नई दिल्ली.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सजायाफ्ता कैदियों को भी पेरोल या फर्लो के जरिए खुली हवा में सांस लेने और फैमिली से मिलने का वक्त मिलना चाहिए। एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इस तरह के मामलों को मानवीय तरीके से डील किया जाना चाहिए। पेरोल और फर्लो ग्रांट करने के लिए 1955 के रूल्स को अपग्रेड किए जाने की जरूरत है। सजा का मतलब क्या…
– सुप्रीम कोर्ट ने पेरोल और फर्लो दिए जाने पर दायर एक पिटीशन की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणियां कीं। पिटीशन 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के एक दोषी ने दायर की थी।
– मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने की। इस दौरान बेंच ने सरकार से कहा कि पेरोल और फर्लो पर रूल्स 1955 में बनाए गए थे। अब ये बिल्कुल बेकार हो चुके हैं। बेंच ने कहा कि सजा काटने का एक मतलब कैदी को सुधारना या नए सिरे से जीवन देना भी होता है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

– बेंच ने कहा- इस बात की फौरन जरूरत है कि इन रूल्स (पेरोल और फर्लो पर) को अपडेट किया जाए। क्योंकि, हम यहां इस बारे में विचार कर चुके हैं। हमारे ऑर्डर की एक कॉपी लॉ और जस्टिस मिनिस्ट्री को भी भेजी जाए।
– हालांकि, इस ऑर्डर के साथ ही कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि जिस शख्स को जितनी सजा सुनाई गई है, उतनी मियाद उसे जेल में काटनी होगी।
– बेंच ने आगे कहा- किसी मुजरिम को जेल से कुछ वक्त के लिए रिहाई इसलिए दी जाएगी ताकि वो पर्सनल और फैमिली प्रॉब्लम्स को सॉल्व कर सके। और वो अपने समाज का हिस्सा बना रह सके।

किन ग्राउंड्स पर पेरोल या फर्लो?

– सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पेरोल या फर्लो के लिए सबसे बड़ा आधार तो यही है कि कैदी परिवार और समाज के रिश्तों को बरकरार रख सके। क्योंकि, सजा का मतलब यह भी है कि वो जेल में रहकर नई जिंदगी के बारे में सोच सके।
– बेंच ने साफ कर दिया कि उम्र कैद काट रहे कैदियों को भी कुछ वक्त के लिए पेरोल या फर्लो दी जा सकती है। बेंच के मुताबिक- इसके जरिए वो पर्सनल और फैमिली की प्रॉब्लम्स सॉल्व कर सकेंगे। इसके अलावा सोसायटी में उन्हें कैसे बने रहना है, इसकी भी जानकारी हो जाएगी। उन्हें खुली हवा में सांस लेने का मौका भी मिलेगा।

क्या है पेरोल?

– कैदियों को जेल में अच्छा बर्ताव करने पर कुछ वक्त परिवार के साथ रहने के लिए दिया जाता है। इसमें कुछ शर्तें होती हैं। इसमें से एक यह है कि जेल से बाहर रहने के दौरान वो करीबी थाने में बराबर आमद दर्ज कराते रहेंगे।

और फर्लो क्या है?

– फर्लो का वक्त पेरोल से कम होता है। ज्यादातर ये उन कैदियों को दी जाती है जो लंबे वक्त से जेल में हैं या जिन्हें लंबी सजा काटनी है।

किस मामले पर आई कोर्ट की टिप्पणी?

– कोर्ट का यह ऑर्डर अशफाक नाम के शख्स की पिटीशन पर आया। महाराष्ट्र की टाडा कोर्ट ने उसे 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट में दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी।
– अशफाक का आरोप था कि जेल अथॉरिटी उसे पेरोल नहीं दे रही हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें उसने अशफाक को पेरोल दिए जाने से इनकार किया था। बेंच ने कहा कि अशफाक कुछ वक्त बाद नए सिरे से पेरोल के लिए अप्लाई कर सकता
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