झारखंड की राजनीति में आजसू उभरती हुई पार्टी रही है। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो पार्टी को विस्तार देने के लिए रणनीति बनाते रहे हैं। यह उनकी स्मार्ट राजनीति का ही कमाल है कि सुदेश महतो वर्ष 2009 में राज्य के डिप्टी सीएम बन पाने में सफल रहे। इससे पहले भी वह राज्य कैबिनेट का हिस्सा रहे। सिल्ली से सुदेश वर्ष 1999, 2004 और 2009 में चुनाव जीतने में भी सफल रहे हैं। हालांकि इस सीट पर दो बार उन्हें पराजय का सामना भी करना पड़ा है। अपनी पराजय से सबक लेते हुए इस बार सुदेश ने सिल्ली में अपनी पकड़ इतनी मजबूत कर ली है कि क्षेत्र की वर्तमान विधायक सीमा महतो और पूर्व विधायक अमित महतो असहज महसूस कर रहे हैं। यह सुदेश महतो की ही रणनीति का कमाल है कि पार्टी ने आनेवाले विधानसभा चुनाव में झारखंड की 81 में से 20 विधानसभा सीटोें पर दावेदारी की है और पार्टी ने जो तर्क और राजनीतिक समीकरण भाजपा के समक्ष रखा है, उसमें इसकी पूरी संभावना है कि उसे डबल डिजिट में सीटें मिल जायें। आजसू ने रा20 सीटों पर अपना दबदबा कायम कर लिया है और भाजपा आलाकमान को सौंपी सूची में हर सीट के साथ मजबूत तर्क भी दिया है। आजसू की राजनीति और आस् विधानसभा चुनावों में डबल डिजिट में उसकी सीटें हासिल करने की रणनीति को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
जितना संख्या बल, राजनीति मेें उतना बड़ा दल। झारखंड की राजनीति में इस सूत्र वाक्य को चरितार्थ करने में जितना भाजपा जुटी हुई है, उतनी ही उसकी सहयोगी आजसू। बीते विधानसभा चुनाव में अकेले 37 सीटें जीतनेवाली भाजपा झाविमो के छह विधायकों को तोड़ कर 43 विधायकों वाली पार्टी बन गयी। वहीं आजसू ने पांच सीटें जीती और आसन्न विधानसभा चुनावों में उसका दावा कम से कम 20 सीटों पर है। इन सीटों की दावेदारी करते हुए उसने अपनी सहयोगी भाजपा को पुख्ता तर्क दिये हैं कि क्यों इन सीटों पर उसे अपना उम्मीदवार उतारने की अनुमति दी जानी चाहिए। आजसू की यह दावेदारी भाजपा को कितनी स्वीकार्य होगी, यह तो पार्टी का संसदीय बोर्ड तय करेगा, पर यह तो तय है कि आजसू के इस दावे को पूरी तरह खारिज करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। असल में आजसू ने इन सीटों पर राजनीतिक समीकरणों का गुणा-भाग इस तरह से पेश किया है कि भाजपा इस प्रस्ताव को नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है। पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने बताया कि आसन्न विधानसभा चुनाव में पार्टी डबल डिजिट पर चुनाव में जायेगी। सीटों के बंटवारे पर सामूहिक रूप से निर्णय लिया जायेगा। जहां जिस पार्टी का आधार मजबूत हो, वहां से उसे लड़ना चाहिए।
स्मार्ट राजनेता हैं सुदेश महतो
21 जून 1974 को सिल्ली में जन्मे आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो स्मार्ट राजनेता हैं और राजनीति जैसे उनकी रग-रग में है। पार्टी को नयी उंचाइयों तक पहुंचाने के लिए सुदेश सिल्ली हो या झारखंड की कोई और सीट, सबमें जीत की न सिर्फ संभावनाएं तलाश रहे हैं, बल्कि जिताऊ उम्मीदवार का मनोबल बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बोकारो के कसमार में स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो के जन्मदिन पर जहां उन्होंने पार्टी नेता डॉ लंबोदर महतो के लिए पिच तैयार की, वहीं चंदनकियारी में उमाकांत रजक के संघर्ष की सराहना करते हुए चंदनकियारी सीट उनके खाते में चली आये, इसकी भी रणनीति तैयार की।
इन सीटों पर आजसू का है दबदबा
आसन्न विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर आजसू का दबदबा अभी से दिख रहा है, उनमें आजसू का गढ़ सिल्ली, रामगढ़, जुगसलाई, टुंडी, तमाड़, सिमरिया, गोमिया, चंदनकियारी, डुमरी, पांकी, बड़कागांव, पाकुड़, लोहरदगा, मांडू, ईचागढ़, बरही, सिंदरी, मझगांव, चक्रधरपुर के अलावा कांके, हटिया तथा खिजरी में से कोई एक सीट शामिल है। आजसू की सीट की रणनीति को देखते हुए भाजपा ने भी पार्टी से लोहरदगा सीट छोड़ने को कहा है। चंदनकियारी सीट पर भी भाजपा अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है, पर सुदेश महतो की इच्छा यहां से प्रत्याशी उतारने की है। आजसू के लिए झारखंड विधानसभा चुनावों में सबसे महत्वपूर्ण सीट सिल्ली है। इस सीट से वर्ष 2019 में जीत हासिल करने के लिए