है कि रेडिएशन के बाद सही हो जायेगा।

    पापा के आंसू देख मैं रो भी न सका, बस मन में सोचा कि ईश्वर इतना क्रूर कैसे हो सकता है
    फिर थोड़ी देर में रेडिएशन डिपार्टमेंट से दो डॉक्टर आये। उन्होंने रेडिएशन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बजट भी दिया। फिर चले गये। पापा ने बजट के बारे में सुन लिया था। उनकी आंखें भीग गयीं। वह मेरी तरफ देख रोने लगे, कहने लगे बेटा इतना पैसा मेरी बीमारी में खर्च हो रहा है, क्या छोड़ कर तुम लोगों के लिए जाऊंगा। मेरी मजबूरी यह थी कि मैं रो भी नहीं सकता था। मैं किसी तरह बस खड़ा था। मैंने अपने गले पर जोर देकर, अपने शब्दों को नॉर्मल तरीके से मुंह से निकाला। डर था कहीं मैं भी न रो दूं पापा के आंसू देख कर। मैंने आज तक पापा को रोते नहीं देखा था। मैंने ईश्वर से यही कहा कि तुम इतना क्रूर कैसे हो सकते हो। निर्दयी हो तुम। मैंने पापा से कहा कि पापा सब आपका ही तो है। आप टेंशन क्यों लेते हैं। आपके दो बेटे हैं, दोनों सक्षम हैं। आप चिंता न करें। मैंने उनके आंसू पोछे। सच कहूं तो मेरे दिल के अंदर आंख होती, तो वह जरूर रोती और फूट-फूट कर रोती। कुछ दिनों में पापा का यूरिन इन्फेक्शन ठीक हुआ। उसके बाद पापा को रेडिएशन डिपार्टमेंट में ले जाया गया। पापा की रेडिएशन की तैयारी शुरू हुई। पापा के कुल 10 सेशंस होने थे। रेडिएशन शुरू करने से पहले सांचा बनाया जाता है। उस जगह की माप और मार्किंग की गयी, जहां पर रेडिएशन होना था। उसके बाद पापा का फिर से ब्लड टेस्ट कराया गया, तो पाया गया कि हीमोग्लोबिन 7.8 था। रेडिएशन शुरू करने से पहले फिर से दो यूनिट ब्लड चढ़ाया गया। पापा का पहला रेडिएशन भी हुआ। उसके बाद पापा को डिस्चार्ज कर दिया गया। अब एक शीट बनी कि रोज नौ दिनों तक रेडिएशन लेने के लिए अस्पताल आना पड़ेगा। वहीं आंकोलॉजिस्ट ने कहा कि रेडिएशन का सेशन पूरा होने के बाद कीमो भी शुरू किया जायेगा। मैंने उनसे कहा कि कीमो किस शरीर में करियेगा। कीमो के लिए शरीर भी तो होना चाहिए। अभी रेडिएशन, फिर कीमो 70 साल का आदमी क्या-क्या झेलेगा। मैंने इस दौरान इतने पेशेंट्स को देख चुका था, जो बेड पर असहाय लेटे हुए थे। बस आॅक्सीजन के सहारे जिंदा थे। रेडिएशन के क्रम में ऐसे कई मरीज भी दिखे जो जिंदा तो थे, लेकिन बेड पर हताश पड़े हुए थे। मैं पापा को ऐसे नहीं देख सकता था। ना ही पापा खुद को। मेरा भरोसा अब एलोपैथी ट्रीटमेंट से उठ चुका था। मुझे समझ में आ चुका था कि अब इनके पास कोई उपचार नहीं है। लेकिन डॉक्टर करता भी क्या, उसके पास सिर्फ कीमो था। आंकोलॉजिस्ट के पास तो एक ही हथियार होता है कीमो। लेकिन अभी भी मेरा भरोसा ईश्वर पर से डिगा नहीं था। भरोसा था कि पापा बिलकुल ठीक हो जायेंगे। ईश्वर का दिल कभी तो पसीजेगा। पापा को मैं रोज रेडिएशन के लिए ले जाता। 15 से 20 मिनट में पापा का रेडिएशन हो जाता। फिर हम वापस होटल आ जाते। पापा का पेन किलर अभी भी चालू था। वह हर दो दिन में पेन किलर खाते। जैसे-जैसे रेडिएशन होता गया, वैसे-वैसे पेन भी कम होता चला गया। पापा बेहतर फील करने लगे। लेकिन कमजोरी बहुत थी।

