भारत की नुमाइंदगी के लिए न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी का हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक बार फिर पहुंचना एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। उससे भी बड़ी बात यह कि यह ब्रिटेन जैसे एक सशक्त देश के लिए बड़ी हार है। इसका अहसास दुनिया के उन सर्वाधिक ताकतवर देशों को भी हो चुका है, जो सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में वीटो के अधिकार से लैस हैं। इस मामले में ब्रिटेन को कैसा झटका लगा है, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे मीडिया और संसद में ब्रिटिश सरकार की आलोचना हो रही है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के बाद इसे दूसरे बड़े झटके के रूप में भी देखा जा रहा है। भारत के लिए यह बड़ी कामयाबी इसलिए भी है कि दुनिया में आज भी विकासशील देश के रूप में पहचान के बावजूद उसने ब्रिटेन को एक ऐसे वैश्विक मंच पर पटखनी दी, जिसमें हमेशा से उसकी तूती बोलती आई थी। 1946 के बाद यह पहला मौका है जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के पंद्रह जजों में ब्रिटेन का कोई जज नहीं है।

हेग में लगातार दूसरी बार अपना प्रतिनिधि पहुंचाना भारतीय नेतृत्व के लिए आसान नहीं रहा। इसके लिए वह लंबे समय से प्रयासरत था। इस साल जुलाई में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन से ही भारतीय नेतृत्व इस अभियान में जुट गया था। सुरक्षा परिषद के सदस्यों और महासभा के सौ से ज्यादा सदस्य देशों को चिट्ठी लिख भारत ने इसके लिए समर्थन मांगा। जिन मुल्कों का संयुक्त राष्ट्र में दबदबा है, उन्हें अपने समर्थन में मनाना कोई आसान नहीं था। न्यायमूर्ति भंडारी को दोबारा हेग पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों में मतदान होना था और इसमें भारत को बहुमत हासिल करना था। जबकि ब्रिटेन मतदान के ठीक ऐन वक्त पहले तक साझा सम्मेलन बुलाने पर अड़ा रहा। लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली और बारहवें दौर के मतदान में भंडारी को एक सौ तिरानबे में से एक सौ तिरासी मत मिले। इसके अलावा सुरक्षा परिषद के सभी पंद्रह वोट भी उन्हें मिले।

अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर आज जो स्थितियां हैं, वे भारत के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं हैं। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी ही ऐसी शख्सियत और कानूनविद हैं, जो इन मौजूदा चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने यह साबित भी कर दिखाया है। न्यायमूर्ति भंडारी अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञ हैं। वैश्विक विवादों की उन्हें गहरी समझ है। अंतरराष्ट्रीय कानूनी दांव-पेंचों को वे बारीकी से समझते हैं। ताकतवर देशों के सामने तर्कसंगत और पुरजोर तरीके से अपना पक्ष रखने और जिरह करने में उन्हें महारत हासिल है। कुलभूषण जाधव के मामले में उन्होंने जिस तरह भारत का पक्ष रखा, उसी से पाकिस्तान सकते में आया। जाधव का मामला न्यायमूर्ति भंडारी के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं था। भारत की इस कूटनीतिक जीत से दुनिया को जो संदेश गया है वह यह कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अबभारत एक मजबूत हैसियत में है। इससे सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए उसकी दावेदारी को भी बल मिलेगा। ब्रिटेन की हार से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को समझ आना चाहिए कि दुनिया की इस सबसे शक्तिशाली संस्था में उनके वर्चस्व को चुनौती देने वाले मुल्क दुनिया में मौजूद हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में दलवीर भंडारी को एक और लंबा कार्यकाल मिलना, भारत और दलवीर भंडारी दोनों का सम्मान है।

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