ढाका। भाषा आंदोलन कार्यकर्ता, कवि, निबंधकार और प्रतिष्ठित रवींद्र शोधकर्ता अहमद रफीक का 94 साल की उम्र में गुरुवार देर रात निधन हो गया। उन्होंने ढाका के बर्डेम जनरल अस्पताल के आईसीयू में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली।वृद्धावस्था जनित बीमारियों से जूझ रहे अहमद रफीक को बुधवार दोपहर आईसीयू में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था।

प्रमुख मीडिया समूह प्रोथोम आलो के मुताबिक 12 सितंबर, 1929 को शाहबाजपुर, ब्राह्मणबरिया में पैदा हुए रफीक ने 1952 के भाषा आंदोलन में भाग लिया और विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्रों के बीच इस आंदोलन के प्रमुख आंदोलनकारी बनकर उभरे। वह ढाका मेडिकल कॉलेज के एकमात्र छात्र थे जिनके खिलाफ 1954 में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था।

रफीक ने अपना लंबा जीवन लेखन, शोध और सांस्कृतिक गतिविधियों को समर्पित कर दिया था। 1958 में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक शिल्पो सोंगस्कृति जीबोन (कला, संस्कृति और जीवन) प्रकाशित की। एकुशे पदक और बांग्ला अकादमी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित रफीक ने सौ से अधिक पुस्तकों का लेखन और संपादन किया। रवींद्र अध्ययन में उनके योगदान को व्यापक रूप से मान्यता मिली और कोलकाता स्थित टैगोर शोध संस्थान ने उन्हें रवींद्र-तथोचारजो की उपाधि प्रदान की।

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