विशेष
-देश का सवाल: आखिर कब तक आतंक की आग में जलता रहेगा कश्मीर
-आतंक का सफाया कैसे होता है, भारत बने मिसाल
जम्मू और कश्मीर में एक बार फिर आतंकियों ने बड़ी घटना को अंजाम दिया है। दो अलग-अलग मुठभेड़ों में भारतीय सेना के एक कर्नल, एक मेजर, एक जवान और जम्मू-कश्मीर पुलिस के डिप्टी एसपी की शहादत हुई है। अनंतनाग के कोकरनाग इलाके में हुई इन मुठभेड़ों में दी गयी शहादत के बाद से पूरे देश में गम और गुस्सा है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर भारत इस तरह की कायराना हरकतों को कब तक बर्दाश्त करता रहेगा। क्या भारत आतंक की हिंसा में जल रहे कश्मीर में निर्णायक कदम नहीं उठा सकता है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कश्मीर में आतंकवाद का खात्मा क्यों नहीं हो पा रहा है। लोग कह रहे हैं कि बहुत हुआ कश्मीर में आतंकियों का आतंक अब घुस कर मारने की बारी है। देश में इतनी मजबूत सरकार होने के बावजूद, नरेंद्र मोदी जैसा बेखौफ पीएम होने के बावजूद, अमित शाह जैसा दमदार गृह मंत्री होने के बावजूद और तो और जनता का पूरा समर्थन होने के बावजूद अगर अब कश्मीर से आतंकवाद का सफाया नहीं होगा, तो कब होगा। धारा 370 तो हटी, लेकिन कश्मीर से आतंकवादियों का सफाया बहुत जरूरी हो गया है। आखिर कब तक हमारे जवान पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के हांथों मारे जायेंगे। क्यों नहीं एक बार खुल कर आमना-सामना हो जाये। पूरी दुनिया जानती है कि कश्मीर में आतंकवाद को कौन संरक्षण दे रहा है। पुलवामा और उरी हमले के बाद भारत ने जो जवाबी कार्रवाई की थी, वैसी कार्रवाई की अब जरूरत महसूस की जाने लगी है। अब सब कुछ केंद्र सरकार के हाथों में है। दुनिया भर में भारत की जो मजबूत छवि बनी है, उस पर कश्मीर में हो रही घटनाएं बदनुमा दाग हैं और इन दागों को तत्काल मिटाना जरूरी है। इसके लिए पूरा देश एकजुट होकर अपनी सरकार के पीछे खड़ा है। कश्मीर पर अब निर्णायक कदम उठाने का समय आ गया है, क्योंकि आतंक पर काबू पाये बिना देश तरक्की के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिए कश्मीर में अब हर हाल में शांति जरूरी है। कश्मीर में हुई आतंकी घटनाओं की पृष्ठभूमि में भारत के सामने पैदा इस चुनौती के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
कर्नल, मेजर, डीएसपी समेत चार शहीद
जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन दिनों में आतंकियों से हुई दो मुठभेड़ों में सेना के कर्नल और मेजर समेत कुल तीन कर्मी शहीद हो गये, जबकि एक डीएसपी को भी शहादत देनी पड़ी। 13 सितंबर को अनंतनाग में मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष ढोंचक और कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट की काफी प्रेरणादायक वीरगाथा है। कोई उस यूनिट का हिस्सा रहा, जिसने बुरहान वानी का अंत किया, तो एक को बीते साल सेवा मेडल से सम्मानित किया गया था। बताया जा रहा है कि 12 और 13 सितंबर को ऐसे इनपुट मिले थे कि अनंतनाग में कुछ आतंकी छिपे हुए हैं। उस इनपुट के आधार पर ही सेना और पुलिस दोनों जमीन पर सक्रिय हो गयी और उनकी तरफ से एक संयुक्त आॅपरेशन चलाया गया। जिस समय तलाशी अभियान चलाया गया, कुछ आतंकियों ने अचानक से फायरिंग कर दी और उस गोलीबारी में कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष और जम्मू कश्मीर पुलिस के डिप्टी एसपी हुमायूं भट गंभीर रूप से जख्मी हो गये। उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन खून इतना बह चुका था कि तीनों में से किसी भी वीर सपूत को नहीं बचाया जा सका।
