झारखंड का गौरव और रांची के माइलस्टोन, यानी एचइसी परिसर स्थित जेएससीए स्टेडियम के निर्माण में गड़बड़ी का संदेह जताते हुए इडी ने जो नोटिस जारी किया है, उससे पूरा संगठन और उसकी कार्यप्रणाली ही एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गयी है। हालांकि यह सर्वविदित है कि जेएससीए, यानी झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन का विवादों से पुराना नाता रहा है, लेकिन अमिताभ चौधरी (अब दिवंगत) ने अपने प्रभाव और हनक के बल पर इन विवादों को या तो सामने नहीं आने दिया या फिर सुलझा लिया। यह आज की तारीख की स्याह हकीकत है कि जेएससीए की चर्चा क्रिकेट या दूसरे खेलों को लेकर कम और विवादों-गड़बड़ियों के कारण अधिक होने लगी है। यह झारखंड के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन यह भी सच है कि इस राज्य की यही विडंबना है कि यहां कोई भी सकारात्मक काम विवादरहित नहीं होता है। जेएससीए स्टेडियम का निर्माण इसका जीता-जागता प्रमाण है। जिस एक निर्माण ने झारखंड को दुनिया के क्रिकेट नक्शे पर स्थापित किया, उसमें गड़बड़ी और विवाद ने निश्चित रूप से क्रिकेट प्रेमियों के दिल को दुखा दिया है, लेकिन इसकी पूरी जिम्मेदारी जेएससीए के उन पदधारियों की है, जिन्होंने एक खेल संगठन को अपना धंधा चमकाने का जरिया बना लिया। जेएससीए स्टेडियम के निर्माण को लेकर इडी द्वारा जारी नोटिस की पृष्ठभूमि में इस संगठन की कार्यप्रणाली की परत-दर-परत जानकारी दे रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।
प्राकृतिक सौंदर्य के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रही रांची में हाल के वर्षों में एक और पर्यटन स्थल तेजी से लोकप्रिय हुआ। यह पर्यटन स्थल है एचइसी परिसर स्थित जेएससीए स्टेडियम, जिसके निर्माण के पीछे एक व्यक्ति, अमिताभ चौधरी (अब दिवंगत) का प्रयास है, लेकिन यह विडंबना है कि यह शानदार निर्माण आज एक नये विवाद में घिर गया है।
प्रवर्तन निदेशालय ने इस स्टेडियम के मालिक झारखंड राज्य क्रिकेट एसोसिएशन (जेएससीए) के अध्यक्ष को नोटिस जारी किया है और स्टेडियम के निर्माण से संबंधित टेंडर और निर्माण लागत का ब्योरा मांगा है। इडी ने यह जानकारी भी मांगी है कि जेएससीए को पिछले आठ वर्षों के दौरान भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) से कितनी राशि मिली है और उसे कैसे खर्च किया गया है। इडी ने जेएससीए अध्यक्ष को वर्ष 2009 से 2016 तक स्टेडियम में किये गये कार्यों और इसके टेंडर से संबंधित सूचनाएं देने के लिए कहा है।
क्या है विवाद
जेएससीए स्टेडियम की पूर्व निर्धारित लागत 80 करोड़ थी, जो निर्माण पूरा होने के बाद दो सौ करोड़ से अधिक हो गयी थी। इडी से टेंडर की प्रक्रिया में गड़बड़ी और तीन गुना लागत बढ़ने की शिकायत की गयी थी। शिकायत में बीसीसीआइ से कई वर्षों के दौरान जेएससीए को मिली राशि में भी गड़बड़ी करने की बात कही गयी थी। स्टेडियम निर्माण की लागत में वृद्धि और बीसीसीआइ से मिलनेवाली राशि में गड़बड़ी करने से संबंधित मामला कोर्ट में भी विचाराधीन है। उज्ज्वल दास नामक व्यक्ति ने जमशेदपुर सिविल कोर्ट में केस फाइल किया था। इसमें जेएससीए से निष्कासित शेषनाथ पाठक और सुनील सिंह को गवाह बनाया गया था। कोर्ट के आदेश पर बिष्टुपुर थाना में मामला दर्ज किया गया था। आइओ ने जांच के बाद जेएससीए को क्लीन चिट दी थी। शिकायतकर्ताओं ने जांच से असंतुष्टि जतायी थी। यह मामला अभी भी न्यायालय के विचाराधीन है।
आरोपों के घेरे में स्टेडियम निर्माण
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से मान्यता प्राप्त झारखंड राज्य क्रिकेट एसोसिएशन की कार्यप्रणाली कई बार विवादों में घिरती रही है। लेकिन अमिताभ चौधरी ने अपने प्रभाव और हनक का इस्तेमाल कर हमेशा जेएससीए को इससे बाहर निकाला। 2013 में जेएससीए स्टेडियम के अस्तित्व में आने के बाद से जेएससीए का विवाद लगातार गहराता गया। पहले जेएससीए स्टेडियम में आयोजित होनेवाले क्रिकेट मैचों से होनेवाली आय के बारे में सवाल उठाये गये, फिर धीरे-धीरे आरोपों का दायरा बढ़ता गया। अब तो यह आरोप भी लग गया है कि स्टेडियम के निर्माण का ठेका एक ऐसी कंपनी को दिया गया, जिसके पास स्टेडियम बनाने का कोई अनुभव नहीं था। राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन नामक यह कंपनी सड़क बनाने का ठेका लेती है, लेकिन झारखंड की नौकरशाही में अपनी पैठ और अमिताभ चौधरी के प्रभाव के कारण इसे जेएससीए स्टेडियम बनाने का ठेका मिल गया। इतना ही नहीं, आरोप तो यह भी है कि स्टेडियम निर्माण के खर्च से ही एक बड़े अधिकारी का आलीशान घर भी बन गया।
