रांची। झारखंड हाई कोर्ट में रांची यूनिवर्सिटी के तहत अंगीकृत किए गए विभिन्न कॉलेज के चतुर्थ वर्गीय कर्मियों द्वारा पंचम एवं छठा वेतनमान देने के मामले में तेतरा उरांव एवं अन्य की अवमानना याचिका की सुनवाई शुक्रवार को हुई। सुनवाई के दौरान उच्च शिक्षा निदेशक कोर्ट में सशरीर उपस्थित हुए।
कोर्ट ने उन पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि एक बार जब यूनिवर्सिटी ने अंगीकृत किए गए कॉलेज के कर्मियों को समायोजित कर लिया, तो राज्य सरकार को कोई पावर नहीं है उनके पे फिक्सेशन को निरस्त करने का। जस्टिस डॉ एसएन पाठक की कोर्ट ने मामले की सुनवाई की।
कोर्ट ने उच्च शिक्षा निदेशक को चार सप्ताह में इनके पे फिक्सेशन को निरस्त करने के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने उच्च शिक्षा निदेशक से कहा कि एक बार जब यूनिवर्सिटी ने कर्मियों को समायोजित कर लिया तो उनका पे फिक्सेशन करना होगा। उनका समायोजन सही है या गलत इसके बारे में निर्णय लेने का पावर सरकार के पास नहीं है।
याचिकाकर्ताओंं ने राज्य सरकार द्वारा उनके पंचम एवं छठा वेतनमान निर्धारित नहीं किए जाने पर वर्ष 2017 में हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की थी, जिस पर हाई कोर्ट की एकल पीठ ने राज्य सरकार को इनके समायोजन होने के आलोक में उनके मामले को कंसीडर करने का आदेश दिया था।
कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं होने पर वर्ष 2018 में याचिकाकर्ताओंं ने हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। केस लंबित करने के दौरान याचिकाकर्ता सेवानिवृत्ति भी हो गए। वर्ष 2023 में उच्च शिक्षा निदेशक ने प्रार्थियों के पे फिक्सेशन को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि इनका समायोजन गलत है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता श्रेष्ठ गौतम ने कोर्ट को बताया महासंघ के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी अग्रवाल कमीशन बनाया था। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि यूनिवर्सिटी को पावर है कि वह स्वीकृत पद पर कर्मियों को समायोजित करें। एक बार यूनिवर्सिटी ने कर्मियों को समायोजित कर लिया तो राज्य सरकार के पास उनकी नियुक्ति पर निर्णय लेने का पावर नहीं है।