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    Home»Top Story»मुसलिम-आदिवासियों के बीच बढ़ रहा है आजसू का दायरा
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    मुसलिम-आदिवासियों के बीच बढ़ रहा है आजसू का दायरा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 20, 2019No Comments7 Mins Read
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    किसी पार्टी की रीढ़ उसके नेता और कार्यकर्ता ही होते हैं। ऐसे में जिस पार्टी में जितने अधिक और जितने समर्पित नेता और कार्यकर्ता होंगे, वह पार्टी उतनी ही मजबूत होने की दिशा में बढ़ चलेगी। झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सर्वस्पर्शी पार्टी बनने की दिशा में जितनी तेजी से भाजपा बढ़ी है, कमोबेश आजसू पार्टी ने भी उसी तरह से झारखंड में अपने पैर फैलाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस कवायद में पार्टी की राजनीति का फलक तो बड़ा हो ही रहा है, पार्टी नये इलाकों में पैठ बनाने में भी सफल हो रही है। इस विधानसभा चुनाव ंमें आजसू ऐसी पार्टी है, जिसमें दूसरे दलों के सबसे ज्यादा नेता शामिल हुए हैं। आजसू ने भी उनका दिल खोलकर और बाहें फैलाकर स्वागत किया है। खास तौर पर पलामू और संथाल परगना में पार्टी कद्दावर और जनाधार वाले नेताओं के बूते अब जोरदार उपस्थिति दर्ज कराने की स्थिति में है। झारखंड में आजसू की विस्तारवादी रणनीति और इस रणनीति को खामोशी से पर्दे के पीछे से अंजाम देने में लगा आजसू बुद्धिजीवी मंच की पार्टी को विस्तार देने की रणनीति का खुलासा करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    यह महज संयोग नहीं, बल्कि आजसू की सुविचारित रणनीति का परिणाम है कि आदिवासी और मुसलिम नेता पार्टी के साथ लगातार जुड़े रहे हैं। फिर चाहे वह पाकुड़ के विधायक रह चुके और इसी सीट से पार्टी के प्रत्याशी अकील अख्तर हों या रांची में डिप्टी मेयर का चुनाव लड़ चुके झामुमो के चुन्नू खान। इसके अलावा कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रह चुके प्रदीप बलमुचू ने जब कांग्रेस को छोड़कर अपना नया ठिकाना ढूंढ़ा तो उन्हें बेहतर विकल्प के रूप में आजसू से बेहतर कोई दूसरी पार्टी नहीं दिखी। रांची की वर्षा गाड़ी भी आजसू का दामन थाम चुकी हैं और भाजपा से गठबंधन के बाद भी अपनी अलग राह पर चलती हुई आजसू ने 27 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिये हैं। पार्टी में शालिनी गुप्ता और बुलू रानी सिंह भी आ चुकी हैं और इनके आने से आजसू को नयी राजनीतिक आभा और सर्वस्पर्शी पार्टी का चेहरा मिला है। आबो देवी और उनके बेटे के साथ राजद की पूरी कमेटी के आजसू में समाहित हो जाने से भी पार्टी का आकार बड़ा हुआ है। छतरपुर के भाजपा विधायक राधाकृष्ण किशोर और हुसैनाबाद के विधायक कुशवाहा शिवपूजन मेहता ने आजसू का दामन थाम कर पहले ही उसका वजन बढ़ाया है। झारखंड में आजसू यदि तेजी से छाती जा रही है तो इसके पीछे सुदेश महतो की सुस्पष्ट नीति और पार्टी का थिंक टैंक माना जानेवाला आजसू बुद्धिजीवी मंच है, जिसे स्व. बीके चांद जैसे बुद्धिजीवी नेतृत्व दे चुके हैं। अब डोमन साहू इस मंच के मुखिया हैं। यह मंच पार्टी के लिए न सिर्फ नीतियां बनाता है, बल्कि वे कैसे इंप्लीमेंट की जायें, इसका भी ब्लू प्रिंट बनाकर बताता है। आजसू की बिरसा आहार योजना और पेंशन प्लान के पीछे भी इसी का दिमाग काम कर रहा है और पार्टी को सबके लिए ओपन बनाने का प्लान भी इसी का है।

