रांची। उषा मार्टिन लिमिटेड अपने स्टील प्लांट को बेच कर सभी देनदारी और कर्ज चुकायेगा। कंपनी ने अपने सभी शेयरधारकों को विश्वास में लेते हुए भरोसा दिलाया है कि स्टील बिजनेस की प्रस्तावित बिक्री से मिलनेवाली राशि सभी लेनदारों को भुगतान की जायेगी, ताकि कंपनी और शेयरधारकों पर कोई कर्ज ना रहे। मालूम हो कि उषा मार्टिन की स्टील इकाई का सौदा टाटा ग्रुप के टाटा स्पांज के साथ हो चुका है। सौदे के साथ ही यह तय हो चुका है कि स्टेट बैंक आॅफ इंडिया में एक एस्क्रो एकाउंट खोला जायेगा, जिसमें टाटा ग्रुप पैसे जमा करायेगा। इसी एकाउंट से आगे राशि का भुगतान लेनदारों को किया जायेगा। हालांकि सौदे का सारा प्रारूप तय हो चुका है, लेकिन कंपनी के शेयरधारकों के मन में कई शंकाएं अब भी बाकी हैं। शेयरधारकों को समझाने में कंपनी, बोर्ड और प्रबंधन के पसीने छूट रहे हैं।
4520 करोड़ में तय हुआ है सौदा, स्टील के साथ आयरन ओर और कोल माइंस भी ले लेगा टाटा ग्रुप
कंपनी ने शेयरधारकों को यह भी भरोसा दिलाया है कि अगले दो माह के अंदर यह सौदा पूरा हो जायेगा। कहा गया है कि पहले जितना भी कर्ज है, उसे क्लीयर किया जायेगा। इसके बाद बचे हुए पैसे को हाथ लगाया जायेगा। टाटा ग्रुप उषा मार्टिन की स्टील कंपनी के लिए 4520 करोड़ रुपये का भुगतान करने पर सहमत है। इसके बदले में उसे जमशेदपुर स्थित उषा मार्टिन लिमिटेड की एक मिलियन टन स्टील की क्षमतावाली स्टील कंपनी, एक पावर प्लांट और इससे जुड़ी एक कोल और एक आयरन ओर माइंस टाटा की हो जायेगी। उषा मार्टिन लिमिटेड पर 30 जून 2018 की तिथि को कुल 4700 करोड़ रुपये का कर्ज था। कंपनी के बैलेंसशीट के मुताबिक लांग टर्म और वर्किंग कैपिटल की यह देनदारी है।
प्रबंधन वही काम करता रहेगा
कुछ शेयरधारकों ने यह भी सवाल उठाया कि सौदे के बाद स्टील कंपनी का प्रबंधन का कौन संभालेगा। जो प्रबंधन स्टील बिजनेस को नहीं संभाल सका, क्या वहीं आगे भी जारी रहेगा। एक शेयरधारक ने यह पूछा कि टाटा ग्रुप उषा मार्टिन लिमिटेड में सीधे शेयर ही क्यों नहीं ले लेता। इसके जवाब में चेयरमैन वाजपेयी ने कहा कि मौजूदा परिस्थिति में यह संभव नहीं था, क्योंकि प्लांट के सेल में गिरावट है। इसलिए प्लांट का ही सौदा किया गया है, परंतु सौदे के बाद भी बोर्ड आॅफ डाइरेक्टर्स, मैनेजिंग डाइरेक्टर, सीएफओ और कंपनी सेक्रेटरी बने रहेंगे। कंपनी चेयरमैन ने सौदे का बचाव करते हुए कहा कि यह जरूरी था कि कंपनी की देनदारी और कर्ज का बोझ कम किया जाये। कहा कि यह सौदा शेयरधारकों के लिए निश्चित ही फायदे का सौदा साबित होगा। यह सच है कि महंगाई के कारण बाजार प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा कि जबसे प्रशांत झंवर ने सौदे को सहमति दी है, उषा मार्टिन लिमिटेड के स्टॉक में 50 फीसदी का उछाल आया है।
