हर भाषण का एक मकसद होता है। कुछ जनता को खुद से जोड़ने के लिए दिये जाते हैं, तो कुछ जनता के बीच अपने विरोधियों की छवि को तोड़ने और मरोड़ने के लिए। सिल्ली का अपना गढ़ जीतने के लिए सुदेश ने नये और ऐसे ऊर्जावान नेताओं की पौध तैयार की है, जो सिल्ली विधायक सीमा महतो और पूर्व विधायक अमित महतो के पसीने छुड़ा रहे हैं। वहीं सुदेश खुद क्षेत्र में पूरा समय देकर जनता की समस्याएं सुन रहे हैं। सिल्ली की जनता के दिल पर काबिज होने और आजसू को एक मुकाम तक पहुंचाने की राह प्रशस्त करने की सुदेश की रणनीति की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
सुदेश महतो ने हारने के बाद भी सिल्ली के लोगों का नहीं छोड़ा साथ
26 सितंबर को जोन्हा के जिदु गांव में एक मंच सजा था। मंच पर आजसू नेता शंकर मुंडा की ओजस्वी आवाज गूंज रही थी। और उनके हर वाक्य के बाद मंच पर बैठे लोग तालियां बजा रहे थे। कार्यक्रम में शंकर मुंडा ने सीमा महतो पर प्रहार करते हुए कहा कि पांच सालों के उनके कार्यकाल में सिल्ली की दुर्गति हो गयी है। हमें विकास के साथ चलना है। एक-एक युवा को रोजगार मिले इस दिशा में काम करना है। शंकर मुंडा ने कहा कि सिल्ली से सीमा का सूपड़ा साफ है, आज से उनकी पेंशन शुरू हो गयी है। इसी तरह आजसू नेता और जिला परिषद अध्यक्ष सुुकरा सिंह मुंडा ने क्षेत्र में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि सुदेश महतो बेटी-बहन की शादी में पचास-पचास किलो चावल देकर सहयोग करते रहे हैं। बीते उपचुनाव में सीमा महतो ने 75 किलो चावल देने का वादा किया, कहा कि बेटी-बहन की शादी में दस ग्राम सोना देंगी, पर अपना वादा पूरा नहीं किया। ये महज दो भाषण नहीं हैं, वे हथियार हैं जिनके जरिये यह कहा जा सकता है कि इस बार सिल्ली सुदेश के पक्ष में कहानी लिखने को तैयार हैं। यह भी कि सुदेश एक बार फिर सिल्ली के लोगों के दिल में जगह बना चुके हैं। एक तरफ तो आजसू में ऊर्जावान और ओजस्वी वक्ताओं की नयी फौज आने से सीमा और अमित महतो को करार जवाब मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ आजसू क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हर कवायद को अंजाम दे रही है। इन सबका मिला-जुला असर ये हो रहा है कि सिल्ली विधायक सीमा महतो और पूर्व विधायक अमित महतो के पसीने छूट रहे हैं। इधर सिल्ली के अपने गढ़ की जनता का दिल जीतने के लिए सुदेश लगातार प्रयास कर रहे हैं। चाहे वह सोनाहातू में आयोजित करम अखरा हो या बिरसा आहार योजना। या फिर सरकारी योजना में शामिल होने से वंचित लोगों के लिए पेंशन की योजना। सुदेश क्षेत्र में जन-जन का नायक बनने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। सिल्ली में अपना अधिक से अधिक समय देने के कारण जनता की पूर्व की यह धारणा कि वे लोगों के लिए उपलब्ध नहीं थे, अब लगभग अर्थहीन होने लगी है। लोगों का प्यार उन्हें फिर से मिलने लगा है। यह स्थिति सिल्ली विधायक सीमा महतो और पूर्व विधायक अमित महतो को असहज कर रही है। सुदेश की राजनीतिक बमबारी से तो वे परेशान थे ही, रही सही कसर अमित का साथ छोड़ कर आजसू में आये सुकरा मुंडा पूरी कर रहे हैं। ओजस्वी भाषण देनेवाले सुकरा मुंडा उन लोगों को भी सुदेश से कनेक्ट कर रहे हैं जो कभी पार्टी से जुड़ाव नहीं रखते थे। उनके आने के बाद आदिवासियों का रुझान आजसू के प्रति बढ़ा है और यह सुदेश के लिए राहत की बात है। नवंबर-दिसंबर में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और एक माहिर राजनीतिज्ञ होने के कारण सुदेश यह अच्छी तरह जानते हैं कि यह समय उनके लिए चुनावी जीत की फसल को बोने और संजोने का है। अपनी पिछली हार से सबक लेते हुए वह ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहते, जिससे कोई नुकसान हो। इसलिए सिल्ली की जनता के मूड को भांपते हुए काम कर रहे हैं। गिरिडीह से उनकी पार्टी का एक सांसद बन जाने के बाद उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ गयी है और सत्तारूढ़ भाजपा की नजरों मेें पार्टी की हैसियत में भी इजाफा हुआ है। जीत की इस खुशी से सुदेश महतो का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे सिल्ली का अपना गढ़ फिर से हासिल हो इसकी कवायद में जुटे हुए हैं।
