Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Wednesday, May 21
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Jharkhand Top News»मुंबई में डाली जा रही है गलत परंपरा की नींव
    Jharkhand Top News

    मुंबई में डाली जा रही है गलत परंपरा की नींव

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskSeptember 9, 2020No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    मुंबई को देश की वाणिज्यिक राजधानी के साथ-साथ सपनों का शहर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां सपनों को पंख मिलते हैं और उन सपनों को कभी न सोनेवाला यह महानगर उड़ान का हौसला देता है। मुंबई की खासियत फिल्मी कहानियों, गीतों से लेकर उपन्यासों तक कई बार दुनिया के सामने रखी जाती रही है। यही कारण है कि 130 करोड़ लोगों का यह देश अपने इस महानगर पर गर्व करता है, उसके लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है। लेकिन पिछले करीब तीन महीने से यह महानगर देश से अलग-थलग पड़ता जा रहा है। इसका कारण यहां के सरकारी संस्थान और यहां की पुलिस है। कतिपय राजनेताओं की शह पाकर ये संस्थाएं मुंबई को खुद की जागीर समझने लगी हैं और इस क्रम में उनके फैसले किसी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की नहीं, बल्कि किसी तानाशाही व्यवस्था के साबित होने लगे हैं। यह खतरनाक होने के साथ-साथ दुखद भी है, क्योंकि जिस मुंबई के लिए पूरे भारत का दिल धड़कता है, उसे किसी एक खास राजनीतिक पार्टी की जागीर समझना और साबित करने का प्रयास करना उस शहर की आत्मा की हत्या करने के समान है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले के बाद मुंबई पुलिस और बृहन्नमुंबई नगरपालिका ने जो रवैया अख्तियार कर रखा है, वह इसी का परिचायक है। मुंबई में हो रहे घटनाक्रमों पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
    आज से करीब ढाई सौ साल पहले 1774 में जब आज के मुंबई और तत्कालीन बंबई के गवर्नर विलियम हर्नबी को वरली और महालक्ष्मी को जोड़ने के लिए एक गैर-कानूनी निर्माण कराने के आरोप में बर्खास्त किया गया, तब उन्होंने कहा था, कुछ मील लंबा हर्नबी वेल्लार्ड भारत के सपनों को जोड़ने का पुल साबित होगा। इस पुल पर आकर लोग खुद को सातवें आसमान पर महसूस करेंगे और यह पुल उनका बाहें फैला कर स्वागत करेगा। हर्नबी वेल्लार्ड के बारे में कही गयी यह बात पूरी तरह सच साबित हुई। विलियम हर्नबी तो वापस ब्रिटेन चले गये, लेकिन उन्होंने अपने पूर्व सम्राट चार्ल्स-2 को दहेज में मिले सात टापुओं वाले इस भूभाग को सपने दिखा दिये थे। पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन डी ब्रिगेंजा से शादी करने के बाद सम्राट ने इस भूभाग को 10 पाउंड की सालाना किराये पर इस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया। उसके बाद कोलाबा, वरली, माजगांव, परेल, कोलाबा, माहिम और बांबे नामक टापुओं को जोड़ने का काम हर्नबी के कारनामे के बाद शुरू हुआ, जिसे आज दुनिया भारत के सबसे चमकीले शहर के रूप में जानती है। दर्जनों कहानियों और फिल्मी गीतों में वर्णित मुंबई की चमक-दमक दुनिया भर को आकर्षित करती है।
    लेकिन आज मुंबई से उसके सपने छीने जा रहे हैं। और यह सब हो रहा है कुछेक सरकारी संस्थाओं की वजह से, जिन्होंने राजनीतिक वरदहस्त पाकर खुद को मुंबई का जागीरदार समझ लिया है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जिस मुंबई को पूरे भारत के लोग अपना मानते हैं और उसकी चमक बरकरार रखने के लिए अपने घरों में अंधेरा रखने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, वही आज उनसे दूर की जा रही है। एक अभिनेता की मौत होती है और उसकी जांच के लिए जब दूसरे राज्य की पुलिस वहां जाती है, तो उसके रास्ते में तरह-तरह की बाधाएं खड़ी की जाती हैं। यहां तक कि कोरोना के नाम पर दूसरे राज्य की राजधानी के पुलिस कप्तान को जबरन क्वारेंटाइन कर दिया जाता है। अब एक अभिनेत्री, जो हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य से वहां जाकर अपना नाम कमाती है, के साथ अनावश्यक विवाद पैदा कर उसे भी रोकने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाये जा रहे हैं।