    पापा का कॉलर बोन अब महज कॉलर बन चुका था
    हमने स्टार होटल में दो कमरे ले रखे थे। दो रूम एक किचन। वहां पर वही व्यवस्था थी। इस बार मेरे साथ मम्मी भी थीं। मुन्ना भैया भी आ चुके थे और मेरी भगिनी भी गुरुग्राम में रहती है, वह भी आ गयी। हम पांच लोग पापा के साथ अब मौजूद थे। मैं पापा के गिरते हीमोग्लोबिन से चिंतित था। पापा बहुत कमजोर हो चुके थे। शरीर पर कपड़ा अब टंगा हुआ सा दिखता। पापा का कॉलर बोन, अब महज कॉलर बन चुका था। लेकिन इस कंडीशन में भी पापा रेडिएशन लेने के लिए पैदल चलकर ही जाते। बोले व्हील चेयर पर तो नहीं बैठूंगा। इस दौरान हम कुल 28 दिन गुरुग्राम के स्टार होटल में रहे। मम्मी और भगिनी ने खाना बनाने का डिपार्टमेंट संभाल रखा था। मां के आने से मुझे बहुत सपोर्ट मिला। उन 28 दिनों में हमने तय किया कि पापा को बिलकुल ठीक करना है। हमने दिन-रात एक कर दिया। मैं सुबह पांच बजे ही उठ पापा के लिए जूस बनाने की प्रक्रिया में लग जाता। पत्तों के मिश्रण से जूस तैयार करता। उसके लिए गुरुग्राम को छान मारता। कहीं किसी के घर के सामने से कढ़ी पत्ता तोड़ लेता। नीम के पेड़ों से दातून तोड़ लाता। जो भी पापा के लिए बेहतर था, ढूंढ़-ढूंढ़ कर लाता। पापा को खुद से सब्जी खरीदना अच्छा लगता था। जब पापा स्वस्थ थे और उन्हें कैंसर डिटेक्ट नहीं हुआ था, तब जब भी वह मुझे लेकर सब्जी खरीदने बाजार जाते, पापा ही सब्जी चुना करते। मैं बस खड़ा रहता। मुझे सब्जियों के बारे ज्यादा जानकारी नहीं थी। लेकिन जबसे पापा बीमार हुए, रांची का ऐसा कोई भी सब्जी बाजार नहीं होगा, जहां मैं खुद सब्जी लेने गया नहीं। जहां भी पता चलता कि आज यहां बाजार लगने वाली है और वहां ताजी और अच्छी सब्जी मिलती है, मैं वहां जाता और खुद से सब्जियां चुनता। मैं एक-एक सब्जी चुन कर उठाता। मैं पापा को भथुआ यानि सफेद पेठा का भी जूस पिलाता। उसके लिए पूरा बाजार छान मारता। कई बार सफलता हाथ लगती, तो कई बार निराश होकर आता। लेकिन मैं उस दिन बाजार नहीं तो, कहीं न कहीं रांची के गांव में घुस कर, किसी के घर ही सही, इंतजाम तो कर ही लेता। कच्ची हल्दी के लिए कई बार भटकना पड़ता। पापा के लिए देसी अंडे ढूंढ़ कर लाता। गुरुग्राम में भी मैंने पापा के लिए ताजी सब्जियों का पूरा इंतजाम कर रखा था। एक दुकान वाले से दोस्ती कर ली थी। उसको राजनीति में बड़ा इंटरेस्ट था। वह देश की मौजूदा राजनीति पर अपनी राय देता। मैं मन मारकर उसकी कहानियां सुना करता, क्योंकि वह मुझे सफेद पेठा लाकर देता था।

