झारखंड की दो विधानसभा सीटों, दुमका और बेरमो में तीन नवंबर को होनेवाले मतदान की सरगर्मी शुरू हो गयी है। सत्तारूढ़ झामुमो और कांग्रेस के साथ विपक्षी भाजपा ने भी अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। भाजपा ने जहां अपने पुराने योद्धाओं पर भरोसा जताते हुए उन्हें एक बार फिर मैदान में उतारा है, वहीं झामुमो और कांग्रेस ने युवा प्रत्याशियों को अखाड़े में भेजा है। सत्ता पक्ष के दोनों उम्मीदवारों के लिए यह पहला चुनावी अनुभव है। इसलिए मुकाबला जोरदार होगा। दुमका में झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन इससे पहले राज्यसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन प्रत्यक्ष चुनाव का यह उनका पहला अनुभव होगा। इन दोनों सीटों पर झामुमो-कांग्रेस के साथ भाजपा और आजसू की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। ये दोनों सीटें झामुमो और कांग्रेस के पास थीं, इसलिए ये दोनों दल इन पर दोबारा कब्जे के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। दूसरी तरफ भाजपा के पास विधानसभा चुनाव में हुई पराजय का बदला चुकाने का यह अच्छा अवसर है और वह इसे किसी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देना चाहेगी। रही बात चुनावी मुद्दों की, तो महज 10 महीने पहले की परिस्थितियों में बहुत बदलाव नहीं आया है। इसलिए ऐसा लगता है कि यह उप चुनाव मुद्दों की बजाय स्थानीय परिस्थितियों पर ही लड़ा जायेगा। इतना जरूर है कि मुकाबला युवा शक्ति और अनुभव के बीच का होगा। दुमका और बेरमो के चुनावी परिदृश्य की तस्वीर उकेरती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास पेशकश।
झारखंड की पांचवीं विधानसभा की दो खाली सीटों के लिए चुनावी सरगर्मी शुरू हो गयी है। तीन नवंबर को होनेवाले चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित हो गये हैं और नामांकन पत्र दाखिल करने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। कोरोना काल में पहली बार हो रहे इस उप चुनाव में कई चीजें पहली बार हो रही हैं। लेकिन इसके बावजूद यह तय हो गया है कि मुकाबला बेहद रोचक और जोरदार होगा।
दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में दुमका सीट से झामुमो प्रत्याशी के रूप में हेमंत सोरेन ने जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा की लुइस मरांडी को 13 हजार मतों के अंतर से हराया था। हेमंत बरहेट की सीट से भी जीते थे, इसलिए बाद में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दी और इस कारण यहां उप चुनाव हो रहा है। झामुमो ने हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो इससे पहले केवल एक बार राज्यसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। बसंत सोरेन ने अपना नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया है। उधर भाजपा ने एक बार फिर लुइस मरांडी पर भरोसा जताया है। जहां तक बेरमो सीट का सवाल है, तो दिसंबर के चुनाव में यहां से कांग्रेस के दिग्गज राजेंद्र प्रसाद सिंह जीते थे। उन्होंने भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को 25 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था। बाद में उनके निधन के कारण यह सीट खाली हो गयी। इस बार कांग्रेस ने उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने एक बार फिर बाटुल को मैदान में उतारा है।
दुमका और बेरमो का चुनावी इतिहास बेहद रोचक रहा है। 2009 के चुनाव में दुमका से हेमंत सोरेन ने जीत हासिल की थी। उन्होंने लुइस मरांडी को 26 सौ से कुछ अधिक मतों के अंतर से हराया था। लेकिन 2014 में लुइस मरांडी ने उस पराजय का बदला ले लिया और 49 सौ से अधिक मतों के अंतर से जीत कर विधायक बनीं। बाद में वह मंत्री भी बनीं। उधर बेरमो में 2009 के चुनाव में राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बाटुल को 66 सौ से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था, लेकिन 2014 में बाटुल ने कांग्रेस प्रत्याशी को 12 हजार से अधिक वोटों से हरा कर हिसाब बराबर कर लिया था।
इस बार इन दोनों सीटों पर हो रहे उप चुनाव के दौरान मुद्दों की बात की जाये, तो दिसंबर के बाद से परिस्थितियां बहुत अधिक नहीं बदली हैं। आम तौर पर उप चुनाव सरकार के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड होता है, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के कारण पिछले सात महीने से लगभग ठप पड़ी गतिविधियों ने विपक्ष के पास ऐसा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा है, जिन पर वह सरकार को घेर सके। दिसंबर में सत्ता संभालने के बाद मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन के दौरान हेमंत सोरेन सरकार ने सामाजिक मोर्चे पर जो काम किये, उनकी चर्चा खूब हुई है। इसके अलावा प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने और फिर एमओयू करने के बाद उन्हें काम पर भेजने की सरकार की पहल का भी अच्छा संदेश गया है। दुमका के मतदाता वोट डालते समय इन बातों का ध्यान जरूर रखेंगे। उधर बेरमो में कोयला क्षेत्र में हाल में की गयी केंद्र की पहल को कांग्रेस मुद्दा बनायेगी। कमर्शियल कोल माइनिंग और कोल इंडिया के निजीकरण की आशंकाओं को कांग्रेस की ओर से चुनावी मुद्दा बनाया जायेगा। इसके साथ दुमका और बेरमो में कृषि कानूनों का मुद्दा भी उठाया जा सकता है।
इस तरह कहा जा सकता है कि इन दोनों क्षेत्रों में दोनों ही पक्ष रक्षात्मक मुद्रा में ही रहेंगे। सत्ता पक्ष की ओर से केंद्र सरकार के फैसलों के बहाने भाजपा पर हमला बोला जायेगा, तो भाजपा राज्य सरकार को कानून-व्यवस्था और पलायन जैसे मुद्दों पर घेर सकती है। इस मुकाबले में स्थानीय मुद्दों के लिए भी थोड़ी-बहुत जगह होगी, लेकिन उन्हें प्राथमिकता सूची में पहला स्थान मिलेगा, इसकी उम्मीद कम है। किसी खास मुद्दे के अभाव के बावजूद यह मुकाबला बेहद रोचक होने की उम्मीद है, क्योंकि चुनावी आग में तपे-तपाये योद्धाओं को युवा जोश का मुकाबला करना है। कोरोना काल में बड़ी राजनीतिक सभाएं नहीं होंगी। इसलिए निजी और वर्चुअल जनसंपर्क का जोर रहेगा। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि दुमका और बेरमो में इस बार असली चुनाव हो रहा है। युवा प्रत्याशी अपनी राजनीतिक विरासत को बरकरार रखने के लिए जद्दोजहद करेंगे, तो बुजुर्ग प्रत्याशी अपने पूर्व के अनुभव का एक बार फिर प्रदर्शन करेंगे। उप चुनाव का अंतिम परिणाम चाहे कुछ भी हो, एक बात तय है कि दुमका और बेरमो से चुन कर आनेवाले विधायक झारखंड के सियासी परिदृश्य को लंबे समय तक प्रभावित करते रहेंगे।