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बिहार की राजनीति में अभी कई ट्विस्ट देखने को मिलने वाले हैं। नीतीश कुमार की पलटी तो महज एक ट्रेलर है, पूरी फिल्म अभी बाकी है। बिहार की जनता को अभी फ्रंट-बैक दोनों सीट बेल्ट बांध कर रखने की जरूरत है, क्योंकि इस वाहन के ड्राइवर बारी-बारी से अपना राजनीतिक हुनर और लालसा दिखायेंगे। शुरूआत तो नीतीश कुमार ने कर ही दी है। झपकी आने पर तेजस्वी भी ड्राइविंग का मजा ले रहे हैं। फाइनल डेस्टिनेशन पहुंचते-पहुंचते अभी कई पड़ाव आने बाकी हैं। भाजपा भी ड्राइविंग करने की कम इच्छुक नहीं है। अमित शाह बिहार का दौरा कर आये हैं। रोड मैप भी उन्होंने बना लिया है। लेकिन नीतीश-तेजस्वी की सरकार में एक ऐसा ब्रेकर आया है, जिसे जंप कर दिया गया है। अब देखना यही है कि इससे नुकसान कितना हुआ है। जगदानंद सिंह राजद के अति विश्वसनीय साथियों में से एक हैं, लेकिन हाल के दिनों में उनकी वफादारी पर लालू पुत्रों ने सवाल उठा दिये हैं। तेज प्रताप ने तो बार-बार उन्हें अपमानित किया है, बावजूद इसके जगदानंद सिंह ने लालू और राजद के प्रति वफादारी निभाते हुए उस अपमान को अपने कंठ में उतार लिया। कभी पलट कर जवाब नहीं दिया। फिर भी आज जगदा बाबू की वफादारी का इनाम उनके ही पुत्र सुधाकर को बलि का बकरा बनाये जाने के रूप में मिला। जगदा बाबू के पुत्र और बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने 2 अक्टूबर को अपना इस्तीफा तेजस्वी यादव को सौंप दिया था। उम्मीद यही थी कि उनकी मान-मनव्वल होगी, लेकिन तेजस्वी यादव ने सुधाकर सिंह के साथ-साथ जगदानंद सिंह को भी स्तब्ध कर दिया। उन्होंने सुधाकर सिंह का इस्तीफा नीतीश के पास पहुंचा दिया। नीतीश तो मानो इंतजार ही कर रहे थे। इस्तीफा पहुंचते ही उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया। तेजस्वी की इस हरकत से जगदानंद सिंह को करारा झटका लगा है। वह अंदर तक हिल चुके हैं और गुस्से में भी हैं। वह ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सबको पता है कि जब लालू यादव जेल में थे, तो वह जगदा बाबू ही थे, जिन्होंने लालू पुत्रों के अभिभावक की भूमिका निभायी थी। वह कटप्पा बन लालू पुत्रों की रक्षा कर रहे थे। यही नहीं, ताउम्र राष्ट्रीय जनता दल और लालू प्रसाद यादव के संकटमोचक रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी जीवन के अंतिम दिनों में लालू यादव से किनारा कर लिया था, क्योंकि लालू यादव पुत्र मोह में ऐसा फंसे कि उन्हें पार्टी के लिए क्या हितकारी है, दिखाई नहीं पड़ा। रघुवंश प्रसाद सिंह के नहीं रहने और अब जगदानंद के साथ लालू परिवार के बेरुखे रवैये से अगर सबसे ज्यादा किसी को फायदा होनेवाला है, या हुआ है, तो वह हैं नीतीश कुमार। नीतीश को यह अच्छी तरह से पता था कि अगर जगदानंद सिंह जैसे छत्रप तेजस्वी के साथ रहेंगे, तो वह कभी भी तेजस्वी को अपने माया जाल में नहीं फांस पायेंगे। और तेजस्वी यादव राजनीतिक रूप से उनसे कद्दावर नेता बने रहेंगे। इसीलिए नीतीश कुमार राजद को कभी माय समीकरण से अलग निकलने देना नहीं चाहते थे। इधर राजद लगातार माय समीकरण के बाहर भी अपना प्रभाव बढ़ाने लगा। यही बात नीतीश की आंखों में खटक रही थी। वह नहीं चाहते थे कि राजद ए-टू-जेड समीकरण के रास्ते पर चले। राजद सवर्णों के साथ-साथ अति पिछड़े और एससी-एसटी को भी लुभाने की कोशिश में जुटा रहा। इसकी शुरूआत 2020 में ही हो गयी