प्रतापुरा गांव (भीलवाड़ा जिला, राजस्थान) 1990 के दशक के शुरू में तीन साल तक लगातार सूखा पड़ा तो अंत में 18 वर्षीय देव सिंह ने पास के बलुआ पत्थर खदान में काम करने का फैसला लिया। देव सिंह के गांव में काम का एक ही जरिया था-खेती। सूखे से वह बंद हुआ तो, बलुआ पत्थर खादान में रोजाना मिलने वाला 15 रुपए उन्हें अच्छा लगता था। अब, 42 वर्ष के देव सिंह को सिलिकोसिस नाम की बीमारी हो गई है। यह बीमारी खनिज खनन कार्यों से निकलने वाले बारीक सिलिका धूल के कारण होती है, जिसका अपने यहां कई इलाज नहीं है।

खनन में देव सिंह और नके साथी खनिक को कोई सुरक्षात्मक गियर नहीं दिया गया था। 10 वर्षों के भीतर उनका शरीर इतना कमजोर हो गया कि वह काम नहीं कर पा रहे। देव सिंह ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा, “मेरी हड्डियों और पसलियों में दर्द होता था।” इसी बीमारी के कारण देव सिंह का एक भाई मौत की भेंट चढ़ गए और हाल ही में उनका एक अन्य भाई भी इसी बीमारी से ग्रसित हुआ है। देव सिंह अपने गांव में 6-7 साल पहले वापस आये थे, और अब दो बकरियां चराते हैं। उनकी पत्नी और बेटी दूसरों के खेत पर काम करती हैं और रोजाना 200 रुपए कमाती हैं, जिससे किसी तरह उनके परिवार का गुजारा होता है।

इस गांव से अकेले 30 से ज्यादा लोग हैं और भीलवाड़ा जिले में कम से कम 1,000 लोग हैं, जिन्हें खनन में काम करने से सिलिकोस नाम की बीमारी हुई है और जिनकी आजीविका बर्बाद हो गई और जीवन तबाह।

इस तरह के नुकसान को देखते हुए खनन क्षेत्र के कामगारों की मदद के लिए ‘प्रइम मिनिस्टर माइनिंग एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम ‘(पीएमकेकेकेवाई) की अवधारणा को संकल्पित किया गया । वर्ष 2015 से व्यवहार में आए इस प्रोग्राम के तहत परिचालन, कार्यक्रम, खनन के सभी हानिकारक प्रभावों को कम करने और स्थानीय लोगों को लाभान्वित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सभी खनन कार्यों पर प्रभार लगाने के लिए भारत के खनन जिलों को अधिकार प्रदान किया गया है।

नेशनल सेंपल सर्वे कार्यालय के मुताबिक, 2014 में खनन ने औपचारिक नौकरियों में 500,000 से अधिक लोगों को रोजगार दिया और वर्ष 2025 तक 13-15 मिलियन से ज्यादा नौकरियों की उम्मीद है, जैसा कि खनन मंत्रालय के लिए इस सरकारी रणनीति पत्र से पता चलता है।

कुछ अपवादों को छोड़कर, भारत के खनिज समृद्ध इलाके भी सबसे गरीब हैं। खनन ने स्थानीय निवासियों को लाभान्वित करने में नाकामयाबी हासिल की है, इसने भूमि और नदियों को तबाह किया है और पारंपरिक आजीविका नष्ट कर दी है। इसके अलावा अवैध खनन की समस्या भी व्यापक है।

दो लेखों की इस श्रृंखला में, खनन से संबंधित अलग-अलग तरह की समस्याओं और मुद्दे को समझने के लिए इंडियास्पेंड ने राजस्थान में भीलवाड़ा जिले का दौरा किया है।

भारत और भीलवाड़ा में खनन

देश की समृद्ध खनिज संपदा ने भारत में खनन को लाभकर उद्योग बनाया है, खासकर 2000 के दशक में, जब कमोडिटी की कीमत ऊछली, हालांकि वह बाद में नीचे आई थी।

खनन की वृद्धि दर में 1 फीसदी वृद्धि और और औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर में 1.2-1.4 फीसदी वृद्धि और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में 0.3 फीसदी की बढ़ोतरी के परिणामों का उत्खनन करना।

हालांकि, भारत का प्रमुख खनिज भंडार जंगलों और नदियों के नीचे स्थित है, जिससे पर्यावरणीय रूप से निष्कासन होता है। कुछ खनिज समृद्ध राज्य ( उद्हारण के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा ) सबसे गरीब बने रहे हैं, क्योंकि स्थानीय समुदायों को फायदा नहीं हुआ है, और संघीय और राज्य सरकारों खनन करों का उपयोग करने में असफल रहे हैं।

सरकार ने 16 सितंबर, 2015 को जिला खनिज नींव बनाने के आदेश देते हुए कहा, “खनन से संबंधित कार्यों को देश के कम विकसित और बहुत ही दूरदराज के इलाकों, और आबादी के कमजोर वर्गों, खासकर अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए, विशेष रूप से यह आवश्यक है कि विशेष ध्यान और संगठित और संरचित तरीके से समर्पित कर, यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये क्षेत्र और प्रभावित व्यक्ति अपने क्षेत्रों में खनिज संपदा से लाभान्वित हों और अपने जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए सशक्त हों।”

भीलवाड़ा, जिसे भील आदिवासियों से अपना नाम मिला है, वहां 500 बलुआ पत्थर खानों और 1000 जस्ता, सीसा, चांदी, अभ्रक, फेलडस्पार, साबुन का पत्थर और अन्य खानें हैं , जो कारों और इन्सुलेशन ईंटों से लेकर टाइलें और सौंदर्य प्रसाधन को कच्चा माल प्रदान करता है।

दुनिया में सबसे बड़ी जस्ता खादानों में से एक इस जिले में हैं, और एक संपन्न कपड़ा केंद्र है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, फिर भी आधे से ज्यादा महिलाएं अशिक्षित थीं, 35 फीसदी बच्चे स्टंड थे और वर्ष 2015-16 में, 20 से 24 वर्ष की आयु की 67 फीसदी गांव की महिलाओं का विवाह उम्र से पहले हुआ है।

2.4 मिलियन निवासियों के साथ यह जिला बड़े पैमाने पर ग्रामीण है। 78.7 फीसदी निवासी ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं।

इस सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक खनिज और खानों में कम से कम 9, 218 हेक्टेयर भूमि शामिल है। खनिज निष्कर्षण ने भूमि और जल को नुकसान पहुंचाया है, प्रदूषण पैदा किया है, और इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। कई गांवों में पानी खतरनाक ढंग से फ्लोराइड से दूषित हुआ है।

भीलवाड़ा का 85 फीसदी हिस्सा खनन और उसके अवांछनीय प्रभाव से प्रभावित होता है, जैसा कि कमलेश्वर बारेगामा ने इंडियास्पेंड को बताया है।

कमलेश्वर सरकार के साथ वरिष्ठ खनन इंजीनियर और जिला खनिज फाउंडेशन चलाने वाले दो समितियों के सचिव-जनरल भी हैं। यह प्रभाव खनन भूमि या उसके पास के गांवों, खानों से हवा या पानी के प्रवाह के रास्ते में पड़े इलाकों, खनन प्रेषण क्षेत्रों जैसे खनिजों को चलाने वाले ट्रकों के रास्तों पर भी पड़ा है।

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