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    Home»Top Story»जम्मू-कश्मीर: सुरक्षा बलों के लिए अब ये है ‘यस’ का मतलब, पूर्व वजीर-ए-आला फिरन में रखते थे ‘पड़ोसी’ का ‘नमक’
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    जम्मू-कश्मीर: सुरक्षा बलों के लिए अब ये है ‘यस’ का मतलब, पूर्व वजीर-ए-आला फिरन में रखते थे ‘पड़ोसी’ का ‘नमक’

    sonu kumarBy sonu kumarSeptember 3, 2021No Comments5 Mins Read
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    अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि अब पाकिस्तान नए सिरे से भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन के बयान से ‘पड़ोसी’ मुल्क खुश है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके पास जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज उठाने का अधिकार है। केंद्रीय सुरक्षा बलों के रिटायर्ड अधिकारी बताते हैं, जम्मू-कश्मीर में सेना और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की पकड़ बहुत मजबूत हो चुकी है। अस्सी के दशक में जब 10 हजार आतंकी एक साथ निकलते थे, तब भारतीय सुरक्षा बलों ने उन्हें शांत कर दिया था। उस दौर में जम्मू-कश्मीर के पूर्व वजीर-ए-आला की ‘फिरन’ में रखा ‘पड़ोसी’ मुल्क का ‘नमक’ जब आतंकियों को नहीं बचा जा सका, तो वे आज भी नहीं बचेंगे। आज के जम्मू-कश्मीर में ‘यस’ का कुछ मतलब है। न फोर्स की कमी है, न तकनीक की। घाटी के युवाओं को बरगलाने वाले चुप बैठ जाएंगे।

    भारत की तरफ से तालिबान को लेकर अभी बहुत सधी हुई बयानबाजी सामने आ रही है। ‘वेट एंड वॉच’ के आधार पर आगे बढ़ा जा रहा है। इस बीच तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने भले ही यह कह दिया है कि अमेरिका के साथ हुए दोहा समझौते के तहत किसी भी देश के खिलाफ सशस्त्र अभियान चलाना, उनकी नीति का हिस्सा नहीं है। एक मुसलमान के तौर पर, भारत के कश्मीर में या किसी और देश में, मुस्लिमों के लिए आवाज उठाने का अधिकार हमारे पास है। हम आवाज उठाएंगे और कहेंगे, मुसलमान आपके लोग हैं, अपने देश के नागरिक हैं। वे आपके कानून के अंतर्गत समान हैं। उनके इस तीखे बयान के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं, जो भी हो, कश्मीर या देश के किसी दूसरे हिस्से में अगर कोई बाहरी ताकत हस्तक्षेप करती है तो उसे मुंहतोड़ जवाब देंगे।

    जम्मू-कश्मीर में कुल मिलाकर स्थिति कैसी है, इस सवाल का जवाब सीआरपीएफ के पूर्व आईजी कमलकांत शर्मा ने कुछ अलग ही तरीके से दिया है। बता दें कि कमलकांत शर्मा, लंबे समय तक घाटी में आतंकी आपरेशनों से जुड़े रहे हैं। वे पिछले दिनों ही बल से सेवानिवृत हुए हैं। उन्होंने कहा, आतंकी संगठनों के मददगार, जिन्होंने मानवाधिकारों का लबादा पहन रखा है, अब उनकी संख्या बहुत कम रह गई है। वे अनावश्यक तौर से मानवाधिकारों का रोना रोते हैं। जब घाटी में कोई आतंकी मारा जाता है तो उसे पाकिस्तानी मीडिया ‘शहादत’ बताता है। ‘अनुच्छेद 370’ का हौवा ज्यादा बना रखा था। सरकार को यह अनुच्छेद बहुत पहले ही समाप्त कर देना चाहिए था। घाटी में आतंकियों और उनके मददगारों पर सख्ती के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। ध्यान रहे कि आतंक का कोई मानवाधिकार नहीं होता।

    पूर्व अधिकारियों का कहना है, 31 साल पुराने रूबिया सईद अपहरण केस के दौरान एक खुलासा हुआ था। उस वक्त आतंकवाद का दौर चरम पर था। रूबिया सईद, देश के तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी थीं। फारूक अब्दुल्ला तब जम्मू-कश्मीर के वजीर-ए-आला यानी मुख्यमंत्री थे। उस वक्त भी आतंकियों के सामने कोई मकसद नहीं था, वे केवल गुमराह होकर हमले कर रहे थे। कुछ आतंकी ऐसे थे, जिन्हें सीधे तौर पर सीमा पार से आदेश मिलते थे। पकड़े गए आतंकियों ने एक खुलासा किया था। वे कहते थे कि हमें कहा गया, तुम बस मारो, हमला करो। इस मसले पर जब एक वजीर-ए-आला से बात हुई, तो उन्होंने अपनी ‘फिरन’ यानी कश्मीरी पारंपरिक पोशाक, में नमक रखा हुआ था। बोले, ‘पड़ोसी’ मतलब पाकिस्तान का नमक है। इसका अर्थ था कि वे खुद को पाकिस्तान के प्रति वफादार दिखाने का प्रयास करते थे। आजादी के इतने साल बाद भी वे जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते थे। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि कश्मीर में अब तक आतंकवाद पूरी तरह खत्म क्यों नहीं हो सका है।

    1989-90 में तो हजारों आतंकी मौजूद थे, तो भी उनका खात्मा किया गया। किसी मुख्यमंत्री के पास मौजूद ‘नमक’ उन्हें बचा नहीं सका। पूर्व आईजी कमलकांत शर्मा बताते हैं, हमारे सुरक्षा बल हर मामले में सक्षम हैं। उन्हें तो बस ‘यस’ शब्द का इंतजार रहता है। जब उन्हें इसकी इजाजत मिल जाती तो वे पीछे मुड़कर नहीं देखते। आतंकियों का सफाया करने के बाद ही वापस लौटते थे। आज तो स्थिति और अधिक बेहतर हो गई है। ‘यस’ शब्द का मतलब, हम बिल्कुल नहीं होने देंगे। कश्मीर में लोगों को अपने इतिहास से नहीं जुड़ने दिया जा रहा। श्रीनगर का म्यूजियम खाली पड़ा रहता है। वहां सभी धर्मों का इतिहास पढ़ने को मिल जाता है। वे कश्मीरी इस्लाम के बारे में ज्यादा नहीं जानते। हालांकि वह बहुत बेहतर है, लेकिन उन्हें गुमराह कर दूसरी तरफ मोड़ दिया गया है।

    पड़ोसी मुल्क और उसके गुर्गे, स्थानीय मुस्लिमों को बरगलाने का प्रयास करते हैं। अब वहां पर विकास तेजी से हो रहा है। युवाओं के पास विकास की मुख्य में शामिल होने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है। आतंक का रास्ता बहुत छोटा हो गया है। अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद पत्थरबाजी लगभग खत्म हो चली है। सुरक्षा एजेंसियों को यह भी मालूम है कि घाटी में कितने युवा गायब हैं। सरेंडर पॉलिसी बनाई गई है। ऐसे में अगर तालिबान के दम पर पाकिस्तान उछलता है तो वह उसकी गलतफहमी है। घाटी में अब आतंकवाद का दौर अपन%

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