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    पहले चरण का चुनाव, यानी कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 27, 2019No Comments5 Mins Read
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    राजनीतिक पंडित भी हैं परेशान, नहीं हो पा रहा आकलन

    पलामू के प्रमंडलीय मुख्यालय डाल्टनगंज की हृदयस्थली कहे जानेवाले छहमुहान पर सोमवार की शाम लोगों के एक समूह के बीच प्रधानमंत्री की चुनावी सभा की चर्चा चल रही थी। चर्चा के बीच में ही एक नौजवान बोल पड़ा, पीएम की सभा में लोग तो बहुत आये, लेकिन 30 तारीख को होगा क्या। उस नौजवान का सवाल खत्म होते ही चर्चा करनेवाले चुप हो गये। किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था। पहले चरण में जिन 13 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से नौ पलामू प्रमंडल में हैं। पिछले चुनाव में इनमें से चार सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था, जबकि विपक्ष के टिकट पर जीते दो विधायक बाद में पाला बदल कर भाजपा में आ गये। लोकसभा के पिछले चुनाव में इन 13 सीटों में से 12 पर भाजपा को बढ़त हासिल हुई थी।

    कई चुनौतियां हैं दोनों पक्षों के सामने
    इतना शानदार ट्रैक रिकॉर्ड होने के बावजूद भाजपा के सामने कम से कम चार ऐसी सीटों पर खुद को स्थापित करने की चुनौती है, जहां उसका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। इनमें लोहरदगा, डालटनगंज, भवनाथपुर और पांकी हैं। लोहरदगा हमेशा से आजसू का गढ़ रहा है। पिछले चुनाव में भी वहां से आजसू के कमल किशोर भगत जीते थे, लेकिन अदालती आदेश के कारण उनकी विधायकी चली गयी और तब उपचुनाव में कांग्रेस के सुखदेव भगत जीते। यानी लोहरदगा लंबे समय से आजसू और कांग्रेस के बीच मुकाबले का गवाह बनता रहा है। इस बार स्थिति एकदम अलग है। सुखदेव भगत भाजपा के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं और कांग्रेस के डॉ रामेश्वर उरांव के साथ आजसू की नीरू शांति भगत से मुकाबला कर रहे हैं। उनके सामने अपनी सीट बचाने के साथ-साथ लोहरदगा में भाजपा को स्थापित करने की चुनौती है। इस दोहरी चुनौती से वह कैसे निपटेंगे, यही बात राजनीतिक पंडितों को समझ में नहीं आ रही है। सुखदेव भगत के सामने एक और चुनौती यह है कि उन्हें भाजपा-आजसू के मतों के बिखराव के साथ अपने मतों को छिटकने से रोकना होगा। राजनीतिक दृष्टि से कहें, तो इसे इधर कुआं, उधर खाई कहा जा सकता है।
    लगभग यही हालत भवनाथपुर में भानु प्रताप शाही की भी है। निस्संदेह वह एक लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि उन्होंने अब तक जो भी चुनाव लड़ा, वह भाजपा विरोध के नाम पर था, यानी उन्हें विपक्ष का चेहरा माना जाता रहा। यह पहला मौका है, जब वह सत्ताधारी पार्टी की ओर से मैदान में उतरे हैं। उनके इस नये अवतार को उस इलाके के लोग, जहां अब तक भाजपा के पास कुछ भी नहीं था, कितना पचा पाते हैं, यह अब तक साफ नहीं हो सका है। भानु को जहां अपनी लोकप्रियता साबित करनी है, वहीं बिहार-यूपी से सटे इस इलाके में भाजपा को भी स्थापित करना है। साथ ही रंका राज के अनंत प्रताप देव के अलावा अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से दो-दो हाथ करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है।
    डाल्टनगंज में भाजपा के उम्मीदवार आलोक चौरसिया के सामने भी राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील इस क्षेत्र में भाजपा को दोबारा स्थापित करने के साथ-साथ अपनी सीट बचाने की चुनौती है। डाल्टनगंज में इंदर सिंह नामधारी के बाद से भाजपा लगातार कमजोर होती गयी। यही कारण था कि पिछले चुनाव में आलोक चौरसिया झाविमो के टिकट पर उतरे और जीत भी हासिल कर ली। हालांकि जीतने के फौरन बाद ही वह भाजपा में आ गये। इस बार वह ऐसे चक्रव्यूह में फंसे हैं, जिससे निकलना उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। उनके सामने दिग्गज कांग्रेसी केएन त्रिपाठी तो हैं ही, साथ में झाविमो के डॉ राहुल अग्रवाल हैं, जिन्होंने व्यवसायियों का समर्थन मिलने का दावा किया है।
    इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चौरसिया को उनका स्वजातीय वोट जरूर मिलेगा, लेकिन जो वोट पिछली बार झाविमो प्रत्याशी के रूप में उन्हें मिला था, उसे सहेजे रखना उनके लिए बड़ी चुनौती है। उधर झाविमो के सामने सीट बरकरार रखने की चुनौती है, तो कांग्रेस अपनी वापसी के लिए प्राण-प्रण से लगी हुई है।
    जहां तक पांकी सीट का सवाल है, तो पिछले तीन दशकों से कांग्रेस के कब्जे में रही यह सीट कभी भाजपा के पास नहीं आयी। यही कारण है कि बेहद कम अंतर से पिछड़नेवाले इलाके के कद्दावर नेता शशिभूषण मेहता को इस बार उसने उतारा है। मेहता के सामने जहां पांकी में विदेश सिंह की विरासत को तोड़ने और देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह के प्रभाव को खत्म करने की चुनौती है, वहीं भाजपा को स्थापित करने के साथ विधायक बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरा करने और भाजपा के भरोसे को कायम रखने का चैलेंज है। इसके विपरीत कांग्रेस को अपना गढ़ बचाना है। इस परिदृश्य में केवल इतना ही साफ हो सका है कि मुकाबला रोमांचक और दिलचस्प है। क्या होगा, कौन जीतेगा और किसे मायूसी हाथ लगेगी, कम से कम पहले चरण के लिए कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।

    First phase election ie Confusion itself Confusion
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