Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, June 9
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»क्या है 1932 का खतियान
    Breaking News

    क्या है 1932 का खतियान

    azad sipahiBy azad sipahiSeptember 14, 2022No Comments5 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    आजाद सिपाही संवाददाता
    रांची। झारखंड में 1932 खतियान के प्रस्ताव पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। इसे लेकर समय-समय पर प्रदर्शन भी होता रहा है। बहुत से लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर क्या है 1932 का खतियान। इसे लेकर सियासत भी होती रही है। झारखंड में भाषा विवाद से शुरू हुआ आंदोलन 1932 के खतियान को लागू करने तक पहुंच गया था। इसके अलावा एक बार फिर स्थानीयता, भाषा का विवाद और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग तेज होने लगी थी। दरअसल झारखंड राज्य की जब से स्थापना हुई, तभी से 1932 के खतियान का जिक्र होता रहा है। झारखंड गठन के बाद से ही इसकी मांग हो रही थी। 1932 खतियान का मतलब यह है कि 1932 के वंशज ही झारखंड के असल निवासी माने जायेंगे। 1932 के सर्वे में जिनका नाम खतियान में चढ़ा हुआ है, उनके नाम का ही खतियान आज भी है। उसी को लागू करने की मांग हो रही थी।

    1932 के खतियान को आधार बनाने का मतलब यह है कि उस समय जिन लोगों का नाम खतियान में था, वे और उनके वंशज ही स्थानीय कहलायेंगे। उस समय जिनके पास जमीन थी, उसकी हजारों बार खरीद-बिक्री हो चुकी है। उदाहरण के तौर पर 1932 में अगर रांची जिले में 10 हजार रैयत थे, तो आज उनकी संख्या एक लाख पार कर गयी। अब तो सरकार के पास भी यह आंकड़ा नहीं है कि 1932 में जो जमीन थी, उसके कितने टुकड़े हो चुके हैं।
    1932 को समझने के लिए इतिहास जानना जरूरी
    1932 खतियान को समझने के लिए थोड़ा इतिहास समझना होगा। दरअसल बिरसा मुंडा के आंदोलन के बाद 1909 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम यानी सीएनटी एक्ट बना। इसी एक्ट में मुंडारी खूंटकट्टीदार का प्रावधान किया गया। इसी प्रावधान में यह व्यवस्था की गयी, जिसके जरिये आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों के हाथों में जाने से रोका गया। आज भी खतियान यहां के भूमि अधिकारों का मूल मंत्र या संविधान है।

    कोल्हान की भूमि आदिवासियों के लिए सुरक्षित कर दी गयी
    देश में 1831 से 1833 के बीच क्या स्थिति रही, उसके बारे में भी जानकारी जरूरी है। दरअसल उस वक्त कोल विद्रोह के बाद विल्किंसन रूल आया। कोल्हान की भूमि हो आदिवासियों के लिए सुरक्षित कर दी गयी। वहीं यह व्यवस्था निर्धारित की गयी की कोल्हान का प्रशासनिक कामकाज हो मुंडा और मानकी के द्वारा कोल्हान के सुपरिंटेंडेंट करेंगे।

    1913 से 1918 के बीच हुआ सर्वे
    कोल्हान क्षेत्र के लिए 1913 से 1918 के बीच का समय काफी महत्वपूर्ण रहा। इसी दौरान लैंड सर्वे का कार्य किया गया और इसके बाद मुंडा और मानकी को खेवट में विशेष स्थान मिला। आदिवासियों का जंगल पर हक इसी सर्वे के बाद दिया गया। 1947 में देश आजाद हुआ। 1950 में बिहार लैंड रिफॉर्म एक्ट आया। इसको लेकर आदिवासियों ने प्रदर्शन किया। इसी साल 1954 में एक बार इसमें संशोधन किया और मुंडारी खूंटकट्टीदारी को इसमें छूट मिल गयी।

