पिछले साल मई में 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में झारखंड की जिस एक सीट की चर्चा देश भर में हुई, वह थी दुमका। यहां से भाजपा के युवा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने झारखंड के सबसे वरिष्ठ और प्रतिष्ठित नेता शिबू सोरेन को हरा कर पहली बार लोकसभा में प्रवेश की पात्रता हासिल की थी। उन्हें ‘जाइंट किलर’ और ‘झारखंड का भावी नेता’ बताया गया था, लेकिन पिछले 17 महीने में सुनील सोरेन का एक सांसद के रूप में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक ही कहा जा सकता है। लोकसभा में उनकी आवाज महज दो बार सुनाई दी है और वह भी शून्यकाल में। इसके अलावा उन्होंने अब तक न कोई सवाल पूछा है और न ही किसी बहस में हिस्सा लिया है। वह झारखंड के पहले ऐसे सांसद हैं, जिन्होंने लोकसभा में कोई सवाल नहीं पूछा है। इसलिए अब सुनील सोरेन का उनकी पार्टी में ही विरोध शुरू हो गया है। उनके संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले सारठ विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक रणधीर सिंह ने अपने ही सांसद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह पहला मौका नहीं है, जब सुनील सोरेन विवादों में घिरे हैं। लॉकडाउन के दौरान नौ अगस्त को एक आॅडियो के वायरल होने के बाद भी वह विवादों में घिर गये थे। दुमका जैसी प्रतिष्ठित सीट के सांसद की निष्क्रियता लोगों के गले नहीं उतर रही है। सुनील सोरेन के सांसद के रूप में अब तक के कामकाज और उनसे जुड़े विवादों पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
पिछले महीने की शुरुआत में झारखंड की उप राजधानी दुमका के मसलिया का चरण किस्कू रांची आया था। उसका कोई रिश्तेदार बीमार था और रांची के एक अस्पताल में भर्ती था। संयोग से अस्पताल के बाहर उससे मुलाकात हुई। वह बेहद निराश था। कारण पूछे जाने पर उसने कहा, हम तो फूल पर वोट मारे थे। हमको सुनील बाबू पर पूरा भरोसा था। जीतने के बाद उन्होंने भरोसा भी दिया था कि अब दुमका में कोई समस्या नहीं रहेगी। लेकिन एक साल में ही वह अपना वादा भूल गये। अब तो उनका दर्शन भी नहीं होता है। चरण किस्कू तो एक मतदाता मात्र है। मंगलवार को जब दुमका संसदीय क्षेत्र की सारठ विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक रणधीर सिंह ने अपनी ही पार्टी के सांसद सुनील सोरेन पर निशाना साधा, तो पिछले साल का वह मंजर बरबस याद आ गया, जब मई के आखिरी सप्ताह में 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव की मतगणना चल रही थी। झारखंड के लोगों की नजर अपनी संसदीय सीट के परिणाम के अलावा दुमका सीट के नतीजों पर थी, जहां का मुकाबला बेहद रोमांचक था। राज्य के सबसे प्रतिष्ठित राजनेता शिबू सोरेन वहां कभी अपने शिष्य रहे भाजपा के युवा प्रत्याशी सुनील सोरेन से मुकाबला कर रहे थे। चुनाव परिणाम घोषित हुआ और सुनील सोरेन ‘जाइंट किलर’ बन कर उभरे। झारखंड की उप राजधानी में उस रात विशाल विजय जुलूस निकला और सांसद सुनील सोरेन ने एलान किया कि अब दुमका की तमाम समस्याएं चुटकियों में सुलझ जायेंगी। लोगों ने उनके आश्वासन पर ऐतबार किया और इंतजार करते रहे।
