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    Home»विशेष»सत्ता पक्ष के लिए मंईयां सम्मान योजना हिट, विपक्ष पंक्चर करने में लगा
    विशेष

    सत्ता पक्ष के लिए मंईयां सम्मान योजना हिट, विपक्ष पंक्चर करने में लगा

    shivam kumarBy shivam kumarOctober 18, 2024No Comments11 Mins Read
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    विशेष
    सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि समय से यह राशि मां-बहनों के खाते में जाये
    अभी तक तीसरी किस्त की राशि बहुत सारी मां-बहनों के खाते में नहीं पहुंच पायी है

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और इसके साथ ही राजनीतिक दलों की चुनाव मशीनरी अपने-अपने काम में व्यस्त हो गयी है। इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक होनेवाला है, क्योंकि राज्य में पहली बार भाजपा विपक्ष में है। झामुमो-कांग्रेस-राजद का गठबंधन सत्ता में अपनी वापसी के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है, तो भाजपा अपने सहयोगियों के साथ मिल कर इस ध्वस्त हो चुके गढ़ को दोबारा हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। दोनों पक्षों के पास मुद्दों की कमी नहीं है और न ही कोई पक्ष इन मुद्दों को जनता के बीच उठाने में पीछे रह रहा है। इस बेहद रोमांचक परिदृश्य में यह जानना जरूरी है कि वे कौन से मुद्दे हैं, जिनसे एक-दूसरे को परेशान किया जा सकता है। इस मामले में भी दोनों पक्ष तू डाल-डाल, मैं पात-पात की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। अब बहुचर्चित मंईयां सम्मान योजना को ही लें। सत्ता पक्ष ने इसे लागू कर महिलाओं के खाते में एक-एक हजार रुपये भेजना शुरू किया, तो भाजपा ने गोगो दीदी योजना के तहत महिलाओं को 21 सौ रुपये प्रति माह देने की घोषणा कर दी। इसके जवाब में सरकार ने मंईयां सम्मान योजना की राशि को बढ़ा कर ढाई हजार रुपये कर दिया। लेकिन यह राशि दिसंबर माह से लागू करने की बात कही गयी। चुनाव का परिणाम नवंबर 23 को ही आ जायेगा। फिर किसकी सरकार बनेगी यह देखने वाली बात होगी। इसी तरह कई ऐसी योजनाएं और घोषणाएं हैं, जिनकी याद दिला कर दोनों ही पक्ष एक-दूसरे को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। मंईयां सम्मान योजना को जहां सत्ता पक्ष अपना मास्टर स्ट्रोक मान रहा है और कह रहा है कि हेमंत सरकार से पहले किसी सरकार ने मां-बहनों का इतना सम्मान नहीं किया। वह बार-बार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि दिसंबर महीने से मंईयां के खाते में 2500 रुपये की राशि जाने लगेगी। वहीं विपक्ष इस योजना की कमियों को रेखांकित करने लगा है। विपक्ष का कहना है कि हेमंत सोरेन ने मंईयां सम्मान योजना के तहत 2500 रुपये देने का लालीपॉप दिखाया