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    Home»Top Story»चीन के ‘कर्ज़-जाल’ में फंसा मालदीव क्या भारत के लिए चिंता?
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    चीन के ‘कर्ज़-जाल’ में फंसा मालदीव क्या भारत के लिए चिंता?

    sonu kumarBy sonu kumarSeptember 18, 2020No Comments9 Mins Read
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    अमीनत वहीदा मालदीव की राजधानी माले में टैक्सी चलाती हैं

    कई सालों से मालदीव की राजधानी में टैक्सी चला रही अमीनत वहीदा की कमाई दोगुनी हो गई और एक तरह से वे शुक्रगुज़ार हैं चीन की. लेकिन क्यों?

    मालदीव की राजधानी माले की संकरी और भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर अमीनत टैक्सी चलाती थीं लेकिन एयरपोर्ट के यात्रियों तक उनका पहुंचना मुश्किल था.

    एयरपोर्ट तो दूसरे हुलुमाले द्वीप पर था और वहां जाने के लिए स्पीड बोट का इस्तेमाल किया जाता था.

    लेकिन 2018 में ये सब बदल गया और साथ ही दो बच्चों का अकेले भरण-पोषण कर रही अमीनत की ज़िंदगी भी.

    चीन ने वहां 20 करोड़ डॉलर की लागत से लगभग दो किलोमीटर लंबा और चार लेन चौड़ा पुल बनाया और अब टैक्सी ड्राइवर एयरपोर्ट गेट से ही यात्रियों को ले जा सकते हैं.

    अमीनत ने बताया, “पुल बन जाने के बाद सभी के लिए आना-जाना बहुत आसान हो गया और मेरे जैसे टैक्सी ड्राइवरों को ज़्यादा पैसा बनाने का मौक़ा मिला.”

    मालदीव में ये पहला पुल है और इसकी वजह से हुलुमाले आइलैंड में नई प्रॉपर्टी भी बनने लगी. माले के एक लाख 40 हज़ार लोगों की जनसंख्या के लिए भीड़ से अलग एक विकल्प खुल गया.

    यूं तो विकासशील देशों में चीन के इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की आलोचना होती रहती है लेकिन चीन-मालदीव की दोस्ती के प्रतीक इस सीनामाले पुल को एक सफल प्रोजेक्ट के तौर पर देखा जा सकता है.

    हालांकि मालदीव की वर्तमान सरकार इस प्रोजेक्ट को इस तरह नहीं देखती. सरकार को इस बात की चिंता है कि पर्यटन पर निर्भर रहने वाला ये छोटा सा देश चीन का कर्ज़दार हो गया है.

    2013 में चुने गए चीन समर्थक राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यमीन के राज में कई बड़ी परियोजनाएं शुरू हुईं. ये सीनामाले पुल भी उन्हीं में से एक है. अब्दुल्लाह चाहते थे कि मालदीव की अर्थव्यवस्था बढ़े और उसके लिए उन्होंने अरबों डॉलर चीन से उधार लिए.

    उन्हीं दिनों चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना की शुरुआत कर रहे थे जिसके तहत चीन और बाक़ी के एशिया के बीच सड़कें, सी-लिंक और रेल लाइनें बनाई जानी थी.

    चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यमीन

    अब्दुल्लाह का कार्यकाल मानवाधिकार हनन के लिए भी जाना जाता है लेकिन वो इस आरोप को ख़ारिज करते हैं. उनके कार्यकाल में कई विपक्षी पार्टी नेताओं को, यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को भी जेल में डाला गया.

    लेकिन सितंबर 2018 में, पुल के शुरू होने के कुछ हफ़्तों बाद अब्दुल्लाह मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के इब्राहिम सोलिह से हार गए.

    वहीं, मोहम्मद नशीद ने भी राजनीति में वापसी की. नई सरकार ने जब देश के आर्थिक मामलों पर ध्यान देना शुरू किया तो चौंकाने वाली बातें सामने आई.

    मोहम्मद नशीद जो अब मालदीव की संसद में स्पीकर हैं, उन्होंने बताया कि मालदीव पर चीन का कर्ज़ तीन अरब 10 करोड़ डॉलर का है. इसमें सरकार से सरकार को दिया कर्ज़, सरकारी कंपनियों और मालदीव की सरकार की इजाज़त से मिला प्राइवेट सेक्टर का कर्ज़ भी शामिल है.

    उनकी चिंता है कि देश कर्ज़ के जाल में फंस गया है.

    उन्होंने कहा, “क्या इन परियोजनाओं से उतना पैसा आ सकता है कि कर्ज़ चुका दिया जाए? इन परियोजनाओं के बिज़नेस प्लान को देखने से तो कहीं नज़र नहीं आ रहा कि ये कर्ज़ चुक पाएगा.”

