- भाजपा और झाविमो ने भी लगाया जोर
रांची। संथाल की राजनीति में लंबे अर्से से झामुमो का कब्जा रहा है। एकीकृत बिहार के समय से यह क्षेत्र झामुमो का अजेय दुर्ग रहा है। अलग राज्य बनने के बाद भी इस क्षेत्र में झामुमो का वर्चस्व कायम है। झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के नाम का परचम यहां अभी भी कायम है। अभी भी संथाल परगना के कुछ सुदूर गांव ऐसे हैं, जहां के ग्रामीण गुरु जी को अपना भगवान मानते हैं। हां, जिस समय झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी भाजपा में थे, उस समय उन्होंने शिबू सोरेन को इस क्षेत्र में जबरदस्त टक्कर दी थी। यहां तक कि शिबू सोरेन को लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने परास्त भी किया था।
संथाल में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 18 सीटें हैं। लोकसभा की तीन सीटों में से दो पर झामुमो का कब्जा है और एक सीट पर भाजपा का। वहीं विधानसभा सीटों की बात करें, तो भाजपा इस क्षेत्र में सबसे बड़ी पार्टी है। 18 विधानसभा सीटों में आठ पर भाजपा का कब्जा है, छह पर झामुमो, तीन पर कांग्रेस और एक सीट झाविमो के पास है। हालांकि झाविमो ने पिछले चुनाव में दो सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में सारठ से झाविमो के टिकट पर जीते रणधीर सिंह ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया था। पिछले लोकसभा चुनाव में देश में मोदी लहर चल रही थी। उस लहर में भाजपा ने झारखंड के चार प्रमंडल की सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन संथाल में भाजपा के विजय रथ को झामुमो ने रोक दिया था। संथाल की सिर्फ गोड्डा सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की थी।
मिशन 2019 के तहत संथाल पर भाजपा, झामुमो और झाविमो की नजर है। झामुमो की तरफ से दिशोम गुरु शिबू सोरेन इस क्षेत्र की खुद कमान संभाले हुए हैं। संघर्ष यात्रा के तहत झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन मिशन 2019 का बिगुल फूंक चुके हैं। झामुमो की तरफ से शिबू सोरेन ने संथाल से चुनावी शंखनाद कर दिया है। एक तरफ जहां हेमंत कोल्हान और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में संघर्ष यात्रा कर मिशन 2019 के तहत जनता को गोलबंद कर रहे हैं, वहीं गुरुजी अपना केंद्र संथाल को बनाये हुए हैं। वह पिछले एक महीने से संथाल में कार्यक्रम कर रहे हैं। कई विधानसभा क्षेत्रों का दौरा भी उन्होंने किया है।
इधर झामुमो के गढ़ को धवस्त करने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सबसे ज्यादा कार्यक्रम इस क्षेत्र में किया है। केंद्र सरकार और राज्य की कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत इस क्षेत्र से की गयी है। लंबे समय से साहेबगंज में गंगा पुल की मांग की जा रही थी। केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही इसका शिलान्यास किया गया। मुख्यमंत्री की पहल पर केंद्र सरकार ने देवघर में एम्स और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा की सौगात दी। इतना ही नहीं राज्य सरकार ने पहाड़िया बटालियन का भी गठन किया। मलूटी को राष्ट्रीय स्तर पर जगह दिलायी गयी। लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां की जनता से वादा किया था कि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार बनी, तो संथाल से झारखंड के विकास का द्वार खोला जायेगा।
इस क्षेत्र से झामुमो के वर्चस्व को समाप्त करने के लिए भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ रही है। लगातार पार्टी का कार्यक्रम हो रहा है। सांगठनिक स्तर पर भी भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। प्रदेश कमेटी में भी संथाल के नेताओं को तरजीह दी गयी है। बूथ स्तर पर भाजपा संगठन को मजबूत कर रही है। हर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र में प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों को सांगठनिक काम में लगाया गया है। पिछले चार वर्षों में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक आधे दर्जन से ज्यादा संथाल में हुई है। संथाल का क्षेत्र आदिवासी बहुल क्षेत्र है। भाजपा ने पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के कई कार्यक्रम इस क्षेत्र में किये हैं। कह सकते हैं कि भाजपा ने इस क्षेत्र को मिशन 2019 में टारगेट पर रखे हुए है।
