- – दृष्टि बाधित बच्चे अपने हुनर के माध्यम से उम्मीदों का फैला रहे उजाला
- – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल के मंत्र को साकार कर रहे
वाराणसी । आंखों की रोशनी न होने के बावजूद जीवन ज्योति अंध विद्यालय के छात्र दूसरों के जीवन में रोशनी पर्व (दीपावली) की खुशियां और उजाला के लिए दीये और मोमबत्तियां बना रहे हैं। ये छात्र अंध विद्यालय में पढ़ाई के दौरान सीखा मोमबत्ती बनाने का हुनर दीप पर्व पर आजमा रहे हैं। इनके हुनर से तराशें हुए दीपकों को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षक भी मदद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल के मंत्र को साकार कर आत्मनिर्भर बनने के लिए अंध विद्यालय के बच्चे पढ़ाई के साथ रात-दिन एक कर रहे हैं। दीपावली से एक-दो महीने पहले ही मोमबत्ती और दीया बनाने में ये बच्चे लगे हुए हैं। विद्यालय की छात्रा खुशबू (दिव्यांग नेत्रहीन) बताती हैं कि हमें मोमबत्ती और दीपक बनाना इस विद्यालय में सिखाया गया।
शिक्षक मुकेश कुमार ने बताया कि मोमबत्ती और दीये जलाने का हुनर पिछले दस वर्षों से सिखाया जा रहा है। दीपावली से लगभग तीन माह पूर्व हम बच्चों के साथ इस अभियान में जुट जाते हैं। बताया कि इन बच्चों को पहले एक-एक सामान दिया जाता है। बच्चों को स्पर्श करा कर पहचान कराया जाता है। इसके बाद बच्चे दीये और मोमबत्तियां बनाते हैं। इन बच्चों को शुरू में कठिनाई होती है लेकिन बाद में सीख जाते हैं। इन बच्चों द्वारा तैयार मोमबत्तियों को स्कूलों में ले जाते हैं।
अध्यापिका श्वेता बताती है कि हमारे बच्चे दृष्टि बाधित होते हुए भी मोमबत्ती और दीया बना रहे हैं। बच्चों का प्रयास रहता है कि महापर्व पर उनके हाथों से बनी मोमबत्तियां लोगों के घर में उजाला लाये। अध्यापिका ने लोगों से अपील की कि बच्चों की मोमबत्तियों को जरूर खरीदें। ये बच्चे अपने हुनर के माध्यम से उम्मीदों का उजाला फैला रहे हैं। भले ही इन बच्चों की आंखों में ज्योति न हो, पर दीपावली के मौके पर ये बच्चे दूसरों की जिन्दगी में रोशनी भरने के लिए परिश्रम कर रहे हैं। इन बच्चों में कुछ दृष्टिबाधित, कुछ मानसिक दिव्यांग, हियरिंग इम्पेयर्ड और शारीरिक रूप से अक्षम हैं। स्कूल में इन बच्चों की प्रतिभा को न सिर्फ निखारा जा रहा है बल्कि इनके सपनों को मूर्त रूप दिया जा रहा है। इनके स्पर्श से शुरू होकर सांचे में ढलने वाले इनके दीये और मोमबत्तियां पर्व की खुशियां बिखरने के लिए तैयार हैं। जो बच्चे रंगों की पहचान नहीं कर सकते उन बच्चों ने दीये में रंग भरे हैं।