दिवाली में पटाखों से होने वाले प्रदूषण को लेकर सरकार चिंतित है। राज्य सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए जनता से सहयोग की अपील की है। दो दिन पहले छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के अध्यक्ष और पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव अमन कुमार सिंह ने इस सिलसिले में एक अति आवश्यक बैठक लेकर संभाग कमिश्नरों एवं जिला कलेक्टरों को विशेष निर्देश जारी किए है। तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।
दरअसल पटाखों ही नहीं अपितु सुखसुविधा की ओर बढ़ रहे समाज में विभिन्न उपकरणों यंत्रों के उपयोग से भी पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। मोटर गाड़ी, पेट्रोल, डीजल, ढोल, बाजे, धमाल, कचरा, धुआं, आग सब प्रदूषण के कारण बने हुए हैं। दिल्ली में तो गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने समविषम गाड़ी नंबर से एक-एक दिन चलाने का प्रयोग भी किया पर उससे कोई विशेष फायदा नहीं मिल पाया।
पटाखों को लेकर दिल्ली के छाए धुओं ने सुप्रीम कोर्ट को पाबंदी लगाने विवश कर दिया और अंतत: दिल्ली एनसीआर में पटाखे की बिक्री पर एक नवंबर तक रोक लगा दी गई है। इन परिणामों ने देश को भी विचलित किया है और छत्तीसगढ़ सरकार भी पटाखों से होने वाले नुकसान की ओर जनता का ध्यान खींचा है। ध्वनि प्रदूषण और धुआं प्रदूषण से स्वास्थ्य पर बेहद गंभीर असर हो सकता है। पटाखों से बच्चे जलने की घटनाएं तो होती ही है प्रदूषण भी घने तादाद पर फैलता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक पटाखे नहीं फोड़़े जा सकेंगे। अगर कोई व्यक्ति उल्लंघन करे तो उस पर कार्रवाई होगी। पटाखों के प्रदूषण से होने वाले नुकसान को जब तक व्यक्ति भोगा नहीं होता तब तक उसको संकट भी समझ नहीं आता और गंभीरता से भी नहीं लेते।
इसलिए इसके लिए निर्देश से कहीं ज्यादा जरूरी जनजागरण अभियान चलाना है। बच्चों को बचपन से ही यह मालूम होना चाहिए कि पटाखों का धुआं जहरीला होता है, उसकी आवाज से उठने वाली ध्वनि तरंगे कान से लेकर हृदय तक क्षति पहुंचाती है। पर्यावरण को विषाक्त होता है। मुश्किल की बात तो यह है कि हम बच्चों पर अंकुश लगाने तैयार बैठे हैं किंतु नेताओं के आयोजनों में फूटने वाले पटाखों पर कोई बंदिश नहीं लगाई जाती। किसी भी विजय जुलूस,सम्मान समारोह अथवा बारातों में फूटने वाले पटाखे और 50-50 मीटर की लड़ियां फोड़ने पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए। आखिर ऐसे आयोजनों में खुशियों का इजहार बिना पटाखा के भी किया जा सकता है।
एक मंत्री के स्वागत में लाखों रुपये के पटाखे और लड़ियां फूकी जाती है जिसका वायुमंडल पर असर होता है। आखिर जो चीजें हम रोक सकते हैं उसे क्यों नहीं रोकी जा सकती। हड़तालों उपद्रवों में टायर जलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। होली में अनावश्यक ईंधन बर्बाद करने तथा टायरों को फूंकने का क्या औचित्य?
पर्यावरण प्रदूषण मंडल को इस पर विचार करना चाहिए। बात केवल दिवाली की नहीं बल्कि वह तमाम व्यवस्थाएं बदली जाए जिससे जीवन को खतरा है। भवन निर्माण में ग्रीन जाली बहुत उत्तम व्यवस्था है किंतु खुले में रेती मिट्टी ढोने की परंपरा खत्म हो जिससे धूलरहित जीवन निर्मित हो सके। छत्तीसगढ़ सरकार की चिंता वाजिब है कि लोगों के स्वास्थ्य को उत्तम रखने प्रदूषण मुक्त वातावरण का निर्माण हो।
किंतु उसके लिए केवल परिपत्र ही पर्याप्त नहीं हो सकते। बल्कि पूरी ऊर्जा के साथ जनजागरण का अभियान चलाना होगा। हम चाहते हैं यह जनता का खुद का अपना कार्यक्रम बने। सरकार के ही भरोसे यह जंग नहीं जीता जा सकता। स्वस्फूर्त इस पर काम को करने की जरूरत है। निस्संदेह अगर प्रदूषण का सरकारीकरण न हो तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।