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भाजपा-आजसू के मजबूत गढ़ में होगी झामुमो-कांग्रेस-राजद की अग्निपरीक्षा
जयराम की जेबीकेएसएस एंट्री ने बदल दिया है इलाके का राजनीतिक परिदृश्य
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की सियासत में उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल का अलग स्थान है। प्रशासनिक दृष्टिकोण से इस प्रमंडल के तहत सात जिले आते हैं, लेकिन धनबाद को सियासी हलके में कोयलांचल कहा जाता है और उत्तरी छोटानागपुर के तहत छह जिले, बोकारो, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, चतरा और रामगढ़ आते हैं। झारखंड की राजनीति में उत्तरी छोटानागपुर का खास स्थान इसलिए है, क्योंकि चुनावी दृष्टिकोण से यह राज्य का सबसे बड़ा प्रमंडल है। इसके छह जिलों में विधानसभा की कुल 19 सीटें हैं। धनबाद में छह विधानसभा सीटें हैं, यानी उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल झारखंड विधानसभा में 25 विधायकों को भेजता है। आसन्न विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी उत्तरी छोटानागपुर के ये छह जिले बेहद महत्वपूर्ण हैं और सभी दलों ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है। इन जिलों को भाजपा और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी का मजबूत गढ़ माना जाता है, क्योंकि यहां की राजनीति अलग किस्म की होती है। चुनावी दृष्टिकोण से देखा जाये, तो इन छह जिलों की 19 विधानसभा सीटों में से आठ पर भाजपा और दो पर आजसू का कब्जा है, जबकि झामुमो के कब्जे में तीन, कांग्रेस के कब्जे में चार और राजद और माले के कब्जे में एक-एक सीट है। इस आंकड़े से ऐसा लगता है कि मुकाबला लगभग बराबरी का है, लेकिन ग्राउंड पर स्थिति अलग है। इस बार जयराम महतो की झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) ने इस इलाके में अपना प्रभाव दिखाया है, तो मुकाबला इस बार रोमांचक और करीबी होने की संभावना है। क्या है उत्तरी छोटानागपुर के छह जिलों का सियासी परिदृश्य और क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड का उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। प्रशासनिक रूप से सात जिले इसमें शामिल हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से छह जिलों को इस प्रमंडल में गिना जाता है। धनबाद को कोयलांचल कहा जाता है, जबकि उत्तरी छोटानागपुर में हजारीबाग, बोकारो, रामगढ़, चतरा, कोडरमा और गिरिडीह को माना जाता है। इस प्रमंडल के अंतर्गत आने वाले लगभग सभी जिले अपने आप में खास हैं। धनबाद को देश की कोयला राजधानी कहा जाता है, तो वहीं सिंदरी में उर्वरक का बड़ा कारखाना है। इसके बाद कोडरमा जिले में पूरे विश्व में सबसे ज्यादा अबरख पाया जाता है, तो बोकारो जिला लौह इस्पात उद्योग के लिए मशहूर है। धार्मिक स्थलों की बात करें, तो गिरिडीह जिले में पारसनाथ की पहाड़ी पर जैन धर्म का बहुत बड़ा मंदिर है, जहां पर पूरे देश से लोग आते हैं। चतरा जिले का इटखोरी तीन धर्मों का संगम है, जहां हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़े कई स्थान हैं। हजारीबाग और रामगढ़ जिला भी कोयला खनन के लिए प्रसिद्ध है। उत्तरी छोटानागपुर का प्रमंडलीय मुख्यालय हजारीबाग है, जिसे ‘हजार बागों का शहर’ भी कहा जाता है।
