कांके. झारखंड के निवासियों को डायरिया और रतौंधी जैसे रोगों से राहत दिलाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास शुरू हो चुका है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में इसी खरीफ मौसम से काम शुरू कर दिया है। राज्य के लोगों का मुख्य भोजन चावल है। लेकिन, यहां उपजाई जाने वाली चावल की किस्मों में जिंक और आयरन दोनों की प्रति ग्राम उपलब्धता आवश्यक औसत से कम है। चावल में जिंक की उपलब्धता की कमी डायरिया का प्रमुख कारण है। आयरन की कमी से रतौंधी की समस्या लोगों में होती है। लोग प्रमुख आहार के तौर पर प्रतिदिन इसका ही सेवन करते हैं।
काफी कम रहते हैं जिंक और आयरन : बीएयू के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. डीएन सिंह के अनुसार, चावल में जिंक की औसत मात्रा प्रति ग्राम 8 से 10 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) होनी चाहिए। लेकिन, मौजूदा किस्मों में जिंक की मात्रा प्रति ग्राम केवल 5 से 6 पीपीएम ही पाई जा रही है। वहीं आयरन की मात्रा प्रति ग्राम चावल में 18 से 20 पीपीएम की जगह 14 से 16 पीपीएम ही मिल रहा है। आवश्यक मात्रा में इन तत्वों की कमी होने के कारण डायरिया और रतौंधी जैसे रोग का प्रभाव लोगों पर ज्यादा पड़ता है।
बीएयू ने 50 जिनोटाइप का शुरू किया ट्रायल : डॉ. डीएन सिंह ने बताया कि राज्य में लगाए जाने वाली चावल की किस्मों में जिंक और आयरन की कमी को देखते ऐसी नई किस्मों के विकास की दिशा में काम आरंभ किया गया है, जिनमें ये पर्याप्त मात्रा में मिल पाएं। इसके लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ से चावल के ऐसे 50 जिनोटाइप मंगवाए गए हैं, जिनमें जिंक और आयरन की पर्याप्त औसत मात्रा पाई जाती है। इनका ट्रायल इसी खरीफ मौसम से बीएयू के रिसर्च फील्ड में शुरू कर दिया गया है। डॉ. सिंह ने कहा कि सामान्यतः 10-12 साल परीक्षण में लग जाते हैं।
इस तरह तैयार होगा जिनोटाइप : इस साल प्रशिक्षण में धान लगाया है। धान होने के बाद देखा जाएगा कि झारखंड के जलवायु और मिट्टी के कारण इसमें जिंक और आयरन की कितनी मात्रा है। रवि सीजन में कटक में यही बीज लगाई जाएगी। इससे जो बीज उत्पन्न होगा, उसे अगले साल रांची बीएयू में लगाया जाएगा। इस तरह इसका 6-7 सात जेनरेशन तैयार होगा। इसमें जो जिनोटाइप बढ़िया होगा, उसे किसानों के खेती के लिए दे दिया जाएगा।