थी, जब राजद जिलाध्यक्षों की सूची में भारी फेरबदल हुआ था। राजद में माय समीकरण के साथ-साथ सवर्णों, एससी-एसटी और अति पिछड़ों को इसमें जगह दी गयी। ये ऐसे वोट बैंक हैं, जिससे नीतीश की राजनीतिक दुकान चलती है। फिलहाल राजद कोटे से दो सवर्ण मंत्रियों की छुट्टी हो चुकी है। पहले कार्तिकेय सिंह, उसके बाद सुधाकर सिंह। अब जगदा बाबू के इस्तीफे की भी बात जोर पकड़ रही है। वहीं राजद की दिल्ली में हुई बैठक में अति पिछड़ों के नेता श्याम रजक का रौद्र रूप भी बहुत कुछ कह रहा है। जाहिर है, इस पूरे घटनाक्रम से राजद का सवर्ण और अति पिछड़ा वोट बैंक बिदक जायेगा। अगर तेजस्वी अभी भी नीतीश की चाल को भांप नहीं पायें, तो जाहिर है उनके विधायकों की संख्या भी 79 से 45 पर पहुंच जायेगी। नीतीश के मन में क्या चल रहा है। तेजस्वी यादव कहां गच्चा खानेवाले हैं। जगदानंद क्या कुछ कर सकते हैं, इस पर नजर डालने की कोशिश कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
इतिहास गवाह है, पुत्र मोह में धृतराष्टÑ का प्रताप खत्म हो गया। साम्राज्य ढह गया। कौरवों का विनाश हो गया। पुत्र मोह के कारण बिहार में लालू जैसा कद्दावर नेता अब अपने को असहाय महसूस कर रहा है। दरअसल बिहार की राजनीति पिछले 30 साल से लालू यादव और नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूम रही है। लालू यादव को द लालू प्रसाद यादव बनाने में कई लोगों ने अहम भूमिका निभायी। इस दौरान नीतीश कुमार जैसे कई लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया, तो कई नेता चट्टान की तरह उनके साथ डटे रहे। वे हर हालात में लालू यादव की परछाईं बने रहे। उनमें कुछ नाम बेहद खास हैं, रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह। 1990 में जगदानंद सिंह जैसा सारथी अगर लालू यादव को नहीं मिलता, तो लालू के लिए मुख्यमंत्री पद दूर की कौड़ी होती। वहीं रघुवंश प्रसाद सिंह से भी लालू प्रसाद का रिश्ता जगदानंद सिंह जैसा ही था। काले बाल से शुरू हुई दोस्ती, बाल के सफेद होने तक बरकरार रही। बिहार में जब भी लालू यादव की सरकार आयी तो उसमें भी रघुवंश प्रसाद सिंह की भूमिका अहम रही। कहा जाता है कि जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह लालू यादव के साथ तब जुड़े, जब आरजेडी की स्थापना भी नहीं हुई थी।
जगदानंद सिंह की लालू के प्रति वफादारी, बदले में रिटर्न गिफ्ट मिला भारी
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन (1974) में जगदानंद सिंह ने सक्रिय भूमिका निभायी थी। उसी आंदोलन के दौरान लालू प्रसाद यादव से उनकी मुलाकात हुई। लालू प्रसाद से जगदानंद सिंह की दोस्ती आरजेडी की स्थापना (1997) से पहले से है। बाद में जैसे-जैसे लालू प्रसाद यादव का सियासी कद बढ़ा, वैसे-वैसे जगदा बाबू भी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गये। जब जगदानंद सिंह को पहली बार आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, तो उन्होंने कहा था कि वह चाहते तो 10 साल पहले ही पार्टी के अध्यक्ष बन सकते थे, मगर उनको पद का लोभ-लालच नहीं है। जगदानंद सिंह की लालू प्रसाद यादव के प्रति वफादारी अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उनके पुत्र सुधाकर सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, तो जगदानंद सिंह ने अपने बेटे के खिलाफ राजद उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया और बेटे को