    उनका तर्क है कि इन परियोजनाओं की लागत भी बढ़ा कर लिखी है. कागज़ों में जो कर्ज़ दिया गया है उतना पैसा तो मिला ही नहीं. उन्होंने कहा कि मालदीव को 1.1 अरब डॉलर ही मिला है, हालांकि अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने ऐसा कोई दस्तावेज़ सार्वजनिक नहीं किया.

    वहीं, मालदीव के पूर्व अधिकारी और चीनी प्रतिनिधि उनके गणित को कमज़ोर बताते हैं. उनके मुताबिक़ मालदीव चीन का 1.1-1.4 अरब डॉलर का ही देनदार है. हालांकि ये पैसा भी मालदीव के लिए बहुत ज़्यादा है.

    मालदीव की जीडीपी ही 4.9 अरब डॉलर की है और अगर नशीद के आँकड़ों पर भरोसा किया जाए तो ये कर्ज़ देश की सालाना जीडीपी के आधे से भी ज़्यादा है.

    अगर सरकार की कमाई कम हुई तो कर्ज़ वापसी की सीमा में यानी वित्तीय वर्ष 2022-23 तक मालदीव ये कर्ज़ नहीं चुका पाएगा.

    अगर मालदीव ये कर्ज़ नहीं चुका पाया तो नशीद को चिंता है कि मालदीव का हाल भी श्रीलंका जैसा हो जाएगा. श्रीलंका ने गृह-युद्ध के बाद पुर्ननिर्माण के लिए चीन से अरबों डॉलर का कर्ज़ लिया था जो अब तक चुकाया नहीं जा सका है.

    स्पीकर मोहम्मद नशीद को चिंता है कि अगर मालदीव अपना कर्ज़ नहीं चुका पाया तो उसका हाल भी श्रीलंका जैसा हो जाएगा

    श्रीलंका ने हम्बनटोटा बंदरगाह बनाने में 1.5 अरब डॉलर खर्च किए. लेकिन कुछ सालो में ही इस बंदरगाह को आर्थिक तौर पर चलाए रखना मुश्किल हो गया और श्रीलंका अपना कर्ज़ भी नहीं चुका पाया.

    उसके बाद 2017 में चीन की एक सरकारी कंपनी ने इस बंदरगाह की 70 फ़ीसदी हिस्सेदारी 99 साल के लिए लीज़ पर ले ली.

    इसके साथ-साथ श्रीलंका सरकार को बंदरगाह के आस-पास की 15 हज़ार एकड़ ज़मीन भी इकोनॉमिक ज़ोन बनाने के लिए चीन को देनी पड़ी.

    चीन के लिए ये बंदरगाह रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है. चीन के प्रतिद्वंद्वी भारत के दक्षिणी तट से भी ये कुछ सौ किलोमीटर ही दूर है.

    पिछले साल अमरीका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने भी चीन की आलोचना की थी. उनका कहना था कि चीन राजनीतिक प्रभाव के लिए भ्रष्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर डील करता है और रिश्वत देकर कर्ज़ के जाल में फंसाने वाली कूटनीति का इस्तेमाल कर रहा है.

    चीन ने उनकी टिप्पणी को ग़ैर-ज़िम्मेदाराना कहा था.

    श्रीलंका की हम्बनटोटा बंदरगाह

    एक दुर्लभ बीबीसी इंटरव्यू में चीन के मालदीव में राजदूत झांग लिझुंग ने भी ‘कर्ज़ के जाल में फँसाने’ वाले आरोपों को ख़ारिज किया.

    उन्होंने कहा, “चीन ने कभी भी मालदीव या किसी और विकासशील देश पर उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ अपनी कोई मांग नहीं थोपी है.”

    उन्होंने कहा कि नशीद का तीन अरब डॉलर के कर्ज़ का आँकड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है.

    मालदीव एक पर्यटन स्थल देश के रूप में प्रसिद्ध है लेकिन साथ ही ये रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण लोकेशन पर स्थित है. मालदीव के द्वीप हिंद महासागर में फैले हैं और इस रास्ते से लाखों तेल के टैंकर और जहाज़ गुज़रते हैं.

    भारत और चीन दोनों इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाना चाहते हैं.

    कुछ जानकारों का तर्क है कि राष्ट्रपति अब्दुल्लाह के कार्यकाल में जो चीनी परियोजनाएं मालदीव में पूरी हुई जैसे एयरपोर्ट का विस्तार, उससे मालदीव में पर्यटक बढ़े हैं. उनका कहना है कि दूसरे देशों से इतना पैसा मिलना मुश्किल था.