लेकिन यह इंतजार अब लंबा होता जा रहा है। लोगों की सब्र की सीमाएं टूटने लगी हैं। शायद इसलिए सारठ के विधायक ने सांसद सुनील सोरेन को निष्क्रिय करार दे दिया है। राज्य की प्रतिष्ठित सीटों में से एक दुमका से पहली बार सांसद चुने गये सुनील सोरेन का अब तक का कामकाज वाकई निराशाजनक ही रहा है। लोकसभा में अब तक केवल दो बार उनकी आवाज सुनाई पड़ी है। पिछले साल जुलाई में 18 और 30 तारीख को उन्होंने शून्यकाल के दौरान दुमका मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई शुरू करने और दुमका में हाइकोर्ट की बेंच स्थापित करने की मांग उठायी थी। इसके अलावा देश की सबसे बड़ी पंचायत में उन्होंने अपनी जुबान अब तक बंद ही रखी है। झारखंड के 14 सांसदों में से पांच पहली बार चुन कर लोकसभा पहुंचे हैं। इनमें सुनील सोरेन के अलावा संजय सेठ, अन्नपूर्णा देवी, गीता कोड़ा और चंद्रप्रकाश चौधरी हैं। इन पांच फर्स्ट टाइमरों में से सुनील सोरेन का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है।
किसी भी जन प्रतिनिधि के लिए यह वाकई निराशाजनक है। केवल संसद में ही नहीं, बाहर भी सुनील सोरेन के खाते में कोई ऐसी उपलब्धि दर्ज नहीं है, जिन्हें लोगों को बताया जा सके। इतना जरूर है कि 25 मार्च को जब देश में लॉकडाउन लागू हुआ था, उन्होंने दुमका और जामताड़ा के जिला प्रशासनों को कोरोना संक्रमितों की देखभाल के लिए 10-10 लाख रुपये दिये थे। यह राशि कहां और कैसे खर्च हुई, इसका पता तो नहीं चल सका है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान नौ अगस्त को सुनील सोरेन उस समय नये विवाद में घिर गये, जब उनका एक आॅडियो वायरल हुआ था। दावा किया गया था कि उस आॅडियो में सांसद बाहर फंसे किसी प्रवासी मजदूर को भला-बुरा कह रहे हैं। इस आॅडियो पर सांसद की ओर से कोई सफाई नहीं आयी।
आखिर सुनील सोरेन इतने चुप क्यों हैं, यह सवाल दुमका ही नहीं, पूरे झारखंड के लोगों के मन में उठ रहा है। पहली बार लोकसभा के लिए चुने गये इस युवा नेता को काठ क्यों मार गया है। इसका जवाब आज किसी के पास नहीं है, भाजपा के पास भी नहीं। सुनील सोरेन न तो सांसद के रूप में सक्रिय हैं और न ही संगठन में ही उनकी कोई भूमिका नजर आती है। पिछले दिनों भाजयुमो की एक वर्चुअल बैठक में उन्होंने भाषण जरूर दिया था।
बहरहाल, अब जबकि सुनील सोरेन को उनकी ही पार्टी के एक विधायक ने ‘गुटबाज’ और ‘निष्क्रिय’ सांसद के विशेषण से विभूषित कर दिया है, यह जरूरी हो गया है कि सांसद अपनी गतिविधियां बढ़ायें। दुमका के सामने बहुत सी समस्याएं हैं और एक सांसद के रूप में सुनील सोरेन को अपनी भूमिका का दायरा बढ़ाना होगा। केवल दुमका के लोग ही नहीं, पूरा झारखंड उन्हें उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है। यदि वह इन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे, तो फिर उनकी चुनौतियां कठिन होती जायेंगी। वैसे कहा जाता है कि लोकतंत्र में कोई भी चीज लंबे समय तक लोगों के मानस पटल पर अंकित नहीं रहती, लेकिन सुनील सोरेन को यह मुगालता नहीं पालना चाहिए। एक सांसद के रूप में उन पर पिछले 17 महीने में सरकारी खजाने से वेतन-भत्ता और अन्य मद में जो करीब 50 लाख रुपये खर्च हुए हैं, उसका हिसाब तो जनता को कामकाज से ही देना होगा। और यह जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ सुनील सोरेन की ही है।