हार का मुंह देखना पड़ा। बात 2010 की है। जगदानंद सिंह के पुत्र जब राजद कोटे से विधानसभा चुनाव में टिकट मांग रहे थे, तब जगदा बाबू अपने बेटे को टिकट नहीं दिला पाये थे। उसके बाद पुत्र सुधाकर ने बगावत कर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। पिता जगदा बाबू ने अपने बेटे के खिलाफ चुनाव प्रचार किया। उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी। यहां लालू यादव के प्रति जगदा बाबू की वफादारी को समझा जा सकता है। कोई दूसरा होता तो ऐसा नहीं करता। कोई भी पिता अपने पुत्र के खिलाफ नहीं जाता। खुद लालू यादव भी जगदानंद सिंह के लिए ऐसा नहीं करते। जगदा बाबू ने राजद प्रत्याशी अंबिका यादव से अपने बेटे सुधाकर सिंह को 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में हरवा दिया। जगदानंद बाबू का एक फलसफा है कि बड़े लक्ष्य के लिए त्याग करना पड़ता है। लेकिन यह त्याग वह सिर्फ अकेले करते रहे। समय बदला, सुधाकर सिंह राजद में आ गये। लालू को लगा कि पार्टी के लिए जगदा बाबू अगर अपने बेटे के खिलाफ रहेंगे, तो पार्टी की तसवीर गलत जायेगी, सो सुधाकर सिंह को राजद ज्वाइन करवा दिया। अभी-अभी नीतीश-तेजस्वी मंत्रिमंडल में उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया। लेकिन जिस विभाग के वह मंत्री थे, उसके अधिकारी उन पर भारी पड़ गये। उन अधिकारियों पर नीतीश का वरदहस्त था। सुधाकर सिंह का काम करना मुश्किल हो गया। सुधाकर सिंह हमेशा से नीतीश के खिलाफ बोलते आये हैं। वह उन्हें पल्टूबाज नेता कहते रहे। मंत्री बनने के बाद सुधाकर सिंह ने अपने मंत्रालय के भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जब मुहिम चलायी, तब नीतीश के अधिकारी एक्टिव हो गये। सुधाकर सिंह ने बयान दिया था कि उनके विभाग के सभी अधिकारी चोर हैं और इस विभाग के प्रमुख होने के नाते वह चोरों के सरदार हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि हमारे ऊपर भी कई और सरदार मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि ये वही पुरानी सरकार है। इसके चाल चलन पुराने हैं। हम लोग तो कहीं-कहीं हैं, लेकिन जनता को लगातार सरकार को आगाह करना होगा। जाहिर है, पुरानी सरकार के पुराने अधिकारी किसके हैं। बयान के बाद नीतीश कुमार अंदर ही अंदर आगबबूला हो गये। परिस्थितियां ऐसी बनीं कि सुधाकर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। सुधाकर सिंह ने अपना इस्तीफा नीतीश को न देते हुए तेजस्वी को सौंपा, शायद यह सोच कर कि तेजस्वी उनका इस्तीफा कबूल नहीं करेंगे। लेकिन हुआ इसके उलट। तेजस्वी ने इस्तीफा पत्र को नीतीश कुमार को भेज दिया। नीतीश कुमार तो इसी ताक में थे। इस्तीफा मिलते ही उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। यही वह झटका था, जिसने जगदानंद सिंह को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि जिन लालू पुत्रों के बुरे समय में वह उनके अभिभावक बने रहे, सबसे मजबूत छत्रप की भूमिका निभायी, आज उन्हीं के पुत्र जब नीतीश की चाल में फंस गये, तो लालू परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया। ऐसे रिटर्न गिफ्ट की उम्मीद शायद जगदा बाबू ने सपने में भी नहीं की थी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दरअसल यह बिसात तेजस्वी यादव के लिए बिछाई गयी है, जिसे वह अभी नहीं समझ पा रहे हैं। आज राजनीतिक गलियारे में एक ही चर्चा है। क्या पुत्र