    इन 28 दिनों में मैं कई बार मंदिर गया, गुरुद्वारा भी गया। ईश्वर के सामने हाथ जोड़े। घुटनों पर बैठ प्रार्थना करता। मां भी शाम को मंदिर में बैठ प्रार्थना करतीं। अब रेडिएशन का सेशन कंपलीट हुआ। रेडिएशन वाले डॉक्टर ने कहा कि सेशन कंपलीट हो चुके हैं, अब तीन महीने के बाद फिर से पेटसिटी करेंगे। लेकिन 10 दिन के बाद फिर से एग्जामिन करेंगे। उसके बाद आप जा सकते हैं। हमने तय किया कि अभी कुछ दिन यहीं रुकेंगे। रेडिएशन का क्या असर होता है, प्रॉपर चेकअप के बाद ही रांची जायेंगे। मैंने रेडिएशन के बाद के साइड इफेक्ट के बारे में कई कहानियां सुन रखी थीं। रेडिएशन के बाद पापा ने होटल की बालकनी में वॉक करना शुरू कर दिया। बालकनी लंबी थी। लेकिन एक-दो दिन ही वाक कर पाये, उन्हें फीवर आने लगा। मैं फिर से रेडिएशन वाले डॉक्टर से मिला और कहा कि पापा को फीवर आ रहा है। उन्होंने कहा कि एक बार फिजिशियन से दिखा लीजिये। हमने मेदांता में ही फिजिशियन को दिखाया। उन्होंने कई टेस्ट करवाये। टेस्ट सब सही आये। उन्होंने कुछ दवा दी। कहा इससे ठीक हो जायेगा। पापा का फीवर ठीक भी हुआ। मैंने पापा और मम्मी से कहा कि आंकोलॉजिस्ट ने कहा है कि अभी और कीमो करेगा। पापा ने कहा मुझे अब कीमो नहीं कराना। अभी तो रेडिएशन हुआ है। मैं कीमो बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा। मुझमें अब शक्ति नहीं है। मुझे रांची ले चलो। मैं यहां नहीं रहूंगा। कीमो के लिए न तो पापा ही तैयार थे, न ही मां और मैं तो कतई नहीं। मुझे पता था कि अगर कीमो हुआ, तो मैं पापा को शायद रांची नहीं ले जा पाऊंगा, क्योंकि पापा के शरीर में अब खून के अलावा कुछ बचा नहीं था। पापा बस अपने विल पावर की बदौलत खड़े थे। तय हुआ कि जब पापा को बेहतर फील होगा, तब हम लोग कीमो के लिए जायेंगे। लेकिन अभी तो यह मुमकिन नहीं है। हम लोग रांची आ गये।