राजनीतिक दृष्टिकोण की बात करें, तो उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में चार लोकसभा सीटें और 25 विधानसभा सीटें हैं। यदि धनबाद को अलग रखा जाये, तो तीन लोकसभा सीटें और 19 विधानसभा सीटों वाले इस प्रमंडल पर सभी दलों का ध्यान है। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में यहां की सभी चार सीटों पर भाजपा-आजसू की जीत हुई थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में इस प्रमंडल की 19 विधानसभा सीटों में से आठ पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, जबकि उसकी सहयोगी आजसू पार्टी को एक सीट मिली थी। कांग्रेस ने चार और झामुमो ने तीन सीटें जीती थीं, जबकि राजद, माले और झाविमो को एक-एक सीट मिली थी। पिछले पांच सालों में इस प्रमंडल की तीन सीटों पर उप चुनाव हुए, जिनमें रामगढ़ की सीट कांग्रेस से हट कर आजसू के पास चली गयी, जबकि गांडेय और बेरमो में क्रमश: झामुमो और कांग्रेस की जीत हुई। मांडू की सीट से 2019 में भाजपा के टिकट पर जीते जयप्रकाश भाई पटेल अब कांग्रेस में चले गये हैं। वहीं झाविमो का विलय भाजपा में हो गया है।
भाजपा-आजसू के गढ़ हैं ये छह जिले
उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के छह जिले भाजपा के गढ़ हैं, हालांकि पिछले चुनाव में यहां मुकाबला लगभग बराबरी का हुआ था। भाजपा के लिए ये छह जिले कितने अहम हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता का पद इसी प्रमंडल के तहत आनेवाले जिलों के नेताओं के पास है। भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी का पिछले दो चुनावों से गिरिडीह लोकसभा सीट पर कब्जा है, तो अपने जिस अभेद्य दुर्ग रामगढ़ को वह 2019 में कांग्रेस के हाथों गंवा बैठी थी, उसे भी उसने उप चुनाव में दोबारा हासिल कर लिया।
जयराम महतो की धमाकेदार इंट्री
उत्तरी छोटानागपुर को झारखंड के सबसे ताकतवर जातीय समुदाय कुरमी का गढ़ माना जाता है। चतरा को छोड़ कर बाकी पांच जिलों में इस जाति का दबदबा है। ऐसे में हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में एक नयी राजनीतिक ताकत ने यहां धमाकेदार इंट्री की, जिसका इस समुदाय पर खासा प्रभाव है। जयराम महतो के नेतृत्व में झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति ने लोकसभा चुनाव में अच्छा-खासा वोट हासिल कर सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया है। इस तरह जयराम महतो क्षेत्रीय राजनीति का एक और नया कोण बन गये हैं। झारखंड की राजनीति में जो जातीय समीकरण है, उसमें वह काफी फिट बैठते हैं। चूंकि वह खुद कुरमी जाति से आते हैं और राज्य की राजनीति में कुरमी को आदिवासियों के बाद सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता है, इसलिए उनका एक खास राजनीतिक दृष्टिकोण है। उनका मानना है कि राज्य में युवाओं की राजनीति में भागीदारी बहुत जरूरी है। युवाओं को सक्रिय रूप से आगे आना होगा, तभी जाकर राज्य की स्थिति बदल सकती है। जयराम महतो के इस नये सियासी उभार ने राज्य की स्थापित पार्टियों की टेंशन को जरूर बढ़ा दिया है। इसलिए विधानसभा के आसन्न चुनाव में उसके प्रदर्शन पर लोगों की निगाहें रहेंगी।
क्या है 2024 का परिदृश्य
जहां तक आसन्न विधानसभा चुनाव का सवाल है, तो उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के छह जिलों में अपना वर्चस्व कायम रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है, जबकि झामुमो-कांग्रेस-राजद के लिए भाजपा-आजसू के साथ जेबीकेएसएस को रोकना बड़ा चैलेंज है। भाजपा और आजसू ने अपने इस गढ़ को बचाने के लिए तैयारियां भी भरपूर की हैं। दूसरी ओर झामुमो-कांग्रेस-राजद भी तैयारियों में कहीं कम नहीं है और लगातार कोशिशों से जगह बनाने में लगे हुए हैं।
जिन विधानसभा क्षेत्रों में मामूली अंतर से उनके प्रत्याशी हारे थे, वहां वे पूरा जोर लगाये हुए हैं। पूरे प्रदेश में यही एक ऐसा इलाका है, जहां वामपंथी दलों को भी ताकत मिलती है। इसलिए बगोदर से माले को रोकना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी।
इन तमाम परिस्थितियों में यह तय है कि उत्तरी छोटानागपुर की इन 19 विधानसभा सीटों पर आसन्न चुनाव में खूब धमाल मचेगा। दलों और प्रत्याशियों की परीक्षा तो होगी ही, इलाके की समस्याओं को कितना महत्व मिलता है, यह भी परखा जायेगा।