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    Home»विशेष»संपादकीयः मौत की नींद
    विशेष

    संपादकीयः मौत की नींद

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीNovember 30, 2017No Comments3 Mins Read
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    कई बार ऐसे बड़े हादसे हो जाते हैं, जिनसे मामूली सावधानी बरत कर बचा जा सकता है। मगर कई बार जागरूकता के अभाव में तो कई बार अभाव में जरूरत पूरी करने की गरज में लोग ऐसे रास्तों का सहारा ले लेते हैं, जो उनके लिए जानलेवा साबित हो जाता है। दिल्ली के कैंट इलाके में कंटेनर में जलते तंदूर के धुएं से दम घुट कर छह लोगों की मौत ऐसी ही घटना है। एक कैटरिंग कंपनी से जुड़े छह कामगार एक विवाह समारोह में अपना काम खत्म करने के बाद रात में कंटेनर में सो गए। खबरों के मुताबिक रात की ठंड से बचने के लिए उन्होंने जलते तंदूर को कंटेनर में रख लिया था। कंटेनर बंद होने और तंदूर में जलते कोयले की वजह से उसमें मौजूद आॅक्सीजन कार्बन मोनोआॅक्साइड बन गई और नींद में ही छहों लोगों की मौत हो गई। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत की वजहें साफ होंगी। कैंट इलाके में चारों तरफ से बंद जिस कंटेनर में यह हादसा हुआ, उसमें तंदूर तो जल रहा था, लेकिन वहां धुआं निकलने की कोई जगह नहीं थी।

    जब तक बाहर से किसी व्यक्ति ने अंदर सो रहे लोगों की खोज नहीं की, तब तक इस हादसे के बारे में किसी को पता भी नहीं चला।
    दूरदराज के इलाकों की तो छोड़ दें, जाड़े का मौसम शुरू होने के बाद राजधानी दिल्ली तक में बड़ी आबादी ऐसी है, जो कड़ाके की ठंड से बचने के लिए बंद कमरे के किसी कोने में जलती हुई अंगीठी या फिर आग जला कर सो जाती है, ताकि थोड़ी गरमी मिल सके। पर जिन कमरों में रोशनदान या हवा की आसान आवाजाही की व्यवस्था नहीं होती, धुएं के निकलने की जगह नहीं होती है, उनमें अंगीठी या आग देर तक जलने के बाद कार्बन मोनोआॅक्साइड गैस बन जाती है। गौरतलब है कि कार्बन मोनोआॅक्साइड का व्यक्ति के स्नायु तंत्र पर गहरा असर पड़ता है और बेहोशी में आॅक्सीजन की कमी का लोगों को पता भी नहीं चलता। नतीजतन, दम घुटने से उनकी मौत हो जाती है।

    ऐसी ही वजहों से कार्बन मोनोआॅक्साइड को ‘साइलेंट किलर’ या ‘बेआवाज हत्यारा’ कहा जाता है! इस हादसे की मुख्य वजह लापरवाही कही जा सकती है। पर सवाल है कि क्या वे छह लोग इसलिए मारे गए कि वे मजदूर तबके से थे और रात में दो बजे काम खत्म होने के बाद उनके पास सोने की जगह नहीं थी और ठंड से राहत के लिए कंटेनर में जलता तंदूर रख कर सो गए? जिन लोगों ने किसी विवाह समारोह में कैटरिंग सेवा दी और जहां कई लाख रुपए खर्च करके तमाम चकाचौंध के अलावा बहुत तरह की सुविधाओंके इंतजाम किए गए थे, क्या वहां कुछ लोगों के सोने की अलग से व्यवस्था नहीं हो सकती थी? इसके अलावा, जो कैटरिंग कंपनियां बड़े समारोहों में सेवा देने के लिए लाखों रुपए का ठेका लेती हैं, क्या वे अपने मजदूरों को रात में या काम खत्म होने के बाद सुरक्षित नींद लेने का इंतजाम नहीं कर सकतीं? अगर किन्हीं हालात में ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं, तो पीड़ित लोगों या मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजे को लेकर क्या कोई नियम-कायदा है? विवाह या फिर किसी भी तरह के समारोह के सहज और निर्बाध संपन्न होने में सबसे बड़े मददगार कामगारों की सुरक्षा और सुविधा के लिए क्या सरकार की ओर से कोई दिशा-निर्देश तय नहीं किए गए हैं!

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