    आजसू बदल रही है
    एक समय था, जब आजसू को कुर्मियों की पार्टी का पर्याय बताया जाता था, पर हाल के दिनों में पार्टी ने अपने राजनीतिक क्षितिज का विस्तार किया है। अब यह किसी भी जाति और धर्म या पंथ के नेता या कार्यकर्ता की पसंद बनती जा रही है। इस नीति से पार्टी को असीमित विस्तार की क्षमता मिलती है, क्योंकि इसमें सबके लिए स्थान है और जिसमें सबके लिए स्थान होगा, वह पार्टी सर्वस्पर्शी बनकर रहेगी। यह आजसू पार्टी की थिंक टैंक यानी बुद्धिजीवी मोर्चा का ही प्लान था कि पार्टी को बिरसा हो या विनोद बिहारी महतो या फिर झारखंडी माटी का अन्य कोई महापुरुष सबके विचारों को जगह मिले और उनकी ऊर्जा से पार्टी नयी ऊंचाइयों को छू सके। अबकी बार गांव की सरकार का आजसू का नारा भी पार्टी के इसी थिंक टैंक की उपज है और स्वाभिमान जगाओ यात्रा का कांसेप्ट भी। इससे साफ है कि आजसू पार्टी झारखंड और झारखंडी मानस के अनुरूप नीतियां बनाने के लिए गंभीरता से जुटी हुई है और उसका फायदा आजसू को मिल भी रहा है। पार्टी में कद्दावर नेताओं का आना यह संकेत है कि पार्टी झारखंड में अपनी ताकत का परचम लहराने की दिशा में बढ़ चुकी है। पार्टी ने बसपा के विधायक रहे कुशवाहा शिवपूजन मेहता को पार्टी में शामिल कराकर हुसैनाबाद में न सिर्फ अपनी पकड़ मजबूत कर ली है, बल्कि राधाकृष्ण किशोर को अपने पाले में लाकर छतरपुर में भी अपनी राजनीति की जमीन पुख्ता कर ली है।

    राजनीति का फलक बड़ा करते हुए नये इलाकों में पैठ बनाने में जुटी है आजसू
    सुदेश महतो के नेतृत्व वाली आजसू पार्टी अपनी राजनीति का फलक बड़ा करते हुए नये इलाकों में पैठ बनाने में जुटी हुई है। झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि नये नेताओं खासकर आदिवासी और मुसलमान नेताओं के आने से पार्टी को कई विधानसभा क्षेत्रों में विनिंग कांबीनेशन बनाने में मदद मिलेगी। पाकुड़ में पार्टी को जहां अकील अख्तर के रूप में एक मजबूत अल्पसंख्यक चेहरा मिल गया है, वहीं हुसैनाबाद और छतरपुर में अनुभवी नेता मिल गये हैं। इनसे वर्तमान के साथ भविष्य में भी आजसू को अपना विस्तार करने में मदद मिलेगी। आजसू झारखंड नामधारी पार्टी है। इसके अलावा इसकी छवि आंदोलनकारी पार्टी के रूप में रही है। नये नेताओं के आने से पार्टी हर स्तर पर मजबूत हो रही है। पार्टी की कोशिश है कि जिनकी भी सार्वजनिक पहचान है उन पर दांव लगाने के लिए आजसू तैयार है। कुल मिलाकर आजसू झारखंड में भविष्य की राजनीति कर रही है। इसने कुर्मियों की पार्टी का अपना परंपरागत फ्रेम तोड़ दिया है और झारखंड में कुछ खास पॉकेट से बाहर निकलती हुई यह बड़े राजनीतिक फलक की पार्टी बन रही है।

    पार्टी को नेतृत्व की ताकत देने में आजसू बुद्धिजीवी मंच की अग्रणी भूमिका
    झारखंड में आजसू पार्टी विचारधारा और नेतृत्व की ताकत से लगातार मजबूत हो रही है, तो इसके पीछे आजसू बुद्धिजीवी मंच की अग्रणी भूमिका है। पार्टी का थिंक टैंक यही मंच है। लंबे समय तक इस मंच की कमान रिटायर्ड आइएएस अधिकारी बीके चांद ने संभाली। उनके निधन के बाद पार्टी ने इस मंच की कमान डोमन सिंह मुंडा को सौंप दी। डोमन सिंह मुंडा लंबे प्रशासनिक अनुभव से लैस अधिकारी रहे हैं। उनके आने के बाद पार्टी सर्वस्पर्शी आकार लेने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इसके अलावा इस मंच में जेएन सिंह, यूसी मेहता, मुकुंद मेहता, शिवशंकर प्रसाद, रत्नेश गुप्ता, वायलेट कच्छप, लंबोदर महतो, हसन अंसारी, डॉ देवशरण भगत और अन्य बुद्धिजीवियों की अहम भूमिका है। पार्टी में अकील अख्तर और चुन्नू खान जैसे नेता आ रहे हैं तो इन्हें लाने में हसन अंसारी की अहम भूमिका है।

    नये नेताओं के आने का असर
    आजसू पार्टी झारखंड की राजनीति में निर्णायक भूमिका में आने के लिए जनाधार वाले नेताओं को पार्टी में शामिल कराने में जुटी हुई है। आजसू झारखंड नामधारी पार्टी होने के बाद भी कॉरपोरेट आफिस के साथ अपने काम करने का तरीका भी पेशेवराना रखे हुए है। झारखंड में ओबीसी समुदाय की आबादी करीब कुल जनसंख्या का 22 फीसदी है। वहीं झारखंड में 52 लाख मुसलमान, दस लाख दलित और 62 लाख आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। जो पार्टी इनको साधने में सफल हो जायेगी, उसे झारखंड की राजनीति में निर्णायक भूमिका में आने में देर नहीं लगेगी। आजसू पार्टी यही मुकाम हासिल करना चाहती है और यही वजह है कि पार्टी नये नेताओं को खुद में समाहित कर न सिर्फ खुद को विस्तार दे रही है, बल्कि उन्हें भी आश्रय दे रही है, जिन्हें आजसू अपना मुफीद ठिकाना लगता है।

    The scope of AJSU is increasing among Muslims and tribals
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