    यह मुंबई की रवायत नहीं है। मुंबई तो वह शहर है, जो लोगों के सपनों को पंख देता है और उन सपनों को सच करने का भरपूर अवसर देता है। इसलिए मुंबई में रहनेवाला कोई भी व्यक्ति, चाहे गरीब हो या अमीर, कभी अपने शहर से नफरत नहीं करता है। चाहे महालक्ष्मी का मंदिर हो या लालबाग के राजा का दरबार, हाजी अली की दरगाह हो या माहिम चर्च का मास, हर जगह हर समुदाय के लोग इकट्ठे होते हैं और अपनी साझी विरासत पर गर्व करते हैं। लेकिन एक अभिनेता की मौत ने मुंबई के सत्ता के गलियारों में इतनी हलचल पैदा कर दी, राजनेताओं को इतना बेचैन कर दिया कि वे इस संस्कृति की ही बलि चढ़ाने को तैयार हो गये हैं।
    यह दुखद और खतरनाक है। दुखद इसलिए, क्योंकि इससे एक गलत परंपरा की नींव पड़ रही है, जो भारत की एकता और अखंडता के विपरीत है। खतरनाक इसलिए, क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में इस तरह की हरकत से तानाशाही की बू आने लगती है। बृहन्नमुंबई नगरपालिका ने जिस तरह कंगना रनौत के दफ्तर पर छापामारी की और अब उसे गिराने और फिर अभिनेत्री के मुंबई आने पर उन्हें क्वारेंटाइन करने की धमकी दी है, वह कहीं से भी उचित नहीं है। मुंबई पुलिस पर सवाल तो उस दिन ही खड़े हो गये थे, जब उसने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की जांच की भी जरूरत नहीं समझी और पूरे मामले को दाखिल-दफ्तर कर दिया। दूसरी तरफ बीएमसी ने पहले पटना के एसपी को क्वारेंटाइन किया और सुप्रीम कोर्ट तक को इसमें दखल देना पड़ा।
    आखिर ये दोनों संस्थाएं ऐसा क्यों समझती हैं कि मुंबई उनकी जागीर है। दरअसल इसके पीछे का सारा खेल राजनीतिक ताकतें खेल रही हैं। लेकिन इस खतरनाक खेल में राजनीतिक ताकतें यह भूल गयी हैं कि सत्ता तो जनता सौंपती है। और उसका फैसला डंके की चोट पर होता है। इसलिए लोकतंत्र में जनता की अदालत को सबसे बड़ा माना गया है। मुंबई सचमुच किसी की जागीर नहीं है। इसे सजाने-संवारने में, इसे सपनों की नगरी बनाने में पूरे देश के संसाधनों का उपयोग किया गया है और देश का हर व्यक्ति इसे अपनी पहचान से जोड़ कर देखता है। यह उसका अधिकार भी है। उसका यह अधिकार सुरक्षित रहे और हर भारतीय को अपने सपनों को सच करने का मौका मिले, यह सभी राजनीतिक दलों का कर्तव्य है।
    इस कर्तव्य पथ पर यदि मुंबई पुलिस और बीएमसी जैसी संस्थाएं अपने राजनीतिक आकाओं के स्वार्थ के लिए बाधाएं खड़ी करेंगी, तो उन्हें जनता के गुस्से का सामना करना होगा, जिसने ब्रिटिश शासन तक को खदेड़ दिया था। फिर इन छोटे-मोटे सत्ताधीशों की क्या बिसात।

    Foundation of wrong tradition is being laid in Mumbai
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleमुंबई पहुंचीं कंगना रनौत, एयरपोर्ट पर समर्थकों की भारी भीड़
    Next Article कंगना के दफ्तर में तोड़फोड़ को पवार ने बताया ‘गैरजरूरी
    azad sipahi desk

      Related Posts

      शराब घोटाले में तत्कालीन उत्पाद सचिव विनय चौबे व संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह अरेस्ट

      May 20, 2025

      आदिवासी विरोधी सरकार की टीएससी बैठक में जाने का कोई औचित्य नहीं : बाबूलाल मरांडी

      May 20, 2025

      जेपीएससी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू 22 से

      May 20, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • शराब घोटाले में तत्कालीन उत्पाद सचिव विनय चौबे व संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह अरेस्ट
      • आदिवासी विरोधी सरकार की टीएससी बैठक में जाने का कोई औचित्य नहीं : बाबूलाल मरांडी
      • जेपीएससी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू 22 से
      • नये खेल प्रशिक्षकों की बहाली प्रक्रिया जल्द, प्राथमिक सूची तैयार
      • यूपीए सरकार ने 2014 में सरना धर्म कोड को किया था खारिज : प्रतुल शाह देव
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version