है। उन्हें सचमुच में मंईयां का इतना ही सम्मान करना था, चार साल पहले ही वह इसे लागू कर देते। यही नहीं, अगर सचमुच में उन्हें मां-बहनों को 2500 रुपये देना था, तो वह तत्काल प्रभाव से लागू कर देते, उन्हें किसने रोका था। सरकार उनकी है, निर्णय उन्हें ही लेना था। हेमंत सोरेन अच्छी तरह जानते थे कि कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है, फिर भी उन्होंने मंईयां सम्मान योजना की राशि 1000 रुपये से बढ़ा कर 2500 रुपये करने की घोषणा दिसंबर से क्यों की। विपक्ष का कहना है कि हेमंत ने दरअसल भाजपा की गोगो दीदी योजना को पीछे छोड़ने के लिए लॉलीपाप पकड़ाया। इसमें कोई दो राय नहीं कि मंईयां सम्मान योजना की चर्चा चहुंओर है, लेकिन कहते हैं न कि आप दस काम अच्छे कीजिए और उस क्रम में दो काम में कुछ चूक हो जायें, तो दस काम पीछे छूट जाते हैं और चर्चा दो गलत कामों की ज्यादा होने लगती है। मंईयां सम्मान योजना को लेकर भी विपक्ष विरोध में माहौल बनाने लगा है। अक्तूबर महीने से मंईयां सम्मान योजना की तीसरी किस्त 8 अक्तूबर से शुरू हुई है। चार से पांच दिन के अंदर सभी के खाते में पैसे चले जाने चाहिए थे, लेकिन पता नहीं क्यों अब तक बहुत सारे लाभुकों के खाते में मंईयां सम्मान योजना की राशि नहीं पहुंच पायी है। ऐसा शहर में भी हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में भी। इसमें क्या तकनीकी खामी आयी है, यह तो नहीं पता क्योंकि किसी ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन कुछ के खाते में पैसे नहीं जाने के कारण अब इसके खिलाफ विपक्ष ने माहौल बनाना शुरू कर दिया है। मंईयां सम्मान योजना ही नहीं, वृद्धा पेंशन, विकलांग पेंशन और विधवा पेंशन की राशि भी कुछ महीनों से खाते में नहीं जा रही है। इसे लेकर भी विपक्ष सत्ता पक्ष पर हमलावर हो गया है। इन अधूरी घोषणाओं और मुद्दों पर भाजपा द्वारा सत्ता पक्ष को घेरने की पूरी कोशिश की जा रही है, लेकिन यह कोशिश कितनी सफल होगी, यह तो समय ही बतायेगा। बहरहाल, कौन से हैं वे मुद्दे, जिन पर सत्ता पक्ष को घेरने की तैयारी की जा रही है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा और 23 नवंबर को परिणाम आयेंगे। वर्ष 2000 में झारखंड बनने के बाद पहली बार राज्य में उस झामुमो के नेतृत्व में पांच साल तक सरकार चली, जिसे अलग राज्य के लिए आंदोलन करने वाली पार्टी के रूप में जाना जाता है। इस बार यह पार्टी एक बार फिर कांग्रेस, राजद और वाम दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में है, जबकि उसे रोकने के लिए भाजपा के नेतृत्व में आजसू, जदयू और लोजपा (आर) का गठबंधन सामने है। दोनों गठबंधनों की चुनाव मशीनरी अपने-अपने काम में व्यस्त हैं, तो नेता उन मुद्दों की तलाश कर रहे हैं, जिन्हें उठा कर एक-दूसरे को घेरा जा सके।

