- सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में एससी/एसटी कानून के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगायी थी
- अप्रैल में दलितों ने भारत बंद बुलाया था, इस दौरान 12 राज्यों में हिंसा हुई थी
नयी दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलकर नया कानून बनाने के विरोध में सवर्ण संगठनों ने गुरुवार को भारत बंद बुलाया है। बंद का सबसे ज्यादा असर बिहार में देखा जा रहा है। बिहार के दरभंगा, आरा और मुंगेर में प्रदर्शन हुए। यहां प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनें रोक दीं। उधर, उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और भोपाल में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। मध्यप्रदेश में स्कूल-कॉलेज और पेट्रोल पंपों को दिनभर के लिए बंद रखा गया। इसके अलावा, 35 जिलों में हाईअलर्ट घोषित किया है। इससे पहले दलित संगठनों ने भी 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया था।
एससी/एसटी एक्ट : फैसला, विरोध और संशोधित कानून
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी अत्याचार निवारण एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी और अग्रिम जमानत से जुड़े कुछ बदलाव किए थे। अदालत का कहना था कि इस एक्ट का इस्तेमाल बेगुनाहों को डराने के लिए नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया था। इस बंद का कई राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन भी किया था। इस दौरान 10 से ज्यादा राज्यों में हिंसात्मक प्रदर्शन हुआ और 14 लोगों की मौत हुई थी।
प्रदर्शनों का सबसे ज्यादा असर मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 अप्रैल को कहा था, “मैं देश को विश्वास दिलाता हूं कि जो कड़ा कानून बनाया गया है, उसे प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।” केंद्र सरकार पर विपक्ष और एनडीए के सहयोगी दल अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले बदलने की मांग कर रहे थे। इसके बाद केंद्र ने संसद के मानसून सत्र में एक बिल पास कर संशोधित कानून बनाया। सरकार का दावा है कि कानून अब पहले से भी सख्त है।
अदालती फैसले और संशोधित कानून में तीन बड़े फर्क
सुप्रीम कोर्ट का फैसला संशोधित एससी/एसटी कानून
शिकायत मिलते ही एफआईआर नहीं, पहले डीएसपी स्तर के अधिकारी से जांच। एफआईआर के लिए प्राथमिक जांच जरूरी नहीं।
तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी, सक्षम अधिकारी से मंजूरी जरूरी। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत जांच अधिकारी को गिरफ्तारी का अधिकार।
आरोपियों को अग्रिम जमानत का अधिकार। अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी।
हाल ही में उत्तर भारत के कुछ राज्यों में प्रदर्शन तेज हुए हैं। विरोध करने वालों का कहना है कि एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग अन्य पिछड़ा जाति और सामान्य जाति के लोगों को फंसाने में किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था।
एससी-एसटी कानून का मुद्दा इसलिए भी गरमाया हुआ है क्योंकि, देश में 17% दलित वोट हैं। इनका 150 से अधिक लोकसभा सीटों पर प्रभाव है। 131 सांसद इसी वर्ग से हैं। अप्रैल में जिन 12 राज्यों में हिंसा हुई, वहां एससी/एसटी वर्ग से 80 लोकसभा सदस्य हैं। एनसीआरबी के मुताबिक देशभर में एससी-एसटी एक्ट के तहत 47,369 शिकायतें दर्ज हुई थीं। इसमें से 13% यानी 6259 शिकायतें झूठी पाई गईं। मध्यप्रदेश में 2014 में एससी-एसटी एक्ट के तहत मप्र में 4871 मामले दर्ज थे, जो 2017 में बढ़कर 8037 हो गए।
संशोधित कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के ग्वालियर स्थित आवास पर प्रदर्शन हुआ। राज्य में मंत्री माया सिंह को काले झंडे दिखाए गए। विदिशा में विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर को भी विरोध का सामना करना पड़ा। कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के सामने भी नारेबाजी हुई। बढ़ते विरोध की वजह से पुलिस ने ग्वालियर में मंत्रियों के बंगलों पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी है। ग्वालियर-चंबल अंचल के सभी सांसद, मंत्री और विधायकों ने बुधवार और गुरुवार के तमाम सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। प्रशासन ने ग्वालियर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर और दतिया में धारा 144 लागू कर सभा, जुलूस और प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी है।