बौखला गये हैं आतंकी
जी-20 देशों के प्रतिनिधियों के कश्मीर दौरा करने और वहां सफलतापूर्वक बैठक आयोजित करने के बाद विदेशी ताकतों के इशारे पर कश्मीर में आतंकवाद की आग दहकाने की साजिश की जा रही है। शांति की ओर लौट रहे कश्मीर में पिछले तीन साल में यह सबसे बड़ा हमला है, जिसमें इतने बड़े अफसरों की शहादत हुई है। इससे पहले कश्मीर के हंदवाड़ा में 30 मार्च 2020 को 18 घंटे चले हमले में कर्नल, मेजर और सब-इंस्पेक्टर समेत पांच अफसर शहीद हुए थे। इस साल अब तक राजौरी-पुंछ जिले में सुरक्षा बलों ने 26 आतंकियों को मार गिराया है। 10 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए हैं। सुरक्षा बलों ने 9 अगस्त को छह आतंकी पकड़ लिये थे। इसके अलावा कश्मीर पुलिस और भारतीय सेना ने संयुक्त अभियान के दौरान 15 अगस्त से पहले छह आतंकियों को गिरफ्तार किया था। इनके पास से गोला-बारूद और हथियार बरामद किये गये थे। पहला मामला 9 अगस्त की रात का है, जहां कोकेरनाग के एथलान गडोले में तीन आतंकी पकड़े गये। मुठभेड़ के दौरान सेना के जवान समेत तीन लोग घायल हुए। दूसरा मामला बारामुला के उरी का है, जहां सुरक्षाकर्मियों ने लश्कर के तीन आतंकी पकड़े। इनके खिलाफ यूएपीए और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। इस साल जनवरी से अब तक जम्मू-कश्मीर में 40 आतंकी मारे गये हैं। इनमें आठ ही स्थानीय थे और बाकी सभी विदेशी थे। कश्मीर में जहां 2021 में 129 आतंकवादी घटनाएं और 34 घुसपैठ हुई थीं, वहीं 2022 में इनकी संख्या 125 और 14 थी। 2023 में 30 जून तक 26 आतंकवादी घटनाएं हुई थीं, जबकि घुसपैठ की एक भी घटना नहीं हुई थी। 2021 में आतंकवादी घटनाओं में 41 नागरिक और 42 सुरक्षाकर्मी मारे गये थे। 2022 में 30 नागरिक और 31 सुरक्षाकर्मी मारे गये थे। 2023 में अभी तक कम से कम सात नागरिक और चार सुरक्षाकर्मियों की मौत हो चुकी है।
सैन्य मूवमेंट का वीडियो पाकिस्तान भेज रहे हाइटेक मुखौटे
जम्मू-कश्मीर में सक्रिय, पाकिस्तान के आतंकी संगठनों ने सैन्य मूवमेंट की जानकारी हासिल करने के लिए अपने हाइटेक मुखौटे तैयार कर रखे हैं। ये ऐसे मुखौटे हैं, जिन पर किसी को शक नहीं होता। ये लोग सड़क पर बैठे रहते हैं। वहां से जैसे ही सेना या अर्धसैनिक बलों के वाहन गुजरते हैं, तो वे उसका वीडिया बना लेते हैं। इस वीडियो को डार्क वेब, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्किंग और एन्क्रिप्टेड मैसेंजर सेवाएं, मसलन सिग्नल आदि के माध्यम से पाकिस्तान के नंबर पर भेज देते हैं। इन मुखौटों को ओवर ग्राउंड वर्कर कहा जाता है। इनके द्वारा भेजी गयी सूचना या वीडियो के आधार पर ही पाकिस्तान में आइएसआइ की टेरर विंग के एक्सपर्ट, जम्मू-कश्मीर में मौजूद आतंकियों को यह बताते हैं कि उन्हें किस तरह से आॅपरेशन को अंजाम देना है। जब कहीं पर कोई बड़ा आॅपरेशन शुरू होता है तो सड़क पर मौजूद हाइटेक मुखौटों के बीच की दूरी कम होती चली जाती है। यानी दस किलोमीटर पहले कोई मुखौटा है तो उसके बाद तीन या चार किलोमीटर पर दूसरा मुखौटा बैठा रहता है। सैन्य दस्ता, जहां से अपने वाहन छोड़ कर पैदल चलना शुरू करते हैं, वहां तक की जानकारी जुटायीजाती है।
