रांची । पलामू जिले के सतबरवा थाना क्षेत्र स्थित बकोरिया में 8 जून 2015 को बहुचर्चित कथित पुलिस-नक्सली के बीच मुठभेड़ हुई थी। सीबीआइ ने इस चर्चित बकोरिया मुठभेड़ केस में क्लोजर रिपोर्ट दे दी थी। बीते 27 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने सीबीआइ द्वारा दाखिल की गयी क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किया था। सीबीआइ ने बकोरिया मुठभेड़ कांड को फॉरेंसिक रिपोर्ट में आये तथ्यों के आधार पर सही माना। उसके बाद मुठभेड़ में मारे गये उदय यादव के पिता जवाहर यादव ने बीते 30 अगस्त को सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ प्रोटेस्ट पिटीशन दाखिल की थी।

इन तथ्यों के आधार पर सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल की गयी प्रोटेस्ट पिटीशन

जब बकोरिया मुठभेड़ कांड के वादी पुलिस निरीक्षक मोहम्मद रुस्तम और तथाकथित मुठभेड़ में शामिल दिखाये गये झारखंड पुलिस के कर्मियों द्वारा मुठभेड़ में शामिल नहीं होने की बात सीबीआइ को बतायी गयी, तब भी किस परिस्थिति में इस मुठभेड़ कांड को सही माना गया। जब मुठभेड़ में मारे गये 10 व्यक्तियों, जिनमें कुछ कम उम्र के भी बच्चे थे, जिनके खिलाफ जांच में सीबीआइ को उनके नक्सली होने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ, तो किस परिस्थिति में उन्हें नक्सली मान लिया गया।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जब कई मृतकों के शरीर पर नजदीक से सटा कर गोली मारे जाने तथा कई मृतकों के शरीर पर मृत्यु के पूर्व पिटाई किये जाने का प्रमाण था, तो किस परिस्थिति में सीबीआइ द्वारा उपरोक्त महत्वपूर्ण साक्ष्य को नजरअंदाज किया गया।
जब सीबीआई द्वारा अपने अंतिम प्रपत्र में इस कांड की जांच के दौरान स्वयं कई प्रकार की त्रुटियों को उजागर किया गया, तो किस परिस्थिति में सीबीआइ द्वारा दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गयी।
किस परिस्थिति में सीबीआइ द्वारा अनुसंधान के दौरान घटना में शामिल सीआरपीएफ के पदाधिकारियों और कर्मियों को घटनास्थल पर लाकर घटनाक्रम को रीक्रिएट नहीं किया गया।

जब यह जगजाहिर है कि यह घटना जेजेएमपी के उग्रवादियों द्वारा कतिपय सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के पदाधिकारियों की मिलीभगत से की गयी, तो किस परिस्थिति में किसी भी जेजेएमपी उग्रवादी को इस कांड के क्रम में ना तो गिरफ्तार किया गया, ना ही उनसे पूछताछ भी की गयी।

इतने गंभीर कांड में किस परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं की गयी और ना ही किसी व्यक्ति की किसी प्रकार की फॉरेंसिक जांच भी करायी गयी। जब झारखंड पुलिस के कई पदाधिकारियों द्वारा खुद की फॉरेंसिक जांच कराये जाने की सहमति दी गयी थी, तो किस परिस्थिति में उनकी फॉरेंसिक जांच नहीं करायी गयी।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version