गिरिडीह। झारखंड के गिरिडीह जिले में साक, सब्जी और अनाज से अलग हटकर क्षेत्र के प्रगतिशील युवा किसान जैविक स्ट्रॉबेरी और अनानास जैसे फलों की खेती कर न सिर्फ अपना भविष्य संवार रहे हैं, बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी गॉवं-घर में रोजगार के अवसर देकर प्रवासी मजदूर बनने की त्रासदी से मुक्त करने के प्रयास में जुटे हैं।
दरअसल छोटानागपुर के इलाके में पीढ़ियों से किसान अनाज और साक सब्जी का उत्पादन करते रहे हैं लेकिन आइटी-सोशल मीडिया के युग में पढ़े लिखे युवक कॄषि क्षेत्र में ही स्ट्रॉबेरी की खेती कर अपनी एवं इलाके की अर्थव्यवस्था मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इससे सरकार की बागवानी योजनाओं के तहत जिला कृषि-उद्यान विभाग का सहयोग मिल रहा है।
जिले के कृषि प्रधान प्रखण्ड जमुआ, देवरी, गाण्डेय, बैंगाबाद के पिछले सालों से बंजर भूमि पर किसान उत्पादन संगठन (एफपीओ) के सौजन्य से स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर अन्य किसानों को भी अपनी किस्मत बदलने के लिए प्रेरित कर यह संदेश दे रहे है कि इरादे मजबूत हो तो बाधाएं रास्ता नहीं रोक सकती। हालांकि, स्ट्रॉबेरी ठंडे प्रदेशों की फसल है, जहां की जलवायु स्ट्रॉबेरी के लिए अनुकूल मानी जाती हैं।
गिरिडीह जिले के जमुआ प्ररवण्ड के किसानों ने इस वर्ष भी गत वर्ष के अनुभव के आधार पर तीन एकड़ में स्ट्रॉबेरी की फसल लगायी है, जो आनेवाले तीन से चार महीनों में तैयार हो जायेगी। इस संबंध में किसानों को कृषि संबंधित सभी प्रकार की तकनीकी जानकारी मुहैया कराने वाली पर्णहित उत्पादन कंपनी के निदेशक सुरेश वर्मा, जमुआ एफपीओ के निदेशक दीपक वर्मा ने बताया कि पोषक तत्वों से भरपूर स्ट्रॉबेरी की खेती इस वर्ष सरकार की विशेष कृषि स्कीम के तहत चार किसान क्रमशः सचिन कुमार वर्मा, रंजीत कुमार, संतोष महतो और राजेश कुमार एफपीओ के माध्यम से कर रहे हैं।
विभाग की ओर से प्राप्त प्रति एकड पांच हजार 800 पौधे लगाये गये हैं। तापमान फसल के अनुकूल रहा तो प्रति एकड पांच सौ किलोग्राम से अधिक का उत्पादन होगा। एक किलोग्राम खुले बाजार में स्थानीय स्तर पर तीन सौ से चार सौ प्रति किलोग्राम हाथों-हाथ बिकता हैं। नवम्बर से फरवरी तक कई चरणों में स्ट्रॉबेरी फ्रूट्स को तोड़ा जाता हैं। हाल ही में गिरिडीह के उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा, जिला अग्रणी बैंक बीओआइ के एलडीएम रविन्द्र कुमार सिंह, नाबार्ड के डीडीएम आशुतोष कुमार ने खेतों में लगे स्ट्रॉबेरी के पोधों का अवलोकन कर उत्साही किसानों की इसके लिए सराहना कर यथा संभव मदद का आश्वासन दिया हैं।
उल्लेखनीय है कि झारखंड के गर्म जलवायु वाले इलाकों में जहां लगभग फसलों का भविष्य वर्षा के पानी पर निर्भर रहता है वहां किसान अपनी कड़ी मेहनत, लगन और जैविक तकनीकी से स्ट्रॉबेरी जैसे फसल का उत्पादन सीमित संसाधनों में करता है तो बहुत बड़ी बात हैं। इन किसानों के पास न तो फसल का बाजार है और नहीं फसल को स्टोर करने के लिए डीप फ्रीजर जैसे संसाधन । सिर्फ अपनी मेहनत और मामूली सरकारी सुविधा के सहारे झारखंड के युवा किसान अपना भविष्य संवारने के अलावा अन्य किसान भाईयों को भी प्रेरित कर ऱहे हैं।