आतंकवाद ने एक बार फिर दुनिया को दहलाया है। यों तो पिछले कुछ बरसों के दौरान मिस्र में कई आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं, पर बीते हफ्ते सिनाई प्रांत में एक मसजिद में इकट्ठा हुए लोगों पर जुमे की नमाज के दौरान जो हमला हुआ वह मिस्र में अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला था। इसमें तीन सौ पांच लोग मारे गए, जिनमें सत्ताईस बच्चे थे। सेना के भेष में आए पच्चीस-तीस हमलावरों ने अल आरिश शहर स्थित अल रावदा मसजिद में पहले बमों से कहर बरपाया, और फिर जान बचाने की खातिर भागते हुए लोगों पर मशीनगनों से गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। जाहिर है, वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारना चाहते थे, और हुआ भी वही। यह क्रूरता की इंतिहा है। दुनिया भर ने इस आतंकी घटना की निंदा की है और गम जाहिर किया है। हमले की जिम्मेदारी फिलहाल किसी संगठन ने नहीं ली है, पर माना जा रहा है कि इसके पीछे आइएसआइएस या उससे जुडेÞ किसी स्थानीय संगठन का हाथ होगा। एक तो यह कि हमले का तौर-तरीका आइएसआइएस के रंग-ढंग से मेल खाता है। दूसरे, सिनाई में वह काफी सक्रिय है। उसकी गतिविधियों के कारण ही यह इलाका लगातार अशांत रहा है। यहां आतंकियों के हमलों में सुरक्षा बलों के भी सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं।
कुछ समय पहले मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी ने कहा था कि इराक व सीरिया में निरंतर सिमटते और घिरते जाने के कारण आइएसआइएस के लड़ाके मिस्र की ओर रुख कर सकते हैं। उनकी आशंका सही साबित हो रही है। पर सवाल है कि जो खतरा उन्हें औरों से पहले दिखने लगा था उससे निपटने के लिए उन्होंने क्या किया? ताजा हमले के बाद सेना ने आतंकियों के कई ठिकानों को विमानों से बम गिरा कर नेस्तनाबूद करने का दावा किया है। तो क्या सेना को ये ठिकाने पहले से मालूम थे? फिर, पहले वहां कार्रवाई क्यों नहीं की गई? आखिर अल सीसी किस बात का इंतजार कर रहे थे? ताजा आतंकी हमले का एक खास पहलू यह है कि एक ऐसी मसजिद में आए लोगों को निशाना बनाया गया जो सूफी मसजिद कही जाती है। मिस्र में ईसाइयों पर कई आतंकी हमले हो चुके हैं। इस साल मई में मध्य मिस्र में कुछ बंदूकधारी हमलावरों ने ईसाइयों को ले जा रही एक बस को बमों से उड़ा दिया था, जिसमें अट्ठाईस लोग मारे गए थे। फिर, अप्रैल में उत्तरी शहर एलेक्जेंड्रिया में एक चर्च के नजदीक हुए दो फिदायीन हमलों में छियालीस लोग मारे गए थे।
लेकिन अब सूफी भी आतंकियों के निशाने पर आ गए हैं, जो इस्लाम को ही मानते हैं, अलबत्ता वे इस्लाम की सबसे सहिष्णु और सबसे उदारवादी धारा रहे हैं। आइएसआइएस सूफियों को काफिर मानता है। इसलिए मिस्र में ईसाइयों पर कई बार हमला कर चुके आतंकियों ने अब एक सूफी मसजिद को भी नहीं बख्शा तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। कट््टरपंथी मिजाज अन्य धर्मावलंबियों को तो दुश्मन के रूप में देखता-दिखाता ही है, एक दिन वह अपने धर्म के भी उदार व सहिष्णु लोगों के लिए खतरा बन जाता है। यह दुनिया के सभी हिस्सों में और सभी धर्म-समाजों में दिख रहा है।