सुधाकर सिंह के मंत्री पद से त्यागपत्र से आहत राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पद छोड़ सकते हैं? अगर जगदानंद सिंह ने ऐसा किया, तो तेजस्वी यादव बुरे फंस जायेंगे। सुधाकर सिंह पहले भी भाजपा में रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जब अमित शाह का दौरा बिहार में हुआ था, तब सुधाकर सिंह के करीबियों ने उनसे मुलाकात भी की थी। इस मुलाकात से यह मैसेज भी राजनीतिक गलियारे में पहुंच चुका है कि बिहार में कुछ बड़ा होनेवाला है। अमित शाह बिना वजह कहीं भी आते-जाते नहीं। अगर राजद जगदा बाबू को नहीं मना पाया, तो उसका टूटना तय है। नीतीश कुमार भी तो मन ही मन यह चाहते होंगे। राजद कमजोर होगा, तभी उनकी पार्टी को धार मिलेगी। लेकिन फिलहाल उनकी पार्टी की धार में आग लगाने का काम प्रशांत किशोर कर रहे हैं। कहावत है न कि घर का भेदी लंका ढाये। यहां भी नीतीश के साथ यही हिसाब किताब होनेवाला है।
सीबीआइ के निशाने पर हैं तेजस्वी
बिहार में अभी और राजनीतिक भूचाल आना बाकी है। तेजस्वी पर सीबीआइ की तलवार पहले से ही लटकी हुई है। हाल के दिनों में तेजस्वी जिस प्रकार से केंद्र और सीबीआइ पर हमलावर हैं, उसका परिणाम उन्हें जल्द देखने को मिल सकता है। सितंबर महीने में सीबीआइ का स्टेटमेंट है कि तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीबीआइ अफसरों को धमकाया है, इसलिए उनकी जमानत निरस्त की जाये। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने दावा किया कि राजद नेता का आचरण एक महत्वपूर्ण जमानत शर्त का उल्लंघन है। जांच एजेंसी ने कहा कि आरोपी द्वारा दिये गये बयान सीबीआइ, अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए एक खुली धमकी है। जांच एजेंसी ने दावा किया कि आरोपी ने खुले तौर पर सीबीआइ अधिकारियों को जांच करने के खिलाफ चेतावनी दी है, साथ ही इस प्रक्रिया में छल और धमकियों का सहारा लिया है। याचिका में कहा गया है कि तेजस्वी यादव बेहद प्रभावशाली और ताकतवर हैं। वह एक पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के साथ-साथ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे हैं। वह खुद बिहार के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अभी फिर से हैं। सीबीआइ ने कहा कि तेजस्वी ने अपने बयान में कहा था कि क्या सीबीआइ वालों के मां-बेटे नहीं हैं,उनके परिवार नहीं हैं?क्या वे हमेशा सीबीआइ अधिकारी रहेंगे? क्या वे सेवानिवृत्त नहीं होंगे? क्या सत्ता में हमेशा एक ही सरकार रहेगी? बता दें, आइआरसीटीसी घोटाला लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान का है। सीबीआइ मामले की जांच कर रही है। घोटाले में लालू यादव के परिवार के कई सदस्य आरोपी हैं। उनमें तेजस्वी यादव भी शामिल हैं। यदि विशेष कोर्ट ने जमानत निरस्त की, तो उनकी बिहार के उपमुख्यमंत्री पद की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है। समझा जा सकता है अगर एक बार तेजस्वी की कुर्सी गयी और वह कानूनी पचड़ों में फंसे तो उनकी पार्टी कब तक इंटैक्ट रह पायेगी यह कहना मुश्किल है। और तो और उन्होंने जगदानंद सिंह को भी नाराज कर दिया है। लालू के पास कोई मुंह नहीं है कि वह जगदानंद सिंह को मना पायें। तो कहा जा सकता है कि पुत्र मोह में लालू प्रसाद के समक्ष एक विकट स्थिति आनेवाली है। राजनीतिक तूफान के थपेड़े तेजस्वी यादव पर भी पड़ेंगे और नीतीश तो यही चाह रहे हैं।