    वैसे तो झारखंड में चुनावी मुद्दों की कोई कमी नहीं है। इस चुनाव में सबसे प्रमुख मुद्दा यही है कि राज्य में पांच साल तक चली पहली गैर-भाजपा सरकार ने क्या काम किया और क्या नहीं किया। सत्तारूढ़ गठबंधन अपनी सरकार के कामकाज को मुद्दा बना रहा है और केंद्र सरकार पर बकाया 1.36 लाख करोड़ मांगने के साथ भावनात्मक मुद्दों पर जनता को आकर्षित करने की कोशिश में लगा हुआ है। दूसरी तरफ विपक्षी दल इस सरकार की नाकामियों और अधूरी घोषणाओं-चुनावी वादों को बढ़-चढ़ कर उठा रहे हैं। इन दावों-प्रतिदावों के शोर में यह जानना जरूरी है कि सत्ता पक्ष का पिछले पांच साल के दौरान कामकाज कैसा रहा। किन मुद्दों पर उसने इमानदारी से काम किया और उसकी कौन सी घोषणाएं अधूरी रह गयीं।

    2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-आजसू सरकार की पराजय के बाद झारखंड के इतिहास में दूसरी बार बनी कोई सरकार निष्कंटक तरीके से अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा कर सकी है। उस चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद ने भाजपा-आजसू सरकार की नाकामियों, वादाखिलाफी और दूसरे मुद्दों को बेहद मजबूती से उठाया था। इसका परिणाम भी उसे मिला और यह गठबंधन सत्ता में आ गया। लेकिन अब, जब बारी एक बार फिर जनता की है, तो सत्तारूढ़ गठबंधन के सामने अपना काम गिनाने की चुनौती है, जबकि विपक्ष उन मुद्दों को हवा दे रहा है, जिन पर कोई काम नहीं हुआ।

    बिचौलियों-दलालों की हो रही चर्चा
    इस बात में कोई संदेह नहीं है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने पांच साल तक तमाम अवरोधों के बावजूद कई ऐसे काम किये, जिन पर अंगुली नहीं उठायी जा सकती। इस सरकार ने पहली बार पूरे सिस्टम को आम लोगों के दरवाजे पर लाकर खड़ा तो कर दिया, लेकिन आम लोग इससे कितने लाभान्वित हुए, यह देखना अभी बाकी है। चाहे सर्वजन पेंशन योजना हो या अबुआ आवास योजना, गुरुजी क्रेडिट कार्ड योजना हो या फिर सुओ-मोटो म्यूटेशन, हर जगह बिचौलियों-दलालों की चर्चा होती है। इन दलालों के कारण कई बार इस सरकार के अच्छे कामों का रंग भी फीका पड़ जाता है। सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन यह भी तल्ख सच्चाई है कि पिछली सरकार की तरह इस सरकार के कार्यकाल में भी लोगों के लिए जाति, आवासीय और आय प्रमाण पत्र बनवाना उतना ही मुश्किल है, जितना पूर्व की सरकार में था।

    बात योजनाओं के क्रियान्वयन की
    ये तो हुई व्यवस्थागत कमियों की बात। जहां तक योजनाओं की बात है, तो इस सरकार की सबसे प्रमुख योजना है मंईयां सम्मान योजना। इस योजना के तहत 18 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये दिये जाते हैं। इस महीने इसकी तीसरी किस्त खाते में डाली गयी है। लेकिन अब यह बात सामने आ रही है कि काफी संख्या में महिलाओं के खाते में तीसरी किस्त की राशि नहीं पहुंची है। लोग सवाल कर रहे हैं कि डीबीटी के माध्यम से रकम मिलती है, तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कुछ लाभुक को रकम मिल जाये और कुछ को नहीं।

    राशि बढ़ाने की घोषणा का नफा-नुकसान
    चुनाव की घोषणा से ठीक एक दिन पहले हेमंत सोरेन सरकार ने मंईयां सम्मान योजना की राशि को बढ़ा कर ढाई हजार रुपये करने की घोषणा कर दी। कैबिनेट ने भी इस घोषणा को हरी झंडी दिखा दी। इस घोषणा की भी चर्चा सर्वत्र हो रही है। घोषणा के अनुसार बढ़ी रकम दिसंबर से दी जानी है, लेकिन कुछ लोग अब सवाल करने लगे हैं कि यदि इस सरकार के पास संसाधन था, तो वह पहले ही इतनी राशि क्यों नहीं दे सकी और अब दिसंबर से क्यों। विपक्षी दल भी यह सवाल उठा रहे हैं।