    मालदीवियन मॉनेटरी अथॉरिटी यानी मालदीव के केंद्रीय बैंक के गर्वनर अली हाशिम कहते हैं कि शायद उस वक़्त कोई और विकल्प नहीं था.

    उन्होंने बताया कि क्षेत्र के दूसरे देश या दूर के देश भी मालदीव को इतना पैसा देने में झिझक रहे थे क्योंकि जो संस्था इस पूरी प्रक्रिया को नियंत्रित करती है, उसे धीरे-धीरे कमज़ोर कर दिया गया.

    इन परियोजनाओं की वजह से देश में पर्यटक बढ़े हैं. पिछले साल रिकॉर्ड 1.7 करोड़ टूरिस्ट आए जिससे 2 अरब डॉलर की कमाई हुई.

    बढ़ते पर्यटन का एक कारण ये भी है कि नई सरकार ने मालदीव में निवेश को बढ़ावा दिया है.

    विदेशी निवेश के नियमों में ढील दी गई ताकि ज्यादा रिजॉर्ट और होटल बन सकें. भारत, थाइलैंड और चीन के निवेशकों ने काफ़ी पैसा लगाया.

    नशीद का कहना है कि उनकी चिंता उस निवेश को लेकर है जहां आइलैंड पर मालदीव और चीन की पार्टनरशिप में रिजॉर्ट और होटल बन रहे हैं.

    उनका कहना है, “ये देखा जा सकता है कि इन प्रोजेक्ट्स में जो मालदीव के पार्टनर हैं, उनके पास ऐसी परियोजनाओं में पार्टनर बनने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था. तो ये चीन के पार्टनर उन्हें कभी भी ख़रीद सकते हैं. मुझे तो लगता है कि बहुत जल्द आइलैंड उनके हाथों में चला जाएगा.”

    चीन के मालदीव में राजदूत झांग इस बात को नहीं मानते और उनका तर्क है कि ये निवेश पूरी तरह से कमर्शियल है.

    उन्होंने कहा, “स्पीकर को सही जानकारी नहीं मिली है. हम कर्ज़ देने से पहले कोई शर्त नहीं रखते. ना ये हुआ है और ना होगा.”

    पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यमीन की पीपल्स नेशनल कांग्रेस भी नशीद के आरोपों को बेबुनियाद बताती है.

    पार्टी के उपाध्यक्ष मोहम्मद हुसैन ने कहा, “एक भी आइलैंड चीनियों को नहीं दिया गया है.”

    मालदीव पर्यटन पर निर्भर देश है

    पिछले साल अब्दुल्लाह यमीन को मनी लांड्रिग के जुर्म में पांच साल जेल की सज़ा हुई. उनकी पार्टी इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताती है.

    कर्ज़ को लेकर डर सिर्फ़ मालदीव में ही नहीं है. एशिया की दूसरे देश भी चीन के ‘बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट’ योजना के अंतर्गत बनने वाली परियोजनाओं की दोबारा समीक्षा कर रहे हैं.

    मलेशिया में सरकार बदलने के बाद पिछले साल मलेशिया ने चीन की लागत से बन रहे रेलवे प्रोजेक्ट पर दोबारा समझौता किया और परियोजना की कीमत मूल लागत की एक तिहाई होकर 11 अरब डॉलर कर दी गई.

    2018 में म्यांमार ने एक कई अरबों वाले चीन की लागत से बन रहे बंदरगाह प्रोजेक्ट की समीक्षा की और उसके बाद इस परियोजना की कीमत मूल लागत की तीन-चौथाई कर दी गई क्योंकि उन्हें डर था कि वो ये कर्ज़ नहीं चुका पाएंगे.

    लेकिन मालदीव मलेशिया और म्यांमार नहीं है और उसकी सौदेबाज़ी करने की शक्ति सीमित है.

    मालदीव पर्यटन पर बहुत निर्भर करता है और कोरोनावायरस महामारी की वजह से पर्यटन काफ़ी प्रभावित हुआ है. जून तक के आंकड़ों के मुताबिक़ विदेशी पर्यटकों का आना 55 फीसदी कम हो गया है. अनुमान है कि अगर महामारी चलती रही तो इस साल देश को 700 करोड़ डॉलर का नुक़सान झेलना पड़ सकता है जिसमें एक तिहाई हिस्सा पर्यटन की वजह से है.

    माले में अधिकारियों का कहना है कि महामारी की वजह से चीन ने आंशिक तौर से कर्ज़ देनदारी को कुछ वक्त के लिए स्थगित कर दिया है.

    लेकिन फिर भी एक चिंता है कि कहीं मालदीव ने उधार के बदले अपना भविष्य तो गिरवी नहीं रख दिया.

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    sonu kumar

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