भारतीय राजनीति में दलबदल आम बात है। खास कर चुनावों से पहले बड़े पैमाने पर दलबदल होता है। हर दल के सामने अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की चुनौती होती है। झारखंड जैसे छोटे राज्य में पाला बदलने का खेल कुछ बड़ा होता है, क्योंकि यहां विधानसभा की कम सीटों पर दावेदारों की संख्या अधिक होती है। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। विधानसभा चुनाव की आहट मिलते ही नेताओं द्वारा पाला बदलने की सुगबुगाहट तेज हो गयी है। झारखंड का नक्सल प्रभावित जिला लातेहार में इस बार पाला बदलने का सिलसिला कुछ तेज होता दिख रहा है। वर्तमान विधायक प्रकाश राम के झाविमो छोड़ कर भाजपा में शामिल होने की खबर के बाद यहां नेताओं के बीच बेचैनी बढ़ गयी है। उनकी आंखों से नींद गायब है। लातेहार में दलबदल की संभावनाओं पर संतोष सिन्हा की खास रिपोर्ट।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली सफलता और महागठबंधन के अब तक आकार नहीं लेने से असमंजस में फंसे कई नेता इस साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पूर्व बेहतर संभावनाओं की तलाश में अन्य दलों की ओर देख रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि झारखंड में अन्य दलों की तुलना में भारतीय जनता पार्टी का आकर्षण लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ा है, जबकि विपक्षी दल संसदीय चुनाव में पराजय और आपसी एकता के अभाव में पस्त हैं। ऐसे में यह कयास जोरों पर है कि विभिन्न पार्टियों के नेता भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इनमें कांग्रेस, झामुमो, झाविमो, राजद और जदयू के कई नेताओं के नाम शामिल हैं।
अभी सबसे अधिक चर्चा लातेहार की है, जहां के झाविमो विधायक प्रकाश राम पांच अक्टूबर को औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल होनेवाले हैं। जिले की इस सबसे बड़ी राजनीतिक घटना ने नेताओं में हलचल पैदा कर दी है। इस खबर ने जिले के कई नेताओं को बेचैन कर दिया है। उनकी आंखों के सामने राजनीतिक अंधेरा छा गया है।
प्रकाश राम पिछला चुनाव जीतने के बाद से ही अपनी पार्टी से दूर-दूर रह रहे थे। उस समय जब झाविमो के छह विधायक भाजपा में शामिल हुए थे, तब प्रकाश राम भी ऐसा ही करने की जुगत में थे, लेकिन किसी कारण से उनकी दाल नहीं गल सकी थी। झाविमो में आने से पहले प्रकाश राम भाजपा में थे, जहां वह राजद छोड़ कर आये थे। अब प्रकाश राम एक बार फिर भाजपा में आने के लिए तैयार हैं और जाहिर है कि उनका यह बड़ा राजनीतिक दांव केवल पार्टी में आने तक सीमित नहीं है। प्रकाश राम के भाजपा में आने का मतलब यह है कि लातेहार के वैसे कई नेताओं के सपनों पर विराम लग जायेगा, जो पिछले पांच साल से टिकट की आस में हैं। इनमें पूर्व विधायक सह मंत्री बैजनाथ राम, पूर्व विधायक बालजीत राम, संतोष पासवान, कामेश्वर भोक्ता, नारायण गंझू उर्फ आदित्य जी, उनकी पत्नी सुनिता देवी और ब्रजमोहन राम के नाम शामिल हैं। ये सभी लोग इस बार विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए खम ठोक रहे थे और दावा कर रहे थे भाजपा का टिकट उन्हें ही मिलेगा। लेकिन इनकी उम्मीदों पर प्रकाश राम के भाजपा में शामिल होने से पानी फिर सकता है। इनके अलावा चेतलाल रामदास, कामेश्वर भोक्ता भी भाजपा के उन नेताओं की कतार में शामिल हैं, जो इस बार चुनाव मैदान में उतरने का सपना संजोये हुए हैं। हालांकि इन नेताओं के बारे में यह कहा जा सकता है कि इन्हें अगर चुनाव मैदान में उतारा भी जाता है, तो इनका जीतना निश्चित नहीं माना जा सकता है। इसके बावजूद प्रकाश राम के आने से इनके कद में जो कटौती होगी, उसे ये नेता और उनके समर्थक आसानी से पचा नहीं पा रहे हैं। उनका मानना है कि इतने दिनों से पार्टी का काम करने और सभी चुनौतियों के सामने पार्टी का झंडा बुलंद करने का पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो फिर कार्यकर्ता हतोत्साहित हो सकते हैं।
इस बारे में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल कुमार शाहदेव कहते हैं कि किसी के भाजपा में शामिल होने का मतलब यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि उसे टिकट मिलने की गारंटी है। टिकट किसे मिलेगा, इसका फैसला एक तय प्रक्रिया के तहत किया जाता है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि चुनाव से पहले दूसरे दलों के कई बड़े नेता भाजपा का दामन थामेंंगे, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन सभी को टिकट मिल ही जायेगा। भाजपा में राष्ट्रवादी और विकास की विचारधारा वाले लोगों का स्वागत है।
लातेहार में चर्चा इस बात की भी है कि प्रकाश राम के भाजपा में शामिल होने के बाद एक बड़ा राजनीतिक बवंडर पैदा हो सकता है, जिसकी जद में भाजपा और झाविमो तो आयेंगे ही, दूसरे दल भी फंस सकते हैं। इनमें कांग्रेस और राजद का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि प्रकाश राम के पाला बदलने के बाद कई दलों के दूसरे नेता भी उनकी राह पर निकल पड़ेंगे, हालांकि इस बारे में फिलहाल कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है।
लातेहार की इस घटना की पृष्ठभूमि में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रकाश राम जैसे कितने विधायक और टिकट के बड़े दावेदार पाला बदलते हैं और फिर नये चुनाव चिह्न पर चुनाव मैदान में उतरते हैं। लेकिन इतना तो अवश्य होगा कि पाला बदलने का यह खेल सभी दलों के सामने एक चुनौती लेकर आयेगा, जिसमें सभी को इस राजनीतिक बवंडर में अपना घर सुरक्षित रखना होगा। इस खेल में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि किसकी किलेबंदी मजबूत है और कौन कमजोर है। अंतिम परिणाम जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि प्रकाश राम के पाला बदलने का असर केवल लातेहार पर ही नहीं, बल्कि आसपास के दूसरे विधानसभा क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। इस असर का आकलन अभी भले नहीं किया जा रहा है, लेकिन लोग तो बात करने ही लगे हैं। इस असर का आकलन भाजपा समेत अन्य दल जितनी जल्दी कर लेंगे, उनके लिए उतना ही अच्छा होगा और विधानसभा चुनाव से पहले अपने घर की कमजोरियों को दूर करने में उन्हें उतनी ही मदद मिलेगी।