संघ प्रमुख ने कहा कि कोरोना काल में डॉक्टर, सफाईकर्मी, नर्स कर्तव्यबोध के साथ सेवा में जुट गए। लोग बिना किसी आह्ववान के अपनी चिंता करने के साथ दूसरों की भी चिंता करके उनकी सेवा में लग गए। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के बाद ये पहली बार देखने को मिला कि शासन-प्रशासन और जनता ने समाज के लिए मिलकर काम किया। महिलाएं भोजन पहुंचाने लगीं, मास्क बनाने लगी। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि कोरोना महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही परंतु अपने आर्थिक, सामरिक ताकत में मदांध होकर उसने भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास किया, वह सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है।
भागवत ने इसके साथ ही चीन की हाल की गतिविधियों को लेकर उन्हें घेरा और आगे कहा कि भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर, खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया। इसकी चीन को उम्मीद नहीं थी लेकिन इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा। मोहन भागवत ने कहा कि भारत ने चीन की विस्तारवादी नीति का करारा जवाब दिया है लेकिन भविष्य में सजग रहने और सेना को और अधिक सशक्त बनाने की जरूरत है।चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि अब चीन को भी इस बात का एहसास हो गया होगा कि हम शांत हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम दुर्बल हैं। उन्होंने कहा कि इसके बाद लापरवाह होने के बजाय ऐसे खतरों पर नजर बनाए रखनी होगी।
सेना के पराक्रम पर भागवत ने कहा कि हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है। हम सभी से मित्रता चाहते हैं, यह हमारा स्वभाव है परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले, झुका ले, यह हो नहीं सकता है। इतना तो अब समझ में आ जाना ही चाहिए।