देश की 80 फीसदी कोकिंग कोल की जरूरत को अकेला धनबाद पूरा करता है, लेकिन इसकी कीमत भी धनबाद के लोग प्रदूषण के रूप में झेलते हैं. भूमिगत खदान की जगह अब कोल इंडिया और बीसीसीएल ओपेन कास्ट माइन्स पर जोर दे रही है.

कोयला खनन के लिए हेवी ब्लास्टिंग और खुले मे ट्रांसपोर्टिंग धनबाद के लिए मुसीबत बनती जा रही है. झरिया के भूमिगत आग में जल रहे कोयला प्रतिदिन हवा में जहर घोल रहा है. आस-पास के लाखों आबादी प्रभावित हो रही है. जिसके कारण लोग श्वास, फेफड़ा और हृदय रोग की चपेट में आ रहे हैं.

साल 2016 में देश के सर्वाधिक गंदे शहर में शामिल होने के कारण हाल ही में धनबाद नगर निगम चर्चित हुआ, जबकि धनबाद में बढ़ते प्रदूषण के कारण ही 2011 से 2013 के बीच तक एनजीटी ने नए उद्योग लगाने पर रोक लगाकर रखी थी. इस बीच प्रतिबंध तो हट गया, लेकिन मुसीबत नहीं टली है.धनबाद मे प्रदूषण के लिए सिर्फ ओसीपी जिम्मेवार नहीं है, बल्कि हार्ड कोक, सॉफ्ट कोक फैक्ट्रियां, ईंट उद्योग, घनी आबादी के बीच खुले खदान प्रदूषण का कारण रही हैं. चिंता की बात ये है कि धनबाद के हवा में प्रदूषण मापने के लिए शहर के पांच स्थानों पर लाखों की लागत झारखंड पीसीबी ने आरडीएस मशीन लगाए हैं, लेकिन फिल्टर के अभाव में ये सभी पिछले कुछ महीने से बेकार पड़े हैं.

कोयला और बायोमास से फैल रहा है प्रदूषण

धनबाद सिंफर के वरीष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सिद्धार्थ सिंह के अनुसार अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ धनबाद के प्रदूषण पर शोध किया गया. जिसके तहत धनबाद में इस वक्त कोयला और बायोमास से 87 प्रतिशत, जबकि पुराने गाड़ियों से 13 प्रतिशत वायु प्रदूषण फैल रहा है.

संवेदनशील स्थिति में है धनबाद

उन्होंने बताया कि धनबाद मे भले ही दिल्ली की तरह धुंध का खतरा नहीं है, लेकिन छोटे धूल कण पीएम 2.5 और बड़े धूल कण पीएम -10 के मामले भी कोयलांचल की हालत खराब है. इसका मानक सूचकांक 60 की जगह धनबाद मे 80 से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया है. देश के 94 शहरों में झारखंड का धनबाद भी संवेदनशील स्थिति में है.

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