    मैं रहूं या ना रहूं, अखबार निकलना चाहिए
    पापा रांची आकर खुश थे। 28 दिनों के बाद वह रांची आये थे। आते ही उन्होंने फिर से दफ्तर में एंट्री की। कुछ देर बैठे और बातें की। सब सही चल रहा था। मैं रोज की तरह पापा के लिए जूस बनाता। सुबह 6 से 12 बजे तक पापा में ही लगा रहता। पापा को जूस पिलाने के बाद नाश्ता करवाता। कभी-कभी ना खाने कि जिद करते, तो उन्हें अपने हाथों से खिलाता। पापा को नहलाने के बाद मैं फ्रेश होता और नहाने जाता। दिन में जब पापा खाने में आनाकानी करते, तो मम्मी बोलती रुकिए बड़ा बेटा को बुलाती हूं, क्योंकि पापा इस दौरान न मम्मी की सुनते, ना ही राहुल की। उसके बाद पापा तुरंत खा लेते। रात को हम दोनों भाई पापा के पास बैठते और उनका पैर दबाते। खूब बातें भी करते। पापा बोलते, बेटा तुम लोग हमेशा एक साथ रहना। अखबार को आगे बढ़ाना। काम नहीं रुकना चाहिए। मैं रहूं या ना रहूं अखबार निकलना चाहिए। हम दोनों भाइयों ने उनके सामने प्रण लिया, पापा अखबार भी निकलेगा और आगे बभी बढ़ेगा। आप चिंता मत करिये। आप जल्दी ठीक हो जाइयेगा। आपको कुछ हुआ थोड़े है। हम लोग सितंबर में फिर से गांव चलेंगे। फिर मस्ती करेंगे। पापा को सुलाने के बाद हम दोनों भाई सोने जाते। कुछ दिन के बाद पापा को फिर से फीवर आना शुरू हुआ। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि फिर से फीवर क्यों आ रहा है। अभी तो सारे चेकअप हुए। मैंने मेदांता में डॉक्टर से बात की। उन्होंने कहा कि यूरिन कल्चर करवा लीजिये। पता चला कि पापा को फिर से यूरिन इनफेक्शन हो गया है। अभी कुछ दिन पहले ही हम मेदांता में इसका ट्रीटमेंट करवा के आये थे। खैर पापा का ट्रीटमेंट शुरू हुआ और इनफेक्शन भी ठीक हो गया। लेकिन इस बीच पापा का हीमोग्लोबिन का गिरना बंद नहीं हुआ। मैं हर तीन-चार दिन में पापा के लिए ब्लड का इंतजाम करता और चढ़वाता। यह सिलसिला कैंसर ट्रीटमेंट के बाद से जो शुरू हुआ, रुकने का नाम नहीं लिया। मैंने कई बार डॉक्टर से पूछा भी ऐसा क्यों हो रहा है। उनका कहना था कि बोन मैरो सप्रेस होने के कारण होता है। ठीक हो जायेगा। बीच-बीच में पापा को बेहतर फील होता। वह योग भी करते। इस बीच कई रिश्तेदार पापा को देखने आते। मैंने उन्हें साफ मना कर रखा था कि आप लोग आइये, लेकिन कोई पापा से निगेटिव बात नहीं करेगा, और तो और, उनके सामने रोयेगा नहीं।

    रात को कई बार उठ पापा के कमरे में झांकता, पापा और मम्मी को सोता देख चला जाता
    पापा अब बेड पर ज्यादा समय बिताते। बीच-बीच में मैं उन्हें चलाता। हल्का-फुल्का हाथ-पैर की थैरेपी कराता। व्यायाम कराता। योगा भी करवाता। पापा की पीठ का दर्द बीच-बीच में उठ जाता। हैवी पेनकिलर खाना पड़ता। जब भी मैं रात को सोने जाता, डर लगा रहता। रात को कई बार उठ पापा के कमरे में झांकता। पापा और मम्मी को सोया हुआ देख चला जाता। दिन में तीन बार मैं पापा की बीपी, हार्ट रेट और आॅक्सीजन लेवल को मॉनिटर करता। एक दिन अचानक पाया कि पापा का हार्ट रेट बढ़ा हुआ है। 140 से अधिक था। पापा को फीवर भी था और बीपी भी बढ़ा हुआ था। मैंने पापा को कुछ बोला नहीं। फीवर की दवा दी और थोड़ी देर वाच किया। हड़बड़ाया नहीं। मैंने उस दौरान पास के सैमफोर्ड अस्पताल में बात कर ली थी। मैंने राहुल को बोला गाड़ी निकलवाओ। मैंने मां को बताया अभी पापा को अस्पताल ले जाऊंगा, तुम लोग पैनिक मत होना। पापा का हार्ट रेट बढ़ा हुआ है। फिर मैंने पापा को हलके अंदाज में बोला पापा एक बार सैमफोर्ड अस्पताल चलते हैं। थोड़ा दिखा लेते हैं कि फीवर क्यों आ रहा है। पापा को मैंने नहीं बताया कि उनका हार्ट रेट बढ़ा हुआ है, नहीं तो वह पैनिक करते। पापा बोले हां ले चलो। मुझे भी थोड़ा अनइजी लग रहा है। पापा उठे और चलने लगे, मैंने कहा पापा चेयर पर बैठ जाइये। सीढ़ी क्यों उतरियेगा। वह चेयर पर बैठ कर सीढ़ी नहीं उतरना चाह रहे थे। मैंने कहा पापा प्लीज बैठ जाइये। पापा बैठे और हमने उन्हें सीढ़ियों से उतारा। गाड़ी में बिठा अस्पताल ले गये। पापा एडमिट हुए, जांच हुई तो पाया कि पापा के लंग्स में फिर से पानी भर गया था। लंग्स से पानी निकाला गया। करीब 1200 एमएल पानी निकला। उस दौरान ब्लड भी चढ़ाया गया। वहीं हीमोग्लोबिन वाला इशू तो था ही। फिर पापा चार-पांच दिनों में डिस्चार्ज हो गये। घर आकर मैंने पापा को कहा कि मेदांता में हमने कई बार डॉक्टर से पूछा भी कि लंग्स में पानी तो नहीं भरेगा न। लेकिन उनका कहना था कि इतनी जल्दी पानी नहीं भरता। उसके बाद कई चेकअप भी हुए थे। पाया गया कि पानी तो है, लेकिन अभी उतना नहीं है कि निकालना पड़े। हम तो डॉक्टर के भरोसे पर ही थे।

