Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Sunday, June 8
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Top Story»बाबूलाल के बिना विपक्ष के महागठबंधन का क्या होगा वजूद
    Top Story

    बाबूलाल के बिना विपक्ष के महागठबंधन का क्या होगा वजूद

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 5, 2019No Comments8 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के किसी प्रस्ताव को दरकिनार कर और अपने दम पर 81 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर बाबूलाल मरांडी ने विपक्ष और खासकर झामुमो और कांग्रेस को भौंचक कर दिया है। वर्ष 2000 में भाजपा के नेतृत्व में बनी सरकार में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यों के लिए याद रखे जानेवाले बाबूलाल हाल के दिनों में झारखंड की राजनीति में एकला चलो की राह अपना कर चर्चा में आ गये हैं। यही वजह है कि न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्ता पक्ष भी उनकी हर गतिविधि पर न सिर्फ नजर रख रहा है, बल्कि उनमें और उनकी पार्टी में लगातार बढ़ रही संभावनाओं का भी आकलन कर रहा है। राजनीति के गलियारों में यह किसी से छुपा नहीं है कि बाबूलाल मरांडी के संपर्क में विपक्ष और सत्ता पक्ष के कई विधायक और नेता भी हैं। झारखंड की राजनीति में झाविमो और बाबूलाल मरांडी की संभावनाओं को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    राजनीति में कौन कब जीरो और कब हीरो हो जाये, यह कहना मुश्किल है। वह तो परिस्थितियां ही होती हैं जो किसी नेता को हीरो या जीरो बनाती हैं। हालांकि परिस्थितियों के साथ उस राजनेता का व्यक्तित्व भी मायने रखता है। हाल के समय में झारखंड में ऐसी राजनीतिक परिस्थितियां निर्मित हुई हैं कि उसमें यदि बाबूलाल मरांडी के बगैर झारखंड में महागठबंधन आकार लेता है तो इसकी संभावना अधिक है कि वह टांय-टांय फिस्स हो जायेगा। हाल यह है कि कांग्रेस और झामुमो दोनों महागठबंधन में झाविमो की जरूरत और ताकत दोनों महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि रविवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने उनसे मुलाकात की और महागठबंधन को लेकर उनसे चर्चा की। हालांकि झामुमो ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया पर झामुमो भी यह अच्छी तरह से जानता है कि बाबूलाल मरांडी के बगैर झारखंड में कोई महागठबंधन आकार लेगा भी तो इसकी संभावना है कि वह बेहद कारगर न हो पाये।

    जन समागम से ताकत मिली बाबूलाल को
    झारखंड में भाजपा जिस तरह से 65 पार के लिए मजबूती से चुनाव की तैयारियों में जुटी है, विपक्ष में वही प्रयास बाबूलाल मरांडी भी कर रहे हैं। धुर्वा के प्रभात तारा मैदान में आयोजित जन समागम में उन्होंने चालीस हजार की भीड़ जुटा कर अपनी ताकत दिखा दी। इतनी भीड़ झामुमो और कांग्रेस मिलाकर भी अपनी सभाओं में जुटा नहीं पाये।
    बता दें कि झामुमो की हरमू मैदान में सभा हुई थी, जिसकी क्षमता ही पंद्रह हजार की है और कांग्रेस की विधानसभा मैदान में रैली हुई थी, जिसकी क्षमता दस हजार की है। उन रैलियों में कितने लोगों ने शिरकत की, यह तो दोनों दल ही बता सकते हैं, लेकिन इतना जरूर है कि रैली में उपस्थिति उन दोनों दलों की हैसियत के हिसाब से नहीं थी। जन समागम से पहले झाविमो ने सदस्यता अभियान चलाकर पांच लाख नये सदस्य बनाये। चुनाव से पहले झाविमो के संगठन को मजबूत करने की खामोश कवायद के बाद बाबूलाल मरांडी यह अच्छी तरह समझ गये थे कि राजनीति में तरजीह उसी दल या नेता को मिलेगी, जिसका या तो वर्तमान मजबूत होगा या उसके सुनहरे भविष्य की संभावनाएं दिखेंगी। बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के कड़े प्रहार के बाद न सिर्फ अपने दल को मजबूत किया, बल्कि सोशल मीडिया सेल की बदौलत जनता तक अपनी बात इस मजबूती से पहुंचायी कि हर तरफ उनकी चर्चा होने लगी। बाबूलाल मरांडी ने सरकार बनने पर युवा पीढ़ी को मुफ्त लैपटॉप देने की घोषणा करके खुद को भीड़ से अलग कर लिया। जब उन्हें महागठबंधन में उचित महत्व मिलने की संभावना गौण होती दिखी तो उन्होंने एकला चलो की राह अपनाते हुए सभी 81 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया। ऐसा झारखंड का कोई दल कर सकता था, तो वह निश्चित रूप से बाबूलाल मरांडी का झाविमो ही कर सकता है और बाबूलाल ने यह किया। दरअसल, बाबूलाल मरांडी यह अच्छी तरह जानते हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष में टिकट बंटवारे में अब देर नहीं है और इस टिकट बंटवारे के दौरान टिकट न मिलने पर कई नेता दलों टाटा बाय-बाय बोलेंगे, वे झाविमो के ही खेमे में आयेंगे। यहां तक कि झामुमो, कांग्रेस और आजसू के असंतुष्टों को भी यदि झारखंड में कोई पार्टी ठौर के साथ टिकट की गारंटी दे सकती है तो वह झाविमो ही है। ऐसी स्थिति में बाबूलाल मरांडी का आत्मविश्वास लगातार मजबूत होता जा रहा है। चुनाव नजदीक आने पर विपक्षी दलों के विधायक से लेकर बड़े नेता तक जिस तरह से उनसे संपर्क साध रहे हैं उससे भी अपने दल के भविष्य को लेकर वह कुछ-कुछ आश्वस्त से हैं। बाबूलाल मरांडी का मोरल हाई होने का दूसरा बड़ा कारण उनकी साफ सुथरी छवि और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर हासिल होनेवाले अनुभव हंै।

