रांची। दिशोम गुरु शिबू सोरेन जिस महाजनी प्रथा के खिलाफ लड़ कर झारखंड की शीर्षस्थ राजनीतिक हस्ती बने, उसी प्रथा के साथ केंद्र सरकार के उपक्रम दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) झारखंड को आंखें दिखा रहा है। यह तब हो रहा है, जब डीवीसी सारा संसाधन, यानी जमीन, पानी और कोयला झारखंड का इस्तेमाल करता है। इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि जिस झारखंड से डीवीसी की पूरी दुकानदारी चलती है, उससे ही वह हर महीने 125 करोड़ का सूद वसूल रहा है। इतना ही नहीं, तीन दिन पहले उसने रिजर्व बैंक के साथ मिल कर झारखंड के खाते से 1417.50 करोड़ भी निकाल लिये।
हर माह 170 करोड़ की बिजली खरीदता है झारखंड
डीवीसी से हर महीने झारखंड ऊर्जा विकास निगम पांच सौ मेगावाट बिजली खरीदता है। इसकी कीमत 170 करोड़ रुपये होती है। इसके अलावा डीवीसी अपने पिछले बकाये पर 18 फीसदी की दर से ब्याज वसूलता है, जो हर महीने 125 करोड़ रुपये होता है। इस साल जनवरी से सितंबर तक झारखंड ऊर्जा विकास निगम ने डीवीसी को दो बार में 895 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। मार्च में चार सौ करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था और फिर अगस्त में 495 करोड़ रुपये दिये गये। इस तरह नौ महीने में डीवीसी से 1530 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी गयी और उसे 895 करोड़ रुपये दिये गये। इस तरह इन नौ महीनों का बकाया केवल 635 करोड़ रुपये होता है। लेकिन डीवीसी का कहना है कि इन नौ महीनों के सूद की रकम ही 1125 करोड़ हुई और 1530 करोड़ की बिजली खरीदी गयी, यानी कुल 2655 करोड़ में से केवल 895 करोड़ रुपये ही दिये गये।
कितना बकाया है डीवीसी का
झारखंड ऊर्जा विकास निगम के अनुसार डीवीसी का झारखंड पर करीब 47 सौ करोड़ रुपये बकाया है। डीवीसी के दावे के अनुसार कुल बकाया 58 सौ करोड़ के करीब है। इस दावे के बारे में विभाग का कहना है कि 11 सौ करोड़ रुपये का डीवीसी का दावा विवादित है और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित है।
ऐसे शुरू हुआ विवाद
दरअसल, डीवीसी और झारखंड के बीच बकाये को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। डीवीसी ने 11 सितंबर को जो पत्र झारखंड सरकार को भेजा था, उसमें बकाये की रकम 5608.32 करोड़ रुपये बतायी गयी थी। वर्ष 2017 में जब इस विवाद ने तूल पकड़ा, तब केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने इसमें हस्तक्षेप किया था। उस साल 27 अप्रैल को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय, डीवीसी और झारखंड सरकार के बीच एक समझौता हुआ था। इस त्रिपक्षीय समझौते में कहा गया था कि झारखंड सरकार चालू बिल का नियमित भुगतान करने के साथ सूद का भी भुगतान करेगी। साथ ही बकाये की रकम का भुगतान सुविधाजनक किस्तों में किया जायेगा। समझौते के बाद पूर्व की सरकार ने इन शर्तों का पालन नहीं किया। इससे डीवीसी का बकाया बढ़ता रहा। साथ ही सूद की रकम भी बढ़ती गयी। समझौते में यह भी तय हुआ था कि भुगतान में देरी होने की स्थिति में रिजर्व बैंक के खाते से पैसा लिया जा सकेगा। बिल प्रस्तुत करने के 60 दिनों के भीतर भुगतान करना होगा। बकाया भुगतान के लिए डीवीसी ने 13 अगस्त को बिल जारी किया था। इसके बाद 11 सितंबर को ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव को डीवीसी ने बकाया भुगतान को लेकर नोटिस जारी किया था। इसमें 15 दिन के भीतर बकाये का भुगतान की चेतावनी दी गयी थी। पत्र में कहा गया था कि मियाद समाप्त होने के बाद त्रिपक्षीय समझौते के तहत केंद्र सरकार राज्य सरकार के आरबीआइ खाते से चार समान किस्तों में वसूली करेगी।
झारखंड सरकार ने मांगी थी मोहलत
बिल मिलने के बाद झारखंड सरकार ने कोरोना संकट का हवाला देते हुए मोहलत मांगी थी। डीवीसी ने मोहलत देने से इनकार कर दिया और 60 दिन की अवधि पूरी होते ही 5608.32 करोड़ के बकाये की पहली किस्त के रूप में 1417.50 करोड़ रुपये झारखंड के खाते से निकाल लिये।
अन्याय कर रहा है केंद्र : डॉ रामेश्वर उरांव
झारखंड के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा है कि आदिवासी बहुल और पिछड़े राज्य के साथ केंद्र अन्याय कर रहा है। हमारा जीएसटी का पैसा केंद्र नहीं दे रहा है। दूसरा बकाया भी नहीं मिल रहा है, लेकिन डीवीसी का बकाया काट ले रहा है। उन्होंने कहा कि डीवीसी का बकाया पूर्व की भाजपा सरकार के समय का है। उसकी कारस्तानी की सजा आज झारखंड भुगत रहा है। मौजूदा संकट की बाबत डॉ उरांव ने कहा कि स्थिति गंभीर है, लेकिन हम लगातार कोशिश कर रहे हैं। इधर-उधर से पैसा जुटा कर वेतन और पेंशन के दायित्वों को हम जरूर पूरा करेंगे।
झारखंड के बकाये पर कोई बात नहीं
इस विवाद के बीच केंद्रीय संस्थानों पर झारखंड सरकार के बकाये के बारे में कोई बात नहीं हो रही है। कोल इंडिया पर रॉयल्टी का 38 हजार करोड़ रुपये बकाया है। इसके अलावा कोल इंडिया और सेल द्वारा इस्तेमाल की जा रही जमीन के लगान का 33 हजार करोड़ रुपये बाकी है। इन पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता है। अब तो झारखंड को अपने बकाये की वसूली के लिए चिरौरी करनी पड़ रही है।
अब आगे क्या होगा
केंद्र सरकार ने पहली किस्त की कटौती करने के बाद कहा है कि नोटिस की अवधि पूरी होने के बाद यह निर्णय किया गया है। सरकार को आत्मनिर्भर भारत के तहत ऋण लेकर डीवीसी का भुगतान करने का सुझाव दिया गया था। बकाया चार समान किस्तों में कटेगा। इसके मुताबिक अगली किस्त अगले वर्ष जनवरी, अप्रैल और जुलाई में वसूली जायेगी।