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    Home»विशेष»विपक्ष के ‘इंडी अलायंस’ में पसरने लगी कलह की आग
    विशेष

    विपक्ष के ‘इंडी अलायंस’ में पसरने लगी कलह की आग

    adminBy adminSeptember 18, 2023No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    -घोषणा पत्र से नाराज हुईं ममता बनर्जी, तो लालू-नीतीश ने मनाया
    -अब एंकरों के बहिष्कार के फैसले से नीतीश ने कर लिया किनारा
    -केजरीवाल ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बता दिया भाजपा का भाई
    -सीट शेयरिंग का पेंच बरकरार, ‘फ्रेंडली फाइट’ के बन रहे आसार

    अगले साल होनेवाले आम चुनाव के लिए 28 विपक्षी दलों के गठबंधन आइएनडीआइए, यानी इंडी अलायंस या भारतीय राष्ट्रीय डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस की समन्वय समिति की दिल्ली में संपन्न पहली बैठक के बाद जो परिदृश्य उभर रहे हैं, उससे तो ऐसा लग रहा है कि इस गठबंधन के भीतर कलह की आग पसरने लगी है। गठबंधन के कम से कम तीन बड़े नेता, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल कतिपय फैसलों को लेकर नाराज हैं, तो दूसरी तरफ दो राज्य सरकारें, कर्नाटक और तमिलनाडु कावेरी जल विवाद को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हो गयी हैं। ममता बनर्जी ने जहां गठबंधन के घोषणा पत्र में जातीय जनगणना को शामिल किये जाने का विरोध करते हुए इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करने की बात कही है, वहीं नीतीश कुमार ने 14 टीवी एंकरों के बहिष्कार के फैसले से खुद को अलग कर लिया है। अरविंद केजरीवाल तो एक कदम आग बढ़ गये हैं और गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस को भाजपा का सहयोगी बता कर तूफान पैदा कर दिया है। इस परिदृश्य में ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि गठबंधन के भीतर अब सीट शेयरिंग को लेकर घमासान होनेवाला है। ऐसे कयास लगाये जाने लगे हैं कि गठबंधन के घटक दल संबंधित राज्यों में ‘फ्रेंडली फाइट’ के विकल्प की संभावनाओं पर विचार करने लगे हैं। इन बातों का असर यह है कि अब कांग्रेस भी कह रही है कि लोकसभा के लिए सीट का बंटवारा पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद ही किया जायेगा।
    क्या है विपक्ष के गठबंधन की अंदरूनी स्थिति और क्या हो सकता है इसका सियासी असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के उद्देश्य से बने विपक्षी दलों के गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। गठबंधन के घटक दलों के नेताओं की तीन बैठकों के बाद बनायी गयी समन्वय समिति की पहली बैठक के बाद हाल के दिनों में जो कुछ हुआ है, उससे तो यही लग रहा है कि इस गठबंधन में सबकी ‘अपनी ढपली और अपना राग’ है। गठबंधन के नेताओं ने जिस तरह अलग-अलग फैसलों पर अलग-अलग स्टैंड लिया है, उससे साफ हो गया है कि इसे पूरी तरह आकार लेने में पेंच ही पेंच है।

    जातीय जनगणना पर नाराज हैं ममता
    गठबंधन के भीतर नाराजगी का पहला संकेत पश्चिम बंगाल से मिला, जब टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने गठबंधन के घोषणा पत्र में जातीय जनगणना का मुद्दा शामिल किये जाने से बिफर पड़ीं। राजद और जदयू ने इस मुद्दे को गठबंधन की समन्वय समिति की पहली बैठक में आगे किया था। ममता शुरू से जातीय जनगणना के खिलाफ रही हैं और अब उन्होंने कह दिया है कि पश्चिम बंगाल में किसी भी कीमत पर जातीय जनगणना नहीं करायी जायेगी। दरअसल, पश्चिम बंगाल की सामाजिक संरचना इस तरह की है कि वहां तृणमूल कांग्रेस हो या फिर माकपा या कांग्रेस, सभी दल के उच्च पदों पर अगड़ी जाति के लोग लंबी अवधि से रहे हैं। ऐसे में जाति आधारित जनगणना से तृणमूल कांग्रेस को हिचक हो रही है। अब नीतीश कुमार और लालू यादव को ममता बनर्जी को मनाने की जिम्मेवारी मिली है। वैसे जातीय जनगणना का मुद्दा गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन गया है।