तमाम तैयारियों के बावजूद संथाल में झामुमो को शिकस्त देना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर है। कारण झामुमो की सबसे ज्यादा राजनीतिक पकड़ झारखंड में संथाल और कोल्हान क्षेत्र में है। संथाल को वह किसी भी कीमत पर अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। संथाल में हुए विधानसभा उपचुनाव में झामुमो ने अपनी धमक को साबित कर दिखाया है। लिट्टीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में लाख कोशिशों के बाद भी भाजपा जीत हासिल नहीं कर सकी। पिछले उपचुनाव में यह देखा गया कि पहाड़िया बटालियन के गठन के बावजूद लिट्टीपाड़ा चुनाव में पहाड़िया जनजाति का अधिकांश वोट झामुमो के उम्मीदवार साइमन मरांडी के खाते में चला गया। यही नहीं, कई और इलाकों में जहां भाजपा को पूरी उम्मीद थी, वहां के मतदाताओं ने भाजपा के हेमलाल मुर्मू को गच्चा दे दिया।
यह इस बात का सबूत है कि आज भी संथाल में झामुमो की जमीन अन्य दलों से ज्यादा मजबूत है। झामुमो भी लगातार कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को गोलबंद कर रही है। इस क्षेत्र के कई विधानसभा क्षेत्रों खासकर आदिवासी बहुल क्षेत्र में गुरुजी का डंका आज भी बजता है। कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां भाजपा या अन्य दलों ने कभी खाता नहीं खोला है। खासकर बरहेट, जामा, नाला, शिकारीपाड़ा, लिट्टीपाड़ा ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां भाजपा को कभी जीत नहीं मिली है। भाजपा संथाल के वैसे सीटों पर ही कब्जा कर सकी है, जहां गैर जनजातीय आबादी अधिक है। भाजपा एक मिशन के तहत आदिवासी इलाके में अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयास कर रही है। जबकि झामुमो इस प्रयास में है कि आदिवासियों के परंपरागत वोट पर किसी भी हाल में भाजपा का कब्जा नहीं हो। इसी बात को ध्यान में रखकर झामुमो जमीन से जुड़े मुद्दे को लेकर जनता के बीच जा रही है।
झाविमो की भी नजर संथाल पर है। झाविमो के बाबूलाल मरांडी के बाद सबसे बड़े नेता प्रदीप यादव लगातार इस क्षेत्र की समस्याओं को लेकर सदन से लेकर सड़क तक मुखर रहते हैं। भाजपा से अलग होने के बाद बाबूलाल मरांडी ने दो चुनावों में अपनी उपस्थिति इस क्षेत्र में दर्ज करायी थी। बोरियो विधानसभा जो झामुमो का गढ़ कहा जाता था, उस पर बाबूलाल ने कब्जा किया था। सारठ विधानसभा क्षेत्र पर पिछले चुनाव में कब्जा किया था जबकि यह क्षेत्र लंबे समय तक कांग्रेस और झामुमो के कब्जे में था। पिछले चुनाव की ही बात करें तो आधा दर्जन सीटों पर झाविमो दूसरे स्थान पर था। इस बार भी बाबूलाल मरांडी जामताड़ा, मधुपुर, बोरियो, सारठ, देवघर, गोड्डा में जनता को अपने पक्ष में गोलबंद करने में जुट गये हैं।
झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को हराकर बाबूलाल मरांडी इस इलाके में सुर्खियों में आये थे। भाजपा छोड़ने के बाद उन्होंने इस क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाकर काम शुरू किया था। सांगठनिक स्तर पर देखा जाये, तो आज भी झाविमो किसी पार्टी से संथाल में कमजोर नहीं है। पोल खोल हल्ला बोल कार्यक्रम के तहत बाबूलाल मरांडी ने इस क्षेत्र में दर्जन भर से ज्यादा कार्यक्रम किये हैं। यही वजह है कि गोड्डा लोकसभा सीट पर झाविमो अभी से दावेदारी कर रहा है। बिहार से सटा होने के कारण राजद भी दो-तीन विधानसभा क्षेत्रों में मजबूत है। खासकर देवघर और गोड्डा में राजद ने 10 वर्षों तक प्रतिनिधित्व किया है। इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में राजद भी मजबूती के साथ तैयारी कर रहा है। तीन-चार सीटों पर कांग्रेस भी यहां मजबूत है। खासकर पाकुड़ और जामताड़ा में कांग्रेस अन्य दलों की तुलना में ज्यादा ताकतवर है। महागामा में भी कांग्रेस अच्छी स्थिति में है। पिछले चुनाव में लंबे अर्से के बाद ही सही जरमुंडी में कांग्रेस ने वापसी की है। कांग्रेस के विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और वरिष्ठ नेता फुरकान अंसारी भी इसी इलाके से हैं। इस क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठी की संख्या ज्यादा है, साथ ही कई विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल हैं, जिसका फायदा कांग्रेस को मिलता रहा है।
बहरहाल संथाल किसके साथ जायेगा यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन जिस तरह से सभी राजनीतिक दलों ने यहां अपनी ताकत अभी से झोंक दी है, वह इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि इस क्षेत्र में मुकाबला दिलचस्प होगा।