नई दिल्ली: हाल ही में चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तारीखों की घोषणा की है। हिमाचल के साथ-साथ गुजरात में भी चुनाव होने हैं। लेकिन आयोग द्वारा गुजरात के चुनावों की घोषणा ना करने की वजह से ये राजनैतिक गलियारों का मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने प्रेस कांफ्रेस कर कहा है कि चुनाव की तारीख में देरी का कारण रेवड़ियां बांटे जाने के लिए किया गया है।

उन्होंने आरोप लगाया है कि भाजपा गुजरात में अपने डूबते जहाज को बचाने के लिए ऐसा कर रही है। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि आयोग ने घोषणा में देरी सरकार के इशारे पर की है, चुनाव में देरी का इस्तेमाल भाजपा लोगों को लुभाने के लिए करेगी। ये आरोप लगाते हुए उन्होंने लोकलुभावन घोषणाओं के लिए सैंटा क्लॉज शब्द का इस्तेमाल किया था।

इससे पहले पार्टी नेता रणदीप सुरजेवाला ने चुनाव आयोग की घोषणा के तुरंत बाद ही ट्वीट कर केंद्र सरकार पर आरोप लगाए थे। सुरजेवाला का आरोप था कि आगामी 16 अक्टूबर को पीएम गुजरात जा रहे हैं। देरी का स्पष्ट कारण है कि पीएम वहां जाकर लोकलुभावन घोषणाएं करेंगे।

चुनाव आयोग के इस फैसले से लोगों का भरोसा आयोग से उठ सकता है। आयोग के इतिहास को खंगाला जाए तो ऐसा कोई वाक्य सामने नहीं आता है। गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान भी चुनाव आयोग के बेहतरीन रोल के लोगों की निगाह में सम्मान और बढ़ा ही था।

5 साल पहले जब इन दो राज्यों गुजरात और हिमाचल में चुनाव हुए थे, चुनाव आयोग ने 3 अक्टूबर 2012 को दोनों राज्यों के लिए एक साथ मतदान कार्यक्रमों की घोषणा की थी। गुजरात की तारीख का ऐलान नहीं होने की वजह से विपक्षी पार्टियों को सरकार पर निशाना साधने का एक और मौका मिल गया।

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