नई दिल्ली: भारत में पिंक बॉल से खेले जाने वाले पहले डे-नाइट टेस्ट मैच का मंच पूरी तरह से सज चुका है। प्लेयर्स अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। लेकिन असली पेच टीम कॉमिबिनेशन के लेकर फंस सकता है, जहां दोनों टीमों को बोलिंग अटैक में पेस और स्पिन के बीच संतुलन बनाने के लिए जूझना पड़ सकता है। जसप्रीत बुमराह की अनुपस्थिति में भी भारतीय पेस अटैक उतनी ही घातक नजर आ रही है। लेकिन 22 नवंबर से होने वाले इस मैच के लिए ईडन गार्डंस की स्पिन फ्रेंडली पिच पर टीम इंडिया कितने पेसर्स के साथ उतरेगी यह देखना दिलचस्प होगा।
लाइन-लेंथ पर देना होगा जोर
इंदौर में खेले गए पहले टेस्ट में भारतीय टीम तीन पेसर्स और दो स्पिनर के पारंपरिक कॉम्बिनेशन के साथ उतरी थी। लेकिन वहां पेसर्स ने ही सारा जिम्मा उठा लिया और स्पिनर्स की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ी। पिंक बॉल कितना टर्न होती है या फिर फ्लड लाइट्स में कितना टर्न लेगी अभी इस पर सस्पेंश बना हुआ है। घरेलू क्रिकेट में पिंक बॉल से कई मैच खेल चुके स्पिनर झारखंड के स्पिनर शहबाज नदीम की माने तो पिंक बॉल से बोलिंग के वक्त स्पिनर को टर्न से ज्यादा लाइन और लेंथ पर ज्यादा निर्भर रहना होगा।
स्पिनर्स को फायदा
नदीम के अनुसार पिंक बॉल टप्पा खाने के बाद ज्यादा हरकत नहीं करती है ऐसे में एक लाइन पकड़ कर बोलिंग करने पर ही स्पिनर्स को कुछ फायदा हो सकता है। वहीं जम्मू-कश्मीर के अनुभवी स्पिनर परवेज रसूल की माने तो नई बॉल से स्पिनर कुछ टर्न हासिल कर सकते हैं, लेकिन 15-20 ओवर बाद ही स्पिनर्स उससे कोई फायदा नहीं उठा सकते जबतक कि पिच से उन्हें मदद न मिले। रसूल ने बताया कि रेड बॉल से पिंक बॉल की तुलना नहीं की जा सकती, चाहे पिच से कितनी भी मदद क्यों न मिले। ग्रिप का फर्क है और यही फर्क बड़ा अंतर पैदा करता है।