आखिर कब तक जवानों का खून बहेगा
सवाल उठ रहा है कि आखिर देश के जवानों को कब तक पाक समर्थित आतंक का सामना करते हुए खून बहाना पड़ेगा। तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेहतर कूटनीति के जरिये विश्व गुरु बनने के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहे भारत के सत्ताधारियों को दृढ़ता और गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर क्या वजह है कि देश पिछले 75 साल से पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे छद्म युद्ध को झेल रहा है। इस समय पूरे देशभर से इस तरह की मांग की जा रही है कि अब समय आ गया है, जब कश्मीर की शांति भंग करने के लिए पाकिस्तान को माकूल जवाब दिया जाये। पाकिस्तान को उचित जवाब दिये बिना इस आतंकवाद पर नियंत्रण पाना काफी मुश्किल काम है। आखिर हमारे जवानों का खून इस तरह फिजूल में कब तक बहता रहेगा। यह भारत के सब्र की अति हो चुकी है। भारत की सहनशीलता का फायदा पड़ोसी मुल्क भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए इस्तेमाल करता रहा है। चीन और पाकिस्तान भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन और उसमें अमेरिका और भारत समेत आठ देशों का आर्थिक गलियारा बनाने के फैसले के बाद काफी परेशान हुए हैं।
वास्तव में भारत का अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ता कद पड़ोसी दुश्मन देशों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। इस सबको देखते हुए काफी संभावना है कि भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए जम्मू कश्मीर और खालिस्तान के नाम पर आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने की कोशिश की जायेगी। इसके प्रति सचेत होकर सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था करने की जरूरत है। वहीं पड़ोसी मुल्क को सख्त संदेश देने की जरूरत है। यह संदेश सैन्य कार्यवाही और अन्य किसी नये रूप में भी हो सकता है, लेकिन केवल बयानबाजी से अब काम नहीं चलेगा। अब जरूरत फैसले का है, एक्शन का है और अपनी साख बचाने का है, जो मोदी सरकार हर कीमत पर करेगी, इसका भरोसा देशवासियों को है।
दरअसल, सामान्य जनजीवन की ओर तेजी से लौट रहे जम्मू-कश्मीर में अमन का माहौल पड़ोसी देश पाकिस्तान और उसके पोषित आतंकियों की आंखों में चुभ रहा है। एक बार फिर पाक प्रेरित दहशतगर्दों ने खून-खराबा कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की है। ऐसा भी माना जा रहा है कि भारत पीओके पर निर्णायक कदम उठानेवाला है, इसलिए आतंकी फड़फड़ा रहे हैं, यानी दिया बुझने ही वाला है। भारत जिस प्रकार से हथियार खरीद रहा है और खुद को मजबूत सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित कर रहा है और जिस तरीके से वैश्विक मंच पर खुद को स्थापित कर रहा है, उससे तो यही संकेत मिल रहा है कि भारत अब चुप बैठनेवालों में से नहीं है। उसे चुप बैठना भी नहीं चाहिए।