- 4600 करोड़ में टाटा स्टील ने खरीदा
रांची। आज मैं उस उषा मार्टिन स्टील डिवीजन के बारे में आपको जानकारी दे रहा हूं, जिसे अभी-अभी टाटा स्टील ने खरीद लिया है। झारखंड की एक बड़ी कंपनी थी उषा मार्टिन स्टील डिवीजन। पिछले कुछ वर्षों से इस कंपनी की आर्थिक स्थिति डावांडोल थी, जिसके कारण उषा मार्टिन प्रबंधन ने इसे बेचने का फैसला किया। उषा मार्टिन लिमिटेड में शेयर बाजार को उपलब्ध करायी गयी अपनी जानकारी में कहा है कि इस्पात कारोबार को टाटा को बेचने से कंपनी को अपने कर्ज बहुत हद तक कम करने में मदद मिलेगी।
1974 में स्थापना हुई थी : प्राप्त जानकारी के मुताबिक उषा मार्टिन स्टील डिवीजन की स्थापना 1974 में हुई थी। उषा मार्टिन ने सरायकेला-खरसावां, तत्कालीन सिहभूम जिले के गम्हरिया में इस स्टील प्लांट की स्थापना कर झारखंड के आद्योगिक जगत में एक नयी कहानी लिखी थी। इस प्लांट से प्रतिवर्ष एक हजार टन उत्पादन हो रहा था। शुरू के वर्षों में इस कंपनी ने काफी अच्छा कारोबार किया था। 44 साल में ही इस कंपनी की कहानी अब खत्म हो गयी। झारखंड गठन के समय यह कंपनी अपने उत्कर्ष पर थी और टाटा स्टील के बाद झारखंड में स्टील डिवीजन में यह कंपनी काफी अच्छा कर रही थी। हाल के वर्षों में इस कंपनी की हालत खस्ता होने लगी थी। यहां काम करनेवाले कर्मचारियों का भविष्य भी अंधकारमय होने लगा था। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उषा मार्टिन ने बैंक से काफी पैसा कर्ज लिया था और वह लौटाने की स्थिति में नहीं थी। धीरे-धीरे बैंक अपनी कर्ज वसूली के लिए दबाव बढ़ा रहा था। दो साल से लगातार दबाव बढ़ रहा था। उस दबाव के कारण ही उषा मार्टिन प्रबंधन ने कंपनी को बेचने का फैसला लिया।
22 सितंबर को उषा मार्टिन बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स की बैठक हुई: प्राप्त जानकारी के अनुसार 22 सितंबर को दिन के डेढ़ बजे उषा मार्टिन बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स की बैठक हुई। यह बैठक करीब दो घंटे चली। बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि इसे टाटा स्टील के हाथों बेच दिया जाये। जानकारों का कहना है कि टाटा स्टील ने इस कंपनी का करार पहले ही हो चुका था और बोर्ड की बैठक के निर्णय के बाद कागजी औपचारिकता भी पूरी कर ली गयी। टाटा स्टील ने इस कंपनी को 4600 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कंपनी की माली हालत के पीछे औद्योगिक मंदी तो एक कारण थी ही, एक कारण पारिवारिक मनमुटाव भी था। कंपनी के डायरेक्टरों के बीच पिछले दो-तीन सालों से आपसी संबंध काफी कटु हो गये हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि ये लोग एक दूसरे के खिलाफ कानून की शरण में भी गये हैं। आपसी मनमुटाव एक बड़ा कारण है कंपनी की स्थिति डांवाडोल बनाने में
टाटा के हाथों करार होने से कंपनी के कर्मचारी काफी खुश हैं। उनका मानना है कि अब उन्हें समय से तनख्वाह मिलने लगेगी और कंपनी भी बंदी से बच जायेगी। कर्मचारियों की खुशी जायज है। पिछले कुछ सालों से कंपनी की माली हालत देख कर उनकी चिंताएं बढ़ गयी थीं और उनका भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था। अब उस धुंध पर से परदा उठ गया है और अब वे खुश हैं। आजाद सिपाही के खबर विशेष में बस इतना ही। देश दुनिया की तमाम खबरों के लिए आप पढ़ते रहिए अपना लोकप्रिय दैनिक अखबार आजाद सिपाही। पल पल की खबरों के लिए लिए आप आजाद सिपाही की वेब साइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूडॉटआजादसिपाहीडॉटकॉम को अवश्य विजिट करें। और हां, आप आजाद सिपाही के यू ट्यूब चैनल को अवश्य सब्सक्राइब करें। धन्यवाद।