    भावनात्मक मुद्दों का जोर
    पिछले पांच साल के दौरान हेमंत सोरेन सरकार ने स्वतंत्र आदिवासी अस्तित्व और संस्कृति को स्थापित करने के लिए ठोस कोशिश की है। आदिवासी धर्म और सरना कोड को मान्यता देने के प्रस्ताव को विधानसभा ने पारित करके केंद्र को भेजा है। अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस को धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू की। स्थानीयता और नियोजन नीति बनायी तो, लेकिन उन्हें लागू करने में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। हेमंत सोरेन सरकार ने क्षेत्र के रोजगार, संसाधनों और प्रशासन पर गैर-आदिवासियों और बाहरियों के कब्जे के खिलाफ भाषण तो खूब दिये, लेकिन कभी निर्णायक कदम नहीं उठा सकी। सरकार ने नियुक्तियां तो कीं, लेकिन इनमें से बाहरियों को भी नौकरियां मिल गयीं। हेमंत सोरेन सरकार ने पूर्व की स्थानीय नीति को बदल कर आदिवासी-मूलवासियों के लंबे समय की मांग के अनुरूप 1932 खतियान आधारित स्थानीयता नीति को विधानसभा में पारित किया। लेकिन इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में जोड़ने की मांग के साथ केंद्र के पाले में डाल दिया।

    जल-जंगल-जमीन का मुद्दा
    झारखंड में जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए आदिवासियों के संघर्ष का इतिहास लंबा है। यह उम्मीद थी कि झामुमो गठबंधन सरकार इस संघर्ष का साथ देगी। रघुवर दास सरकार ने 2016 में राज्य की 22 लाख एकड़ सामुदायिक जमीन (जिसे ग्राम सभाएं पारंपरिक रूप से अपना मानती हैं) को बिना ग्राम सभा को सूचित किये लैंड बैंक में डाल दिया था। इसका उद्देश्य था कि कोई भी कंपनी अधिग्रहण के लिए कंप्यूटर पर ही जमीन चिह्नित कर सकती है, जिसे राज्य सरकार रातों-रात उन्हें दे सके। इसके अलावा रघुवर सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में संशोधन किया था, जिसके तहत निजी और सरकारी परियोजनाओं के लिए बिना ग्राम सभा की सहमति और सामाजिक प्रभाव आकलन के बहुफसलीय भूमि समेत निजी और सामुदायिक भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है। गठबंधन दलों ने विपक्ष में रहते इन नीतियों और कानूनों का जम कर विरोध किया था और सरकार बनते ही इन्हें रद्द करने का वादा भी किया था। लेकिन यह वादा पूरा नहीं हो पाया। इस दौरान विभिन्न कोयला खदानों के लिए भी जबरन भूमि अधिग्रहण हुआ। हालांकि यह केंद्र का मामला है, राज्य की ओर से इस पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं दिखा। पहले की तरह ही पत्थर और बालू का अवैध खनन भी चलता रहा। पिछले पांच साल भी छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटीए) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटीए), जिसके तहत आदिवासी जमीन के गैर-आदिवासियों को हस्तांतरण पर पूर्ण रोक है, का व्यापक उल्लंघन जारी रहा।

    कई घोषणाएं जो अधूरी रह गयीं
    कई बार एलान करने के बावजूद अभी तक मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी में बच्चों को रोज अंडे मिलना शुरू नहीं हुआ। पारा शिक्षकों का असंतोष फिर सामने आने लगा है। आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाएं भी नाराज हैं। कई तरह की पेंशन स्कीम्स हैं, जिसकी रकम कई महीनों से लोगों को नहीं मिली है। हेमंत सोरेन ने पूरी इमानदारी से योजनाओं को धरातल पर उतारने की पूरी कोशिश की, लेकिन झारखंड का सिस्टम है कि वह सुधरता ही नहीं। इस सिस्टम की लापरवाही के कारण ही बहुत सारी योजनाओं का लाभ लाभुकों को नहीं मिल पा रहा है। अगर कुछ पेंशन स्कीम की राशि खाते में नहीं गयी है, मंईयां सम्मान योजना की तीसरी किस्त की राशि अभी तक बहुत सारी मां-बहनों के खाते में ट्रांसफर नहीं हुई है, तो इसमें हेमंत सोरेन का दोष नहीं, झारखंड का सिस्टम अपने हिसाब से चलता है, जिसका खामियाजा किसी और को भुगतना पड़ता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार जल्द से जल्द तीसरी किस्त की राशि सभी मंईयां के खाते में ट्रांसफर करवायेगी।

     

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