राहुल पांडेय : आत्मीय और प्रेम संबंधों के भीषण टकराव से जी भरकर जूझ लेने के बाद मैं फैजाबाद रेलवे स्टेशन पर खड़ा था। पीठ पर पिट्ठू बैग और हाथ में नये चावल से भरा एक झोला। दिल्ली वापस आना था। प्लैटफॉर्म पर पहुंचा। मेरा डिब्बा सबसे पीछे लगा था। चावल वाले झोले से मेरी उंगलियां कटने को हो रही थीं, जिससे चिढ़कर मैं रेलवे वालों पर मन ही मन भुनभुना रहा था। तकरीबन बारह डिब्बे पार करने के बाद आखिरकार मैं अपने डिब्बे तक पहुंचा। मैं बाइस नंबर पर था। वहां पहुंचकर देखता हूं कि मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार पहले से ही बैठे थे। वह खासे पुराने भाजपाई। मैंने पैलगी की, सामान रखा और पानी लेने के लिए बाहर निकल गया।
बाहर निकलते ही मैंने सबसे पहले मामा को फोन किया। मामा का हंसते-हंसते बुरा हाल। बोले- अब रास्ते भर पक्ष की सुनना। खैर, पानी लेकर मैं वापस आया। रास्ते के लिए मेरे पास कुल मिलाकर चार चीजें थीं। झोले में बर्नियर की भारत यात्रा, कल की बची थोड़ी सी वोदका, खाना और फोन में रखी गोविंदा और जैकी चेन की तीन चार फिल्में। एक रात की बात के लिए इससे ज्यादा किसी को क्या चाहिए। इन सबको यूज कर लेने के लिए थोड़ा सा अकेला वक्त। अपने रिश्तेदार की मौजूदगी में मैं ये तो समझ गया था कि अब ये अकेला वक्त मुझे नहीं मिलने वाला। खैर, अपनी आदत के मुताबिक उन्होंने बातचीत शुरू की।
नोटबंदी के बाद बने माहौल में वह जिस तरह से जनाक्रोश को जायज ठहराते हुए सरकार का बचाव कर रहे थे, वो उनकी पर्सनालिटी के बिल्कुल मुख्तलिफ था। मेरे सामने दिल्ली के ही एक कॉलेज के टीचर अपनी बूढ़ी मां के साथ थे। दोनों के बीच सोशियो पॉलिटिकल डिसकसन हो रहा था और जाने अनजाने दोनों मुझे ही रिपोर्ट करने की कोशिश कर रहे थे, जैसे मैं कोई बहस का होस्ट होऊं। इससे बचने के लिए मैंने दूसरा रास्ता निकाला और अपने रिश्तेदार को बर्नियर की किताब में चार पांच जगह औरंगजेब लिखा दिखा दिया। वो कुछ देर के लिए किताब के पन्ने पलटने लगे और मैंने मोबाइल में गोविंदा रानी मुखर्जी की लव केमिस्ट्री देखनी शुरू कर दी।
गोविंदा अपने दोस्तों को समझा रहा था कि क्या हुआ जो वो गरीब है, छोटा आर्टिस्ट है, क्या हुआ जो वो अपने दोस्तों के कपड़े चुपके-चुपके पहनकर उस लड़की के पास जाता है, जिससे वह प्रेम करता है, आखिरकार वो प्रेम करता है। प्रेम करना उसका सपना है। क्या गरीब कभी प्रेम नहीं कर सकता। बड़ा इमोशनल सीन चल रहा था और मेरा एक अंगूठा मेरी मुट्ठी में दब चुका था कि मेरे बगल किसी ने गुदगुदी की। मैं चिंहुका और पलटकर देखा। दो तीन साल का एक छोटा सा बच्चा पीले रंग के बड़े बड़े रोएं वाला स्वेटर पहने मेरी बगल में घुसने की कोशिश कर रहा था।