    2002 में लायी गयी डोमिसाइल नीति
    झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने वर्ष 2002 में राज्य की स्थानीयता को लेकर डोमिसाइल नीति लायी थी, तो उस दौरान खूब प्रदर्शन हुए। जगह-जगह पर आगजनी हुई और इस दौरान लोगों की मौत भी हुई। यह मामला झारखंड हाइकोर्ट पहुंच गया और कोर्ट ने इसे अमान्य घोषित करते हुए रद्द कर दिया। यह मामला इतना बढ़ गया कि बाबूलाल मरांडी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह पर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्होंने स्थानीय नीति तय करने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनायी, लेकिन उसके बाद उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उसके बाद जो भी सरकारें आयीं, सभी ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में ही छोड़ दिया।

    साल 2014 में जब रघुवर दास मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने इस मामले पर बड़ा फैसला लिया। हालांकि तब भी धरना-प्रदर्शन हुआ, लेकिन उन्होंने इस मामले को निपटा लिया। इस दौरान रघुवर सरकार ने 2018 में राज्य की स्थानीयता की नीति घोषित कर दी, जिसमें 1985 के समय से राज्य में रहनेवाले सभी लोगों को स्थानीय माना गया। रघुवर दास ने इस मामले पर फैसला ले लिया था, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति अलग है। वह शुरू से ही झारखंड में 1932 के खतियान की समर्थक रही है। उसने गत विधानसभा चुनाव में यह वादा किया था कि अगर उसकी सरकार आयी, तो झारखंउ में 1932 का खतियान लागू होगा। इसकी घोषणा कई अवसरों पर पहले झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और उसके बाद झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उठाते रहे हैं। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में झामुमो को मिली प्रचंड जीत में 1932 के खतियान के वायदे की बहुत बड़ी भूमिका रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार बनते ही 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की बात होने लगी। झामुमो के मंत्री और नेता बार-बार उसे लागू करने की बात कहते रहे। झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने साल 2020 में ही बयान दिया था कि झारखंड की स्थानीय नीति का आधार 1932 का खतियान होगा। भारतीय जनता पार्टी की रघुवर दास की सरकार के 1985 स्थानीय नीति का कोई आधार नहीं है।

    रांची-धनबाद के 75 फीसदी लोग हो जायेंगे बाहरी
    जानकार कहते हैं कि 1932 का खतियान लागू होते ही रांची, धनबाद, जमशेदपुर और बोकारो जैसे बड़े शहरों में रहनेवाले 75 फीसदी लोग स्थानीय होने की शर्त पूरी नहीं कर पायेंगे और वे बाहरी हो जायेंगे। इन शहरों में लोग रोजी-रोजगार के लिए आये और बसते चले गये। उस समय धनबाद का तो अस्तित्व ही नहीं था। 1971 में कोयले के राष्ट्रीयकरण के पहले यहां खदानों के निजी मालिक हुआ करते थे। उन्होंने ही यूपी और बिहार से खदानों में काम करने के लिए लोगों को बुलाया, जो यहां बसते चले गये। फिर 1952 में सिंदरी उर्वरक कारखाना शुरू होने के बाद यहां काम करने के लिए बाहरी लोग आये और यहीं बस गये। शहरी क्षेत्रों में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Article1932 के खतियान पर हेमंत कैबिनेट की मुहर
    Next Article …और अब 1932 के खतियानी झारखंडी
    azad sipahi

      Related Posts

      एक साथ कई निशाने साध गया मोदी का ‘कूटनीतिक तीर’

      June 8, 2025

      राहुल गांधी का बड़ा ‘ब्लंडर’ साबित होगा ‘सरेंडर’ वाला बयान

      June 7, 2025

      बिहार में तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बनेंगे चिराग

      June 5, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • रांची में कोयला कारोबारी की गोली लगने से मौत, जांच में जुटी पुलिस
      • एक साथ कई निशाने साध गया मोदी का ‘कूटनीतिक तीर’
      • चुनाव आयोग की दोबारा अपील, लिखित शिकायत दें या मिलने आएं राहुल गांधी
      • भारतीय वायु सेना ने किडनी और कॉर्निया को एयरलिफ्ट करके दिल्ली पहुंचाया
      • उत्तर ग्रीस में फिर महसूस किए गए भूकंप के झटके, माउंट एथोस क्षेत्र में दहशत का माहौल
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version