रांची। राजधानी रांची सहित पूरे राज्य में 16 अगस्त को धूमधाम से श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। जन्माष्टमी को लेकर शहर के मंदिरों सहित अन्य स्थानों पर मटका फोड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाएगा। इसकी तैयारी जोर-जोर से की जा रही है। आचार्य मनोज पांडेय ने मंगलवार को बताया कि हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसे कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से जानते हैं। इस वर्ष जन्माष्टमी 16 अगस्त ( शनिवार) को है। साल 2025 में भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी।

उन्होंने बताया कि इस बार जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का अद्भुत संयोग बन रहा है, जिससे दिन की महत्ता बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 15 अगस्त को रात 11 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और 16 अगस्त को रात 09 बजकर 34 मिनट पर अष्टमी तिथि का समापन होगा। उन्होंने बताया कि ब्रह्म मुहूर्त 04:24 एएम से 05:07 एएम,

अभिजित मुहूर्त 11:59 एएम से 12:51 पीएम,विजय मुहूर्त 02:37 पीएम से 03:29 पीएम और गोधूलि मुहूर्त 06:59 पीएम से 07:21 पीएम तक रहेगा। आचार्य ने बताया कि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की रात श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। जन्माष्टमी केवल उपवास करने का अवसर नहीं है, ये पर्व आत्म-संयम, भक्ति और आंतरिक शुद्धि का माध्यम है। जन्माष्टमी व्रत आत्मिक साधना का एक तरीका है।

व्रत के तीन तरीके

निर्जला व्रत : एक बूंद जल भी नहीं लिया जाता, जब तक मध्यरात्रि में व्रत न खोला जाए।

फलाहार व्रत: फल, दूध, मेवे और व्रत के अनुकूल व्यंजन खाए जाते हैं।

आंशिक व्रत: एक बार भोजन लिया जाता है, जिसमें अनाज और सामान्य नमक नहीं होता।

व्रत के नियम

व्रत कर रहे हैं तो अन्न का त्याग करें। इस दिन गेहूं, चावल, दाल आदि का सेवन नहीं किया जाता। व्रत आमतौर पर फलाहार या निर्जला होता है।

हमें अपने श्रद्धा और सामर्थ्य के हिसाब से व्रत करना चाहिए। व्रत के लिए अलग भोजन तैयार करना चाहिए। व्रत का खाना साफ बर्तनों में, साफ-सुथरे रसोईघर में बनाया जाए।

इस दिन तामसिक भोजन जैसे लहसुन और प्याज मन की एकाग्रता को भंग करते हैं। इसलिए इनसे बचना चाहिए।

व्रत कर रहे हैं तो साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा-स्थल को भी साफ-सुथरा रखें।

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