अपनी हार से सबक ले चुके हैं सुदेश महतो
आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने वर्ष 2014 में भाजपा के साथ गठबंधन कर सिल्ली से चुनाव लड़ा था, पर वे अमित महतो के हाथों हार गये थे। विधानसभा उपचुनाव में भी उन्होंने किस्मत आजमायी पर सीमा महतो ने उन्हें हरा दिया। सुदेश महतो के साथ अच्छी बात यह है कि वे अपनी हार से सबक ले चुके हैं। सुदेश इस क्षेत्र से 2000, 2005 और 2009 का चुनाव जीत चुके हैं और इसलिए क्षेत्र की जनता की नब्ज वे जानते हैं। नवंबर-दिसंबर में झारखंड विधानसभा चुनाव होने हैं और अब चुनाव में बहुत कम समय रह गया है इसलिए सुदेश चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए किसी माहिर रणनीतिज्ञ की तरह प्लान ए और प्लान बी पर काम कर रहे हैं। उनका प्लान ए यह है कि क्षेत्र की जनता के दिल में योजनाओं और कार्यक्रमों के जरिये उतर जाओ। वर्तमान विधायक पर इतनी तेज राजनीतिक बमबारी करो कि उनको संभलने का मौका न मिले। उनकी इसी राजनीतिक बमबारी का असर है कि क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखनेवाले अमित महतो अब असहज महसूस करने लगे हैं। उनके साथ के लोग अब पाला बदलने लगे हैं। एक और बात सुदेश के पक्ष में जाती है। राजनीतिक दृष्टि से रामटहल चौधरी का हाशिये पर चले जाना सुदेश के लिए काफी राहत की बात है।
यह जगजाहिर है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद रामटहल चौधरी सुदेश महतो के पीछे पड़ गये थे और उन्होंने सुदेश महतो को काफी नुकसान पहुंचाया था। सीधे-सीधे उन्होंने चुनाव में अमित महतो का साथ दिया था। आज की तारीख में रामटहल चौधरी राजनीतिक मैदान से ही बाहर हो चुके हैं। उनके समर्थक भी पाला बदल चुके हैं और इससे सुदेश महतो को लाभ हुआ है। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की टूटी कमर से भी सुदेश महतो को ऊर्जा मिली है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में विपक्ष और खासकर झामुमो को धक्का लगा है। झामुमो सुप्रीमो के दुमका से चुनाव हार जाने के बाद कार्यकर्ता हताश हैं। वहीं विपक्ष में भी अब वह धार नहीं है, जो 2014 तक थी। विपक्ष में कांग्रेस खुद अपनी अंदरूनी कलह से परेशान है और झाविमो के बाबूलाल मरांडी का भरोसा अब कांग्रेस और झामुमो के प्रति उतना नहीं रहा। राजद की स्थिति भी झारखंड में पतली है। ऐसे में सिल्ली के जंग में इस बार अमित महतो बहुत हद तक अलग-थलग रहेंगे। उनका साथ देने के लिए पिछली बार की तरह न तो सुबोधकांत सहाय मंच पर उतरने की स्थिति में हैं और न ही झाविमो के बाबूलाल मरांडी। सबको अब अपनी जमीन बचाने की चुनौती होगी। ऐसे में सुदेश महतो के समक्ष पहले की बनिस्पत परेशानियां कम होंगी। वहीं इस बार वह खुद दम खम के साथ सिल्ली में डेरा डाल चुके हैं। उनके कार्यकर्ता भी इस चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना चुके हैं। लगातार फील्ड में बने रहने के कारण भी सुदेश महतो को अब पहले से ज्यादा प्यार मिलने लगा है और सिल्ली की जनता को भी लगने लगा है कि उनके हारने से सिल्ली को काफी नुकसान हुआ है। विकास के काम में अवरोध पैदा हुआ है। यही कारण है कि अब हर दिन नये लोग आजसू से जुड़ रहे हैं और जमीन मजबूत बना रहे हैं।