आदिम जनजाति की महिलाएं नाला से सिर पर ढोकर लाती हैं पीने का पानी
कार्तिक कुमार
पाकुड़। आजादी के सात दशक बाद भी लिट्टीपाड़ा ब्लॉक के आदिम जनजाति परिवारों को शुद्ध पेयजल मुनासिब नहीं हो पा रहा है। 1 से 2 किलोमीटर पगडंडी पर चलकर कुआं, झरना या फिर खुले नाला का पानी यहां की महिलाओं को सिर पर ढोकर अपनी और अपने परिवार की प्यास बुझानी पड़ रही है। कहने को तो यहां कई बड़ी-बड़ी वाटर सप्लाई से लेकर डीप बोरिंग का प्रोजेक्ट की स्वीकृति मिली जो सिर्फ कागजों तक की सिमट का रह गयी है। हालात आज यह है कि यहां के लोगों को बरसात के इन दिनों में मजबूरन खुले झरना का दूषित पानी पीकर बीमारी को दावत देना पड़ रहा है। झारखंड में सबसे पिछड़े ब्लॉक के पायदान पर गिनती में गिने जाने वाला लिट्टीपाड़ा ब्लॉक के लोगों को आज भी विकास, रोजगार, शिक्षा, सड़क के साथ-साथ शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पा रहा है। आजाद सिपाही लिट्टीपाड़ा ब्लॉक मुख्यालय से 8 किमी दूरी पर बसा कर्माटांड़ पंचायत के पोराम गांव की जमीनी हकीकत से आपको अवगत करा रहा है।

दो सौ की पहाड़िया आबादी का पोराम गांव
आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी पोराम गांव की तस्वीर नहीं बदली है। गांव में आज भी लोग पेयजल, स्वस्थ रोजगार जैसे मूलभूत सुविधा से वंचित हैं। पोड़ाम गांव एक आदिम जनजाति पहड़िया बाहुल्य गांव है। गांव में 32 परिवार के लगभग 200 लोग रहते हैं। गांव में आज तक एक भी चापानल नहीं है। ग्रामीण धीमी पहाड़िन, मासी पहाड़ी, देवी पहाड़ी, दहाड़ा पहाड़िया, बहना पहाड़िया, चंदू पहाड़िया, रूपा पहाड़िया ने बताया कि आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद आज भी हमलोग गांव से लगभग एक किमी दूर पहाड़ी झरने का दूषित पानी पीने को विवश हैं। बताया कि गांव के नजदीक बने झरने बारिश के दिनों में प्यास हो बुझा देते हैं पर दिसंबर के बाद सारा झरना सूख जाता है। जिससे हमलोगों को गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर पहाड़ों से नीचे उतरकर पानी लाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव के ग्रामीणों को सरकारी योजना कर लाभ से भी वंचित रहना पड़ता है। गांव में आज तक कोई पक्की सड़क नहीं बनी है। गांव के लोग आज तक उबड़-खाबड़ पथरीली रास्तों से आवागम करने को विवश हैं। गांव के 32 परिवार में मात्र 9 परिवार को आवास योजना सहित पहड़िया आवास योजना का लाभ मिला है। गांव में आवास योजना से बनाये जा रहे आवास अधूरे पड़े हैं। बताया ग्रामीण जानकारी के आभाव में आवास निर्माण कार्य बिचौलिया के माध्यम से कराने को मजबूर हैं। बिचौलिया आवास निर्माण कार्य आधा अधूरा कर भाग गया है। जिससे आवास का निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। वहीं ग्रामीणों ने बताया गांव में रोजगार की घोर कमी है। गांव में सरकारी योजना का कोई भी कार्य नहीं चल रहा है। जिससे ग्रामीणों को पहाड़ों की खेती पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जिससे ग्रामीणों का आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाता है।

एक भी आंगनबाड़ी पोराम गांव में नहीं दिखी
गांव के बच्चों को पोष्टिक आहार और प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने वाली आंगनबाड़ी केंद्र नहीं रहने से बच्चों एवं अभिभावकों को काफी परेशानी होती है। गांव के छोटे-छोटे बच्चे व गर्भवती महिलाओं को पोष्टिक आहार सहित अन्य स्वास्थ जांच नहीं हो पाती है।
जल छाजन, वन बंधु जैसी योजना से भी वंचित रह गये लोग

लिट्टीपाड़ा जैसे सुदूर ब्लॉक की हालत को देखते हुए केंद्र सरकार ने लिट्टीपाड़ा के इलाके में प्रधानमंत्री कृषि योजना से आच्छादित करने के लिए जल छाजन जैसी योजनाएं की स्वीकृति दी। लेकिन यह योजना अधिकारियों और बिचौलियों का चारागाह बनकर रह गया। परिणाम है कि आज भी इन योजनाओं का वास्तविक लाभ यहां के ना तो आदिवासी और नहीं पहाड़ियों को मिल पाया।

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