रांची। भाजपा अपने वर्तमान सांसदों का रिपोर्ट कार्ड बना रही है। झारखंड और बिहार के सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए पार्टी तीन स्तरीय सर्वे करा रही है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण थर्ड पार्टी सर्वे को माना जा रहा है। जानकारी के मुताबिक अब तक नौ सीटों का सर्वे पूरा हो चुका है। सात बिंदुओं पर सांसदों का मूल्यांकन हो रहा है। पहला बिंदु है सांसदों की उम्र। दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है  उनका स्वास्थ्य। मूल्यांकन इस बात का भी हो रहा है कि चार वर्षों में आम लोगों के साथ उनकी कनेक्टिविटी कैसी रही। क्षेत्र में उनकी सक्रियता और परफॉरमेंस के बारे में सूचनाएं एकत्र की जा रही हैं। पार्टी कार्यक्रमों में उनकी सहभागिता, बदले राजनीतिक हालात में उनकी जीत का प्रतिशत आदि बिंदुओं पर उनका मूल्यांकन हो रहा है। जीतने की गारंटी होने पर ही उन्हें फिर से टिकट मिलेगा। पर टिकट कटने के पहले उन्हें विश्वास में लेते हुए दूसरी सीट पर पड़नेवाले इसके प्रभाव का आकलन भी किया जायेगा। इस सर्वे में प्रदेश भाजपा भी पूरा सहयोग कर रही है।

जीतने की गारंटी को लेकर हो रहा सर्वे

गौरतलब है कि जीतने की गारंटी को लेकर पार्टी ने सर्वे कराया है। प्रदेश के 14 संसदीय क्षेत्रों में से 12 सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। शेष दो सीटेंं झामुमो के कब्जे में हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार सभी 14 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। परफॉरमेंस और जीतने की गारंटी को देखते हुए कतिपय वर्तमान सांसदों के टिकट कटने का संकेत भी वे दे गये हैं। बता दें कि झारखंड की चौदह में से दो संसदीय सीटों दुमका और राजमहल से झामुमो के सांसद हैं।

चर्चा के केंद्र में खूंटी, रांची, चतरा, धनबाद, गोड्डा, गिरिडीह और पलामू

पार्टी संगठन के अंदर सात संसदीय क्षेत्र खूंटी, रांची, धनबाद, गिरिडीह, पलामू, गोड्डा और चतरा वर्तमान में चर्चा के केंद्र में हैं। खूंटी के कड़िया मुंडा भाजपा के कद्दावर नेता हैं। वे इस क्षेत्र से आठवीं बार सांसद हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का विधानसभा क्षेत्र सरायकेला-खरसावां इसी संसदीय क्षेत्र का एक हिस्सा है। फिलहाल पार्टी का मुख्य फोकस इस सीट पर कड़िया मुंडा का बेहतर विकल्प तलाशने को लेकर है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि उनकी उम्र हो चुकी है। उन्हें आलाकमान कोई दूसरी बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है। वह इसलिए कि अगर उनका टिकट कटा, तो उसका नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़े। उन्हें राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी बैठाया जा सकता है। रांची के रामटहल चौधरी और धनबाद के पीएन सिंह का भी बड़ा जनाधार है। बावजूद इसके वे भाजपा के भविष्य की योजना में कितना फिट बैठते हैं, इस पर चर्चा जारी है। रांची में रामटहल की उम्र और धनबाद में पीएन सिंह के स्वास्थ्य पर आलाकमान की नजरें टिकी हुई हैं। पलामू सीट को लेकर भी चर्चा हो रही है। हालांकि अभी उसके बारे में कोई स्पष्ट धारणा नहीं बनी है। गोड्डा और गिरिडीह सीट को लेकर भी चर्चाएं हो रही हैं। इसका कारण उम्र और स्वास्थ्य नहीं, बल्कि हाल के दिनों में उपजे विवाद को माना जा रहा है।

नौ सीटों पर लिया जा चुका है सांसदों का फीड बैक

झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के लिए मिशन 2019 का लक्ष्य बड़ा महत्वपूर्ण है। पार्टी राज्य की सभी 14 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाने का प्रयास कर रही है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सांसदों का फीडबैक लिया जा रहा है। संभव है कि कुछ वर्तमान सांसदों का पत्ता कट जाये। मिशन 2019 के लिए कई संगठनात्मक प्रयास चल रहे हैं। हाल में प्रमंडलीय विधानसभा कोर कमेटी की बैठक विभिन्न जगहों पर हुई। संगठन के हिसाब से कई काम के अलावा पार्टी के प्रमुख नेता विभिन्न लोकसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओंं से फीडबैक ले रहे हैं। राज्य में धनबाद, खूंटी, गोड्डा, रांची, कोडरमा, चतरा, पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह के नेताओं से फीडबैक लिये जा चुके हैं। इसके आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है। पलामू, लोहरदगा, गोड्डा, चाईबासा, पूर्वी सिंहभूम में फीडबैक की प्रक्रिया जारी है।

किन-किन लोकसभा सीट में अल्टरनेटिव कैंडिडेट को लेकर है चर्चा

पार्टी में फिलहाल छह लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिनमें अल्टरनेटिव कैंडिडेट को लेकर चर्चा गर्म है। उनमें राजधानी समेत पड़ोसी जिले खूंटी, धनबाद, गिरिडीह, चतरा और गोड्डा हैं। कुछ लोग पलामू सीट को भी लेकर चर्चा कर रहे हैं। दरअसल रांची और खूंटी के सांसद पिछले कई टर्म से एमपी हैं। संसद में डिप्टी स्पीकर रह चुके खूंटी सांसद कड़िया मुंडा 82 साल के हैं, जबकि रांची से एमपी रामटहल चौधरी पांचवीं बार सांसद हैं और उनकी उम्र लगभग 76 साल है। वहीं, धनबाद से पहली बार लोकसभा पहुंचे पीएन सिंह भी लगभग 69 साल के हैं। हालांकि सिंह सांसद भले ही दूसरी बार बने हैं, लेकिन इससे पहले वे धनबाद विधानसभा सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं। चतरा से मौजूदा सांसद का परफॉॅरमेंस बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन कोई ठोस विकल्प फिलहाल नहीं नजर आ रहा है। वहीं गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने अपनी विवादित गतिविधियों के कारण चर्चा का केंद्र अपनी ओर मोड़ लिया है, जिसका नकारात्मक प्रभाव भी पार्टी पर असर डालता रहा है। खास तौर पर ऐसे समय में, जब पार्टी का मुख्य फोकस संथाल परगना पर है। पिछड़ी जाति के युवक पवन साह से पैर धुलवाने के मामले ने दिल्ली में पार्टी आलाकमान को भी झकझोर दिया था। उनके बारे में आलाकमान तक यह भी शिकायत पहुंची है कि वह अकसर राज्य सरकार को सुपरशीड करने की कोशिश करते रहे हैं।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version