झारखंड में स्वास्थ्य सेवा को दुरुस्त करने के सरकारी दावों के बीच एक कड़वी सच्चाई ये है कि राज्य के लोगों को जरुरत पड़ने पर ना तो दवा, डॉक्टर और ना ही खून मिल पाते हैं.
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल, रिम्स का मॉडल ब्लड बैंक खून की कमी से जूझ रहा है. ये और बात है कि वीआईपी के लिए पहले से ही यहां कुछ यूनिट खून सुरक्षित रख लिया जाता है. पर आम इंसान दर-दर भटकता रह जाता है, खून नहीं मिल पाता.
राज्य में नाको यानि नेशनल एड्स कंट्रोल सोसायटी की ओर से ब्लड बैंक के लिए फंडिंग के बावजूद अभी भी ज्यादातर सीएचसी में जरुरत के अनुसार ब्लड स्टोरेज की सुविधा तक नहीं है. 285 सीएचसी में से 48 सीएचसी में ही ब्लड स्टोरेज करने की सुविधा उपलब्ध है. वहीं सरायकेला और जामताड़ा जैसे जिलों ब्लड बैंक खुला ही नहीं है.
सरकार सभी सीएचसी -पीएचसी सेंटरों पर सर्जरी करने का निर्देश चिकित्सकों को दे रखा है. लेकिन जब सर्जरी की बात आती है तो डॉक्टर इसलिए परेशान हो जाते हैं कि वे आपातस्थिति कहां से खून की व्यवस्था करेंगे. राज्य में ब्लड बैंकों की स्थिति और वहां रक्त की उपलब्धता को लेकर सरकारी डॉक्टरों के संगठन झासा सरकार की नीति और नियत पर ही सवाल खड़ा करता है.