फिलहाल 700 करोड़ रोकेगा टाटा
उषा मार्टिन लिमिटेड के मैनेजिंग डाइरेक्टर और प्रमोटर राजीव झंवर ने कहा कि दो से तीन माह में सौदा पूरा हो जायेगा। टाटा स्टील ने सीसीआइ आवेदन तैयार कर लिया है। इसे सहमति मिलते ही सौदा आगे बढ़ जायेगा। कोल माइन और आयरन ओर के ट्रांसफर में ज्यादा समय नहीं लगेगा। एक से डेढ़ माह सारी प्रक्रिया पूरी हो जायेगी, क्योंकि एमएमडीआर के बाद चीजें काफी आसान हो गयी हैं। उन्होंने यह भी इशारा किया कि टाटा स्पांज माइंस के ट्रांसफर होने तक कुछ राशि का भुगतान रोक भी सकता है। सूत्रों के मुताबिक टाटा स्पांज माइंस मिलने तक 700 करोड़ रुपये रोके रख सकता है।
वायर रोप का भविष्य
उषा मार्टिन लिमिटेड के मुख्य वित्तीय पदाधिकारी रोहित नंदा ने बताया कि वायर रोप कंपनी पर बैलेंसशीट में 400 करोड़ की देनदारी है। वायर रोप कंपनी देश में सबसे बड़ी और दुनिया में चौथे स्थान पर है। कहा कि कंपनी के लिए लोन बड़ी चुनौती नहीं है, क्योंकि इबीआइडीटीए से वार्षिक 270 करोड़ रुपये कंपनी को प्राप्त हो रहे हैं। कहा कि पिछले साल कंपनी के 4146.15 करोड़ के बिजनेस में 40 फीसदी टर्न ओवर रोप वायर कंपनी का था। यह स्टील बिजनेस को चलाने में सहयोग भी कर रहा था। राजीव झंवर ने कहा कि कंपनी ने टाटा स्टील के साथ पांच साल का एक कांट्रेक्ट किया है, जिसके तहत उसे वायर रॉड, रॉ मेटेरियल फेयर मार्केट प्राइस पर सप्लाई किया जायेगा।
बोर्ड की मीटिंग में बेचने पर सहमति
बीते शनिवार को कोलकाता में उषा मार्टिन की अति विशेष जेनरल मीटिंग हुई। इसमें कंपनी को बेचे जाने का प्रस्ताव लाया गया। इस पर 99.99 प्रतिशत निदेशकों ने उषा मार्टिन स्टील डिवीजन को टाटा के हाथों बेचने पर अपनी सहमति दे दी। हालांकि बैठक के दौरान छोटे शेयरधारकों ने अपनी शंका बतायी। उन्होंने जानना चाहा कि इस सौदे के बाद कंपनी की सेहत पर क्या असर पड़ेगा। साथ ही उन्होंने सौदे के पूरे विवरण की मांग की। कंपनी की बोर्ड की ओर से बताया गया कि उन्हें पूरा विवरण उपलब्ध करा दिया जायेगा। उषा मार्टिन लिमिटेड के चेयरमैन जीएन वाजपेयी ने शेयरधारकों को आश्वस्त करते हुए कहा कि बिक्री के सारी प्रोसिडिंग एक अलग एस्क्रो बैंक एकाउंट के जरिये होगी। लीडिंग बैंक में एक अलग एकाउंट खोला जायेगा। इसी खाते में सौदे की राशि आयेगी और यहीं से लेनदारों को भुगतान कर दिया जायेगा। एक भी पैसा कंपनी में नहीं आयेगा और न ही इधर-उधर खर्च होगा। इसके बाद सौदे को लेकर वोटिंग हुई, जिसका परिणाम आ गया। 99.99 प्रतिशत निदेशकों ने केपनी को बेचने पर सहमति दे दी। इससे पहले पिता-पुत्र प्रशांत झंवर और बसंत झंवर भी बिक्री सौदे को सार्वजनिक रूप से सहमति दे चुके हैं।