सुदेश महतो ने खुद को झोंक दिया है। चाहे वह सोनाहातू में करम अखरा का भव्य आयोजन हो या बिरसा आहार योजना या फिर बुजुर्गों को पेंशन देने की योजना, क्षेत्र की जनता का दिल जीतने के लिए सुदेश कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। बीते विधानसभा चुनाव में बड़कागांव सीट पर आजसू प्रत्याशी हार गये थे। पर अपनी हार से सबक लेते हुए आजसू यहां संगठन को मजबूत करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। यहां पर भाजपा के पास राकेश प्रसाद उम्मीदवार के तौर पर हैं, पर वे बहुत मजबूत नहीं हैं। रामगढ़ सीट से वर्तमान में गिरिडीह के सांसद बन चुके चंद्रप्रकाश चौधरी जीते थे। इस सीट पर आजसू का मजबूत जनाधार है और यहां से चंद्रप्रकाश अपनी पत्नी सुनीता देवी को चुनाव लडाÞयेंगे। जुगसलाई सीट पर भाजपा सरकार में मंत्री रहे रामचंद्र सहिस जीते हैं। यहां आजसू दुबारा जीत हासिल करने के लिए बिसात बिछा चुका है। टुंडी सीट से स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो के सुपुत्र राजकिशोर महतो ने जीत हासिल की थी। इस बार भी पार्टी उन्हें ही चुनाव के मैदान में उतारेगा। तमाड़ सीट से आजसू के विकास मुंडा ने जीत हासिल की थी, पर वह रास्ता अख्तियार कर चुके हैं। तमाड़ सीट पर भाजपा से मजबूत आजसू का उम्मीदवार है। पार्टी के पास यहां से कई मजबूत उम्मीदवार हैं। उसका तर्क है कि विकास मुंडा झामुमो या जदयू का दामन थाम सकते हैं और यह आजसू के लिए हितकर साबित नहीं होगा। पार्टी यहां दूसरे उम्मीदवार को भी मौका दे सकती है। पार्टी को विकास मुंडा के मामले में त्वरित निर्णय लेना होगा। सिमरिया सीट पर झाविमो के टिकट से चुनाव लड़कर जीते गणेश गंझू भाजपा में शामिल हो चुके हैं। आजसू के पास भी इस सीट के लिए उम्मीदवार है, पर भाजपा यहां से गणेश गंझू को ही लड़ाना चाहेगी। इस सीट पर भाजपा कभी मजबूत नहीं रही है। इसलिए इस सीट पर दोनों दलों के बीच मिलकर रास्ता निकालने की नौबत आ सकती है। डुमरी सीट पर झामुमो या क्षेत्रीय दलों के प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं। भाजपा यहां कभी जीत हासिल नहीं कर पायी है। ऐसे में आजसू यहां अपना प्रत्याशी उतारना चाहता है। गोमिया सीट पर 2018 के विधानसभा उपचुनावों में आजसू के लंबोदर महतो दूसरे स्थान पर रहे थे। इस सीट पर भी भाजपा के पास तगड़ा उम्मीदवार नहीं है। ऐसे में इस सीट पर भी आजसू अपना उम्मीदवार उतारना चाहता है। डुमरी में कुर्मी मतदाताओं पर आजसू की मजबूत पकड़ है। इसी तरह पाकुड़ सीट पर अलग झारखंड राज्य बनने यानि वर्ष 2000 से भाजपा ने कभी जीत हासिल नहीं की है। इस सीट पर झामुमो या कांग्रेस में से किसी एक का प्रत्याशी जीत हासिल करता रहा है। आजसू अपने टिकट पर झामुमो के पूर्व विधायक अकील अख्तर को चुनाव लड़ा सकता है। मांडू सीट पर भी भाजपा के पास कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है। यदि झामुमो के बागी जेपी पटेल को भाजपा टिकट दे भी देती है, तो मुसलमानों का वोट यहां भाजपा को नहीं मिलेगा, जबकि आजसू के साथ यह स्थिति नहीं है। आजसू मुसलमानों के बीच भी उतना ही स्वीकार्य है जितना अन्य जातियों के बीच। लोहरदगा सीट आदिवासी और मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यह सीट आजसू को न देकर यदि भाजपा अपना उम्मीदवार देती है, तो मुसलमानों का वोट उसे किसी हालत में नहीं मिलेगा। बरही सीट से भी भाजपा के पास कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है। यदि कांग्रेस से मनोज यादव को पार्टी अपने पाले में लाने में सफल होती है, तो पार्टी यहां से जीत सकती है, पर मनोज कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आयेंगे, इसकी संभावना कम है। सिंदरी सीट में बंगाली वोटर निर्णायक भूमिका में हैं और यहां से आजसू प्रत्याशी के जीतने की संभावना अधिक है। चक्रधरपुर सीट वर्ष 2014 के चुनावों में भाजपा ने आजसू को नहीं दी। नतीजा यह निकला कि झामुमो के टिकट पर शशिभूषण सामड यहां से चुनाव जीते। हटिया सीट पहले आजसू की ही थी पर इस सीट पर भाजपा के पास भी उम्मीदवार है।
2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो के नेतृत्व में आजसू ने उल्लेखनीय सफलता हासिल करते हुए लोकसभा तक का सफर तय कर लिया। अब पार्टी झारखंड में अपना जनाधार और मजबूत करने के लिए प्रयासरत है।