रांची। राजधानी स्थित पहाड़ी मंदिर की 20 दानपेटियों में रखे लाखों रुपये के नोट सड़-गल गये हैं। इसका खुलासा मंगलवार को हुआ। रांची डीसी के निर्देश पर पांच अधिकारियों के नेतृत्व में बनी टीम ने मंगलवार को पहाड़ी मंदिर पहुंच कर दान पेटी खुलवाये। पहले दिन सात दान पेटियां खोली गयीं, जिनमें सवा लाख रुपये से ज्यादा के नोट सड़ गल गये हैं। यहां कुल 20 दान पेटियों में लंबे समय से श्रद्धालुओं द्वारा डाले गये श्रद्धा दान के पैसे पड़े हैं। अभी मात्र सात पेटियां ही खुली हैं। लोग आशंका जता रहे हैं कि अभी और लाखों रुपये के ऐसे नोट मिल सकते हैं। ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
जिन अधिकारियों के जिम्मे यह सब कुछ सौंपा गया है, वे काम बोझ तले इतने दबे हुए हैं कि चाहकर भी इन सबके लिए समय नहीं दे पाते : एक अनुमान के मुताबिक पहाड़ी मंदिर में हर वर्ष डेढ़ से दो करोड़ रुपये भक्तों से दान स्वरूप मिलते हैं। मंदिर परिसर में इन पैसों की सुरक्षा के कोई इंतजाम भी नहीं हैं। मंदिर के कर्मचारियों-पुजारियों के भरोसे लाखों रुपये की निगरानी हो रही है। पहाड़ी मंदिर विकास समिति के लोग गायब है। रांची पहाड़ी मंदिर के इस नये खुलासे से पूरी रांची स्तब्ध है। खास तौर पर वे भक्त जो यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं, तो श्रद्धा पूर्वक कुछ दान जरूर दान पेटी में डालते हैं, ताकि मंदिर का विकास हो सके और पुजारी तथा अन्य लोगों को वेतन आदि मिलता रहे। श्रद्धालु भगवान की पूजा-अर्चना के साथ-साथ मंदिरों में दान भी करते हैं, लेकिन जब भक्तों के दान के लाखों रुपये दानपेटी में ही सड़ जाये, तो इसे क्या कहेंगे। रांची के अति प्राचीन पहाड़ी मंदिर की दान पेटियों में लाखों रुपये सड़ गये।

करीब चार महीने से मंदिर की दानपेटियों को नहीं खोला गया : मंंगलवार को जब जिला प्रशासन के पांच मजिस्ट्रेटों की निगरानी में पहाड़ी मंदिर की दान पेटियों को खोला गया तो लाखों रुपये के सड़े-गले नोट उनमें से बाहर निकले। मंदिर के मुख्य पुजारी मनोज कुमार मिश्रा का कहना है कि इसके लिए जिला प्रशासन दोषी है। सावन से पहले हर दानपेटी को सील कर दिया गया, पर उसे समय पर खुलवाया नहीं गया। नोट दान पेटी में सड़ते रहे और मंदिर के पुजारियों को पिछले चार माह से वेतन तक नहीं मिला। इससे लोग ज्यादा आहत हैं। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि यह सारी व्यवस्था ही गड़बड़ है। राज्य सरकार को चाहिए कि मंदिर संचालन की जिम्मेदारी किसी ऐसे अधिकारी को सौंपी जानी चाहिए, जो थोड़ा समय दे सके। जिसे पास वित्तीय अधिकार हों और वह पुजारियों के वेतन आदि के भुगतान के अलावा मंदिर के विकास के लिए भी समय निकाल सके। अभी फिलहाल राज्य में जितने भी बड़े मंदिर या इनसे जुड़े ट्रस्ट हैं, उनकी समितियों के पदेन सर्वेसर्वा संबंधित जिला के डीसी ही होते हैं। अब डीसी के पास काम का इतना अधिक बोझ है कि वे चाहकर भी इसके लिए समय नहीं निकाल पाते। इसका नतीजा सामने है कि दानपेटी में नोट पड़े-पड़े सड़ गये और उधर पुजारियों को तीन माह से वेतन तक नहीं मिला। यह व्यवस्था चौंकानेवाली है।

ऐसे में आखिर प्रश्न उठता है कि क्या हो इसका समाधान। इसका समाधान भी रांची की जनता ही बता रही है। लोगों का कहना है कि सभी मंदिर और इनके ट्रस्ट की संरचना का पुनर्गठन होना चाहिए। लोगों का कहना है कि तिरुपति और दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों की तरह यहां भी दान के पैसे सीधे मंदिर के एकाउंट में जमा कराने की व्यवस्था होनी चाहिए। तिरुपित और दक्षिण भारत के कई मंदिरों में आॅनलाइन दान की राशि जमा किये जाने की व्यवस्था है। इससे पारदर्शिता भी बनी रहती है और बैंकों से ही सीधे पुजारी आदि के मानदेय का भुगतान होगा। इस तरह की व्यवस्था में नोटों के सड़ने और गलने तथा चोरी होने का डर भी नहीं रहेगा।

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