    पापा मेरे लिए अब मेरे बेटे हो चुके थे
    खैर पापा अब पहले से बेहतर फील कर रहे थे। खाना-वाना भी अच्छे से खा रहे थे। सुबह जूस पीते, खाने में मिल्लेट्स की रोटी, सावां का चावल, या जौ का भात, किनुआ यानि मोटा अनाज खाते। गेहूं छोड़ कर। दिन में सत्तू पिया करते। फल खाया करते। शाम को फिर से मिल्लेट्स का आइटम और उसके बाद मसूर दाल, सहजन और उसके पत्तों का सूप देता। यही रूटीन चलता। रेडिएशन के बाद पापा को यूरिन करने में दिक्कत आती। बार-बार यूरिन होता तो वह उठकर बाथरूम नहीं जा पाते। बहुत कमजोरी महसूस होती। जब मम्मी आस-पास नहीं होती, तो मैं कई बार पापा का डायपर बदल देता। पापा शुरू में तो हिचकिचाते, लेकिन मैं नहीं मानता। बदल देता। वैसे डायपर बदलने में मुझे दिक्कत नहीं होती, क्योंकि मैं अपने तीन साल के बेटे रुद्रव के डायपर को कई दफा बदलता था। एक्सपर्ट हो चुका था। पापा में मुझे रुद्रव ही दिखता। पापा मेरे लिए अब मेरे बेटे हो चुके थे। डिस्चार्ज होने के तीन-चार दिनों के बाद मुझे लगा कि पापा का हीमोग्लोबिन टेस्ट करवा लेना चाहिए। मैंने पापा से पूछा कि पापा आपको कैसा लग रहा है। पापा ने कहा अच्छा लग रहा है। लेकिन मैंने टेस्ट करवा लिया। देखा हीमोग्लोबिन अभी ठीक है। तीन-चार दिन बाद फिर से देखा जायेगा। अगर पापा को अच्छा लगेगा, तो टेस्ट की जरूरत नहीं पड़ेगी।