    न टूटे और न झुके बाबूलाल
    वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में आठ विधायकों को जीत का स्वाद चखाने वाले बाबूलाल मरांडी को भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले ही तोड़ने की कोशिश की। उनके पांच कद्दावर विधायकों-नेताओं को भाजपा ने चुनाव से पहले अपने दल में शामिल करा लिया। बाद में उनके छह विधायकों को भी भाजपा ने अपने दल में मिला लिया। इसके बावजूद बाबूलाल न टूटे और न झुके। उन्होंने विधायकों के पाला बदनले को दल बदल के तहत चुनौती दी।
    इस प्रक्रिया में उन्हें कानूनी तौर पर जीत तो हासिल नहीं हुई, पर उन विधायकों के खिलाफ क्षेत्र में जनता के बीच गलत मैसेज जरूर गया है। बाबूलाल इसलिए नहीं टूटे, क्योंकि नैतिकता की अपनी राह में वे अडिग थे और जनता भी उनके इस संघर्ष से वाकिफ हो गयी। सत्य की राह में उन्हें विपरीत परिस्थितियों में भी अपने खास सिपहसालार प्रदीप यादव से किनारा करना पड़ा तो यह काम भी उन्होंने बखूबी किया। उन्होंने जैसे ही प्रदीप यादव पर यौन शोषण का आरोप लगा, पार्टी से किनारा कर दिया और इस बार उन्हें यह संदेश भी दे दिया है कि बेदागा होने तक झाविमो प्रदीप यादव को टिकट नहीं देगा, वह चाहें तो अपनी पत्नी को लड़ा सकते हैं। दरअसल बाबूलाल मरांडी यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए सब कुछ है। वह यह भी जानते हैं कि कुछ भी तभी होसिल होता है, जब हासिल करने का माद्दा हो।

    झामुमो का प्रभाव कम हुआ लगता है
    झारखंड में बीते विधानसभा चुनावों में 19 सीटों पर जीत हासिल करने में झामुमो भले ही सफल रहा हो पर उसके नेता हेमंत सोरेन दुमका से चुनाव हार गये। बरहेट सीट ने उन्हें जीत तो दिलायी पर यह संकेत दे दिया कि अपने गढ़ दुमका में उनका जनाधार कहीं न कहीं खिसका है। पिछले लोकसभा चुनाव में दुमका से शिबू सोरेन की हार ने झामुमो के खिसकते जनाधार पर मुहर लगा दी। इसी तरह सिंहभूम में लोकसभा चुनाव के दौरान झामुमो विधायकों के विरोध के बावजूद कांग्रेस की उम्मीदवार गीता कोड़ा चुनाव जीतने में सफल रहीं। इसने यह संकेत भी दिया कि झामुमो विधायकों का विरोध भी ऐसी निर्णायक परिस्थितियां उत्पन्न नहीं कर पा रहा है, जिससे किसी की हार या जीत तय होती हो। और जब ऐसा हो रहा है तो यह तय माना जाना चाहिए कि झामुमो की राजनीति की धार कहीं न कहीं कमजोर हुई है और हेमंत सोरेन को इस धार को पजा कर तेज करने की जरुरत है।