    कांग्रेस के खिलाफ जहर उगला केजरीवाल ने
    आम आदमी पार्टी सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पिछले सप्ताह छत्तीसगढ़ गये थे। वहां उन्होंने कांग्रेस को झूठी और मक्कार पार्टी बताते हुए लोगों को इससे सतर्क रहने को कह दिया।
    इस तरह दिल्ली और पंजाब के बाद छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी ने सीधे-सीधे कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल कर गठबंधन के लिए नयी मुसीबत खड़ी कर दी है। जहां पहले पंजाब में मंत्री अनमोल गगन ने पंजाब की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर गठबंधन को किनारे कर दिया, वहीं हरियाणा को लेकर भी पार्टी के संगठन मंत्री संदीप पाठक ने कहा है कि सभी 90 सीटों पर आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। केजरीवाल ने शाहरुख खान की ‘जवान’ फिल्म के सहारे शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा। साथ ही छत्तीसगढ़ मे आम आदमी पार्टी के प्रभारी संजीव झा ने भी कांग्रेस को धोने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ही बस्तर की जनता ने जिस दल पर भरोसा किया, प्रदेश में उसी की सरकार बनी, लेकिन कांग्रेस ने यहां के लोगों की उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया।

    एंकरों के मुद्दे पर नीतीश की अलग राह
    हाल ही में गठबंधन ने एक सूची जारी कर 14 न्यूज एंकरों के बहिष्कार की अपील की थी। इसी मुद्दे पर जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यही बता पायेंगे। हम तो शुरू से ही पत्रकारों के पक्ष में रहे हैं। नीतीश ने कहा कि वह किसी पत्रकार के खिलाफ नहीं। पत्रकारों पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता। पत्रकारों को आजादी जरूरी है, तभी उन्हें जो सच दिखेगा और अच्छा लगेगा, उस पर वे अपने-अपने ढंग से लिखेंगे। सभी का अपना अधिकार है।

    सीट शेयरिंग में फंसेगा पेंच
    इन नेताओं के अलग-अलग मुद्दों पर स्टैंड के बावजूद गठबंधन के नेताओं को अब भी लग रहा है कि सीट शेयरिंग का मुद्दा भी जल्द ही सुलझा लिया जायेगा। लेकिन जिस तरह के सियासी समीकरण बन रहे हैं, उससे टिकट बंटवारे पर आम सहमति पेंचीदी भी होती जा रही है।

    इन मतभेदों के कारण गठबंधन में हालात कुछ इस तरह के हो रहे हैं कि कुछ राज्यों में परिस्थितियां ‘फ्रेंडली फाइट’ की भी बनती जा रही हैं, यानी राष्ट्रीय स्तर पर पार्टियों का तो गठबंधन होगा, लेकिन कुछ राज्यों में ये पार्टियां एक-दूसरे के आमने-सामने भी आ सकती हैं।
    इस गठबंधन में सबसे ज्यादा मशक्कत टिकट बंटवारे को लेकर चल रही है। कुछ राज्यों में तो टिकट बंटवारे का रास्ता बहुत आसान बना हुआ है, जबकि कई राज्यों में यह बड़ी समस्या भी बनता दिख रहा है। जिन राज्यों में बगैर किसी मशक्कत के सीट बंटवारे की राह आसान नजर आ रही है, उसमें तमिलनाडु, झारखंड, पुडुचेरी, बिहार और महाराष्ट्र प्रमुख हैं। इसके बाद कई राज्य ऐसे हैं, जिनमें गठबंधन में शामिल दल आपस में लड़ते आये हैं। उन राज्यों में गठबंधन को सबसे ज्यादा टिकट बंटवारे पर मशक्कत करने की जरूरत लग रही है। ऐसे राज्यों में उत्तरप्रदेश, पंजाब, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और केरल शामिल हैं। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी से टिकट बंटवारे पर टकराहट की स्थिति बनती हुई नजर आ रही है, वहीं पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच प्रतिद्वंद्विता है। पश्चिम बंगाल में टीएमसी के अलावा कांग्रेस और वामपंथी दल आमने-सामने हैं, जबकि केरल में कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच प्रतिद्वंद्विता है।
    इस परिदृश्य में अनुमान यही लगाया जा सकता है कि अगर इन राज्यों में आपसी सामंजस्य पर सीटों का बंटवारा नहीं होता है, तो आने वाले लोकसभा के चुनाव में ‘फ्रेंडली फाइट’ भी हो सकती है, यानी कि जो दल एक राज्य में गठबंधन के बैनर से चुनाव लड़ेंगे, वहीं दूसरे राज्य में आमने-सामने भी चुनावी मैदान में हो सकते हैं। हालांकि विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल एक प्रमुख नेता बताते हैं कि इस तरीके की परिस्थितियां फिलहाल नहीं आनेवाली हैं। उनका कहना है कि उनके गठबंधन में शामिल नेता इन सभी सियासी मुद्दों का हल निकाल कर जल्द ही चुनावी मैदान में प्रत्याशियों की घोषणा करने वाले हैं।

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