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    Home»Top Story»उपेक्षा के कारण अस्तित्व खो चुका है भवनाथपुर का क्रशिंग प्लांट
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    उपेक्षा के कारण अस्तित्व खो चुका है भवनाथपुर का क्रशिंग प्लांट

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 19, 2025Updated:September 19, 2025No Comments3 Mins Read
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    निर्जीव हो गया है कभी औद्योगिक हब के रूप में प्रसिद्ध भवनाथपुर सेल
    -1320 मेगावाट पावर प्लांट का शिलान्यास तो हुआ, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ा
    -भवनाथपुर के उजड़े औद्योगिक संस्थान को संवारने की कवायद कभी नहीं की गयी
    विमलेश कुमार
    भवनाथपुर (गढ़वा)। एक जमाने में एशिया महाद्वीप के औद्योगिक मानचित्र पर सबसे ऊपर रहे भवनाथपुर का औद्योगिक वजूद वर्तमान समय में मिट गया है। इससे भवनाथपुर क्षेत्र के हजारों श्रमिक पलायन को मजबूर हैं। व्यवस्था और सरकारी उदासीनता से एक-एक कर बंद हुईं यहां की औद्योगिक इकाइयां सिर्फ चुनावी मुद्दा बनती रहीं और दम तोड़ती चली गयीं। इस बात का मलाल भवनाथपुर सहित पूरे पलामू प्रमंडल के गरीब मजदूरों को है। बताते चलें कि 70 और 80 के दशक में भवनाथपुर पूरे प्रमंडल में औद्योगिक हब के रूप में उभरा था। तब यहां सेल के क्रशिंग प्लांट के साथ ही दो खदानें एक साथ संचालित होती थीं। वहां हर दिन हजारों कर्मचारी और ठेका और दिहाड़ी मजदूर काम करते थे। ये वही दौर था, जब सेल की बड़ी औद्योगिक इकाइयों के साथ ही खनन उद्योग भी अपने चरम पर था। इससे एक बड़ी आबादी को रोजी-रोटी का जुगाड़ घर बैठे हो जाता था।

    औद्योगिक हब के रूप में थी पहचान : जानकार बताते हैं कि 70 और 80 के दशक में सेल ने अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए भवनाथपुर में चूना पत्थर के भंडार को देखते हुए सन 1965 में खदान खोलने का निर्णय लिया। आवश्यक संसाधन जुटाने के बाद वर्ष 1972 में एशिया के सबसे बड़े क्रशर प्लांट की स्थापना की गयी थी, जिसमें 1200 सेल कर्मियों को पदस्थापित किया गया था। इसके साथ ही घाघरा माइंस और तुलसीदामर डोलोमाइट खदान में हजारों मजदूर कार्यरत थे। सेल देश के औद्योगिक विकास में अपनी अमिट छाप छोड़ रहा था। यह वही दौर था, जब भवनाथपुर को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) का ‘मिनी बोकारो’ के नाम से जाना जाता था। लेकिन कालांतर में 2014 में घाघरा माइंस और सन 2016 में तुलसीदामर डोलोमाइट खदान बंद कर दी गयी। क्रशर प्लांट को नीलामी के जरिये कटवा कर बेच दिया गया है। सेल के इन बड़े उद्योगों के बंद होने का असर स्थानीय बाजार पर देखने को मिल रहा है।

    चुनावी जंग में इसे बनाया जाता है मुद्दा
    भवनाथपुर स्थित सेल के क्रशर प्लांट और खदानें बंद होने का सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान मजदूरों के साथ दुकानदारों, ठेले-खोमचे वालों को भी भुगतना पड़ रहा है। रोजगार की तलाश में हजारों की तादाद में दूसरे प्रदेशों में पलायन कर चुके मजदूरों को इस बात का इल्म अब भी है, कि गत दो दशकों के दौरान हुए चुनावों में यहां की समृद्ध औद्योगिक विरासत को चुनावी मुद्दा तो बनाया गया, लेकिन भवनाथपुर के उजड़े औद्योगिक संस्थान को संवारने की कवायद नहीं की गयी। पावर प्लांट और सीमेंट फैक्ट्री खुलवा कर युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने संबंधी खोखले आश्वासन से युवाओं के साथ आम जनमानस में काफी आक्रोश है।

    पावर प्लांट का शिलान्यास तो हुआ लेकिन धरातल पर उतर न सका
    19 फरवरी 2014 को 8500 करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित 1320 मेगावाट पावर प्लांट का शिलान्यास सीआइएसएफ फायरिंग रेंज के परिसर में किया गया था, लेकिन इसका निर्माण कार्य धरातल पर शुरू नहीं हो सका है।

    bhawnathpur garhwa Jharkhand
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    shivam kumar

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