    दो दिनों के बाद पापा को शाम में पेट में दर्द उठा। हमलोग फिर से पास के सैमफोर्ड अस्पताल गये। पापा एडमिट हुए। पापा को हेपिटाइटिस ए और जांडिस डिटेक्ट हुआ। इलाज शुरू हुआ। कंट्रोल करने की कोशिश की गयी। पाया गया कि कंट्रोल हो जायेगा, तो एक-दो दिन में डिस्चार्ज हो जायेंगे। गुरुवार की सुबह मैंने पापा को अस्पताल की गैलरी में वाक भी कराया। कुर्सी पर बिठा कर हाथ-पैर को रिलैक्स करवाया। यह पहली दफा था, जब मेरे छोटा भाई ने पापा की वीडियो बनायी, मेरी पत्नी ने तस्वीर ली। मैंने इलाज के क्रम में कभी भी पापा की तस्वीर नहीं निकाली थी। पापा को मैं फिर कमरे में ले गया। हम सभी पापा के साथ थे। मां दिन भर पापा के साथ अस्पताल में रहतीं। मैं घर आकर पापा के लिए कुछ बनाता रहता। पत्नी ने भी पूरा साथ दिया। रात 12 बजे जब मैं पापा को सुलाकर घर आया तो करीब 3 बजे फोन आया कि पापा सोये नहीं हैं। पापा को असहनीय पीड़ा हो रही है। मैं तुरंत अस्पताल गया। पापा को पॉटी करने में दिक्कत हो रही थी। फिर एनीमा के जरिये पापा को पॉटी करायी गयी। अब सुबह हो चुकी थी। मैं सुबह ही घर आया, पापा के लिए जूस बनाया और उसे लेकर अस्पताल आ गया। पापा को मैंने दूसरे कमरे में शिफ्ट करवाया। मैं और पापा एक सोफे पर बैठे। मां और भाई खड़े थे। पापा ने मेरे हाथों से जूस पिया। यह आखिरी जूस था, जो पापा ने मेरे हाथों से पिया। उसके बाद पापा सो गये। चार पांच घंटे नींद में सोये। उसके बाद उनकी आंख नहीं खुली। स्थिति बिगड़ने लगी। आइसीयू में शिफ्ट कराया गया। मैंने कैंसर स्पेशलिस्ट से भी बात की। उन्होंने रिपोर्ट्स देखी और कहा कि पापा को शांति से जाने दिया जाये। मुझे पता था कि पापा के पास एक साल से भी कम समय था। लेकिन मैंने अपने पिता के लिए हर वो प्रयास किया, जो एक आम इंसान के वश में हो। मैं अपने पिता के लिए रोज पहाड़ तो लाता, लेकिन वह बूटी कौन सी थी, जो उनके लिए संजीवनी का काम करती, उसकी पहचान नहीं कर पाया, बस ईश्वर यहीं जीत जाते हैं और इंसान यहीं पिछड़ जाता है। मेरे पापा मुझे छोड़ कर चले गये। मैं हार गया। पापा को बचा नहीं सका। पापा हमें छोड़ कर चले गये थे। पापा अब नहीं रहे।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleपापा चले गांव, गोइठा पर लिट्टी बनवायी, पतलो की मड़ई में डाल ली चौकी
    Next Article अंतिम जोहार रथ यात्रा को बनाया जाएगा सफल : विधायक
    shivam kumar

      Related Posts

      बिहार में सियासी तूफान पैदा कर गयी राहुल-तेजस्वी की यात्रा

      September 1, 2025

      झारखंड का खरा सोना, शिबू सोरेन, ‘भारत रत्न’ के असली हकदार

      August 31, 2025

      पापा चले गांव, गोइठा पर लिट्टी बनवायी, पतलो की मड़ई में डाल ली चौकी

      August 29, 2025
      Add A Comment
      Leave A Reply Cancel Reply

      Recent Posts
      • योगेंद्र साव का अपनी ही सरकार पर हमला, बोले- जल, जंगल, जमीन बचाने की बात, लेकिन हो रहा विनाश
      • कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी भारत और रूस कंधे से कंधा मिलाकर चले : प्रधानमंत्री
      • केदारनाथ यात्रा को 3 सितंबर तक अस्थायी रूप से रोका गया
      • पटना में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरु
      • झारखंड में जेजेएमपी के नौ उग्रवादियों ने किया आत्मसमर्पण
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version