    झारखंड की राजनीति से खारिज नहीं किये जा सकते बाबूलाल
    झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि अब जबकि झारखंड में चुनाव नजदीक है और महागठबंधन आकार नहीं ले पाया है तो जनता विपक्ष को अलग-अलग धड़ों में देख रही है और उस पलड़े में कांग्रेस और झामुमो से बाबूलाल मरांडी की झाविमो जरा भी कमतर नहीं दिख रही। नेतृत्व क्षमता के मामले में बाबूलाल मरांडी का व्यक्तित्व विपक्ष में सबसे बड़ा है, हालांकि झामुमो के पास विधायकों का संख्या बल है, तो झारखंड की जनता आज भी बाबूलाल के ढाई वर्षों के उल्लेखनीय कार्य को भूल नहीं पायी है जो उन्होंने झारखंड के पहले सीएम के तौर पर किया था। दूसरी प्रमुख बात यह है कि बाबूलाल मरांडी झारखंड के विकास की एक सुस्पष्ट सोच रखते हैं और उसी उसी कुशलता के साथ इंप्लीमेंट करने की काबिलियत भी रखते हैं।
    झारखंड की सत्तारूढ़ भाजपा को भी बाबूलाल मरांडी की इस खूबी का एहसास है और यही वजह है कि भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को ही वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में तोड़ने की भरपूर कोशिश की पर बाबूलाल मरांडी अडिग रहे। एक कुशल निर्माणकर्ता की तरह वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि नया नेतृत्व कैसे तैयार करना है। दूसरे दल उनके विधायकों को तोड़कर ले जा सकते हैं पर विधायक पैदा करने और नये खून को जिता कर पार्टी को मजबूत करने की जो कला बाबूलाल मरांडी जानते हैं, उसका किसी दल के पास कोई तोड़ नहीं है। धुर्वा के प्रभात तारा मैदान में आयोजित जन समागम में उन्होंने चालीस हजार की भीड़ जुटाकर जैसे खुद को संजीवनी दे दी। इसके बाद से बाबूलाल मरांडी की बॉडी लैंग्वेज बदल गयी। जनता से चुनाव से पहले कनेक्ट होने की उनकी जरूरत उनकी सोशल मीडिया टीम ने पूरी कर दी। बीते दो-तीन महीने में बाबूलाल की सोशल मीडिया टीम ने उन्हें मतदाताओं तक पहुंचा दिया है। वे अति उत्साही हैं और हर दिन राजनीतिक कदम को तेज कर रहे हैं। चुनाव में वह कहां खड़ा होंगे, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि उन्हें नजरंदाज कतई नहीं किया जा सकता।

    What will happen to the grand alliance of opposition without Babulal
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleदिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता का स्तर बेहद खराब
    Next Article जेल में बंद बलिया पाहन निर्दोष है, पर पुलिस छोड़े कैसे
    azad sipahi desk

      Related Posts

      झारखंड में आदिवासी लड़कियों के साथ छेड़छाड़, बाबूलाल ने उठाए सवाल

      June 7, 2025

      पूर्व मुख्यमंत्री ने दुमका में राज्य सरकार पर साधा निशाना, झारखंड को नागालैंड-मिजोरम बनने में देर नहीं : रघुवर दास

      June 7, 2025

      गुरुजी से गुरूर, हेमंत से हिम्मत, बसंत से बहार- झामुमो के पोस्टर में दिखी नयी ऊर्जा

      June 7, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • झारखंड में आदिवासी लड़कियों के साथ छेड़छाड़, बाबूलाल ने उठाए सवाल
      • पूर्व मुख्यमंत्री ने दुमका में राज्य सरकार पर साधा निशाना, झारखंड को नागालैंड-मिजोरम बनने में देर नहीं : रघुवर दास
      • गुरुजी से गुरूर, हेमंत से हिम्मत, बसंत से बहार- झामुमो के पोस्टर में दिखी नयी ऊर्जा
      • अब गरीब कैदियों को केंद्रीय कोष से जमानत या रिहाई पाने में मिलेगी मदद
      • विकसित खेती और समृद्ध किसान ही हमारा संकल्प : शिवराज सिंह
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version