जेएससीए स्टेडियम का इतिहास
वास्तव में जेएससीए का विवादों से पुराना नाता रहा है। झारखंड अलग राज्य बनने से पहले जमशेदपुर क्रिकेट का मुख्यालय था। वहां का कीनन स्टेडियम ही एकमात्र ऐसा स्टेडियम था, जहां अंतरराष्ट्रीय मैच आयोजित होते थे। वहां टाटा वालों का वर्चस्व था। जेएससीए के चुनाव में साफ-साफ दो धड़े हो गये। यह बात अमिताभ चौधरी को नागवार गुजरी। तब अमिताभ चौधरी ने रांची में एक नया क्रिकेट स्टेडियम बनाने का संकल्प लिया और जेएससीए का यह निर्णय टाटा स्टील के साथ विवाद का कारण बना। अमिताभ चौधरी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एचइसी से लीज पर जमीन ली और स्टेडियम का डिजाइन बनाने का जिम्मा दिल्ली की कंपनी कोठारी एसोसिएट्स प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया। डिजाइन बनने के बाद स्टेडियम के निर्माण का ठेका राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया। उस समय बताया गया कि टेंडर में जिन दो और कंपनियों ने भाग लिया था, उससे रामकृपाल कंस्ट्रक्शन का रेट 5 प्रतिशत कम था। इसी की आड़ में यह काम रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को दिया गया। शुरूआत में इसकी लागत 80 करोड़ बतायी गयी, लेकिन असली खेल उसके बाद शुरू हुआ और स्टेडियम बनते-बनते यह रकम दो सौ करोड़ तक पहुंच गयी। 24 अक्टूबर 2008 को इस स्टेडियम का शिलान्यास तत्कालीन सीएम शिबू सोरेन के हाथों संपन्न हुआ। तीन साल बाद 18 जनवरी 2013 को इस तैयार स्टेडियम का विधिवत उद्घाटन भी हुआ। 19 जनवरी, 2013 को यहां एक इंटरनेशनल मैच का आयोजन भी हो गया। स्टेडियम में क्रिकेट के अलावा टेनिस, स्विमिंग पूल सहित अन्य सुविधाएं भी विकसित की गयीं। पर इसके बाद से एचइसी मैनेजमेंट और जेएससीए के बीच लीज एग्रीमेंट को लेकर विवाद शुरू हो गया था। मामला पीपी कोर्ट में गया। अंतत: इसी साल जून में इस विवाद को सुलझाया गया।
विवादों में जेएससीए की कार्यप्रणाली
जेएससीए की कार्यप्रणाली हमेशा से विवादों में रही है। चाहे इसके सदस्यों की सूची का सवाल हो या आय-व्यय के ब्योरे का मुद्दा, क्रिकेट के नाम पर बने इस संगठन में हमेशा विवाद बना रहा है। स्टेडियम निर्माण के बाद जब यहां अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों का आयोजन होने लगा, तो विवाद भी बढ़ने लगा। टिकट की बिक्री और पास बंटवारे को लेकर हर बार सवाल खड़े हुए। आरोप लगे कि स्टेडियम कांप्लेक्स में स्थित पांच सितारा सुविधा से युक्त रेस्टोरेंट, गेस्ट हाउस और लाउंज में कई अनैतिक काम होते हैं। वहां ऐसे लोगों का जमावड़ा होता है, जो अपना धंधा चमकाने के लिए जेएससीए का कवर लेते हैं।
उनके कहने पर टिकट और पास का बंटवारा किया जाता है और इससे बदले में ठेका-पट्टा से लेकर ट्रांसफर-पोस्टिंग तक का सौदा तय किया जाता है। इन आरोपों के कारण ही जेएससीए में कई बार गुटबाजी भी सतह पर आ चुकी है। यह गुटबाजी इस कारण भी पनप रही है कि उसमें जो पदधारी बने हैं, उनमें अधिकांश का क्रिकेट से कुछ लेना देना नहीं। वहां एक अदना सा सिपाही भी सबसे बड़ा ताकतवर बना बैठ जाता है। एक गली का नेता वहां आदेश देने लगता है। जबकि क्रिकेटप्रेमी सक्षम लोगों को अपमानित किया जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि राजनीतिक लाभ उठाने के लिए वहां के अधिकारी सौ-सौ पास लोगों तक भिजवा देते हैं और जो सचमुच में क्रिकेट प्रेमी है, उन्हें टिकट के लिए पुलिस की लाठी खानी पड़ती है।
अब, जबकि इडी ने इस संगठन के कामकाज की जांच में हाथ डाला है, उम्मीद बंधी है कि क्रिकेट के संवर्द्धन के लिए बने इस संगठन में पारदर्शिता आयेगा और इसे धंधेबाजों के चंगुल से बाहर निकाला जा सकेगा, ताकि झारखंड क्रिकेट का नाम खराब नहीं हो।