वह 24 मार्च का दिन था, जब झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के आवास पर झामुमो, कांग्रेस और झाविमो नेताओं ने साथ मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। इससे पहले नौ मार्च को भाजपा और आजसू के बीच तालमेल पर अमित शाह और सुदेश महतो ने मुहर लगायी थी। लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की ओर से यह ऐलान भी किया गया था कि झारखंड विधानसभा का चुनाव भी एकजुट होकर लड़ा जायेगा, अर्थात मुकाबला सीधा होगा।लेकिन विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही विपक्ष की एकजुटता तार-तार हो गयी है और उधर भाजपा-आजसू के मुकाबले के लिए अब विपक्ष के दो ध्रुव तैयार हो गये हैं। झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच जहां सीट शेयरिंग पर माथापच्ची कर रहे हैं, वहीं झाविमो ने महागठबंधन के चैप्टर को ही क्लोज करार दे दिया है। इस तरह राज्य में अब त्रिकोणीय मुकाबले की जमीन तैयार हो गयी है।
तय है भाजपा-आजसू का तालमेल
बात शुरू करते हैं सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के तालमेल की। झारखंड बनने के बाद से ही ये दोनों दल एक-दूसरे के सहयोगी की भूमिका में रहे हैं, चाहे चुनाव से पूर्व हो या चुनाव के बाद। इन दोनों दलों के बीच का तालमेल तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद जारी है और इस बार भी लगभग तय है कि ये दोनों दल साथ मिल कर ही चुनाव मैदान में उतरेंगे। हालांकि राजनीतिक हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि दोनों के बीच कुछ सीटों पर पेंच फंस सकता है। खास कर चंदनकियारी, पाकुड़, लोहरदगा और हुसैनाबाद ऐसी सीटें हैं, जहां से ये दोनों दल दावेदारी कर रहे हैं। चंदनकियारी से पिछली बार झाविमो के टिकट पर अमर बाउरी जीते थे। उन्होंने आजसू के उमाकांत रजक को हराया था। चुनाव जीतने के बाद बाउरी भाजपा में शामिल हो गये। रजक पूरे पांच साल क्षेत्र में काम करते रहे। अब भाजपा इसे अपनी सीटिंग सीट मान रही है, जबकि आजसू का कहना है कि रजक को यदि टिकट से वंचित किया गया, तो वह अलग रास्ता भी नाप सकते हैं।
यही स्थिति लोहरदगा में है। कांग्रेस के टिकट पर जीते सुखदेव भगत अब भाजपा में आ गये हैं, जबकि आजसू हर कीमत पर यह सीट अपने पास रखना चाहती है। भाजपा और आजसू के बीच सबसे अच्छी बात यह है कि दोनों दलों के नेता एक-दूसरे की जरूरत समझते हैं और वे वक्त के हिसाब से एडजस्ट करने के लिए तैयार हैं।
दूसरे कोण की हालत खराब
चुनावी अखाड़े के दूसरे कोण, यानी झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच सीट शेयरिंग अब तक तय नहीं हुआ है। झामुमो ने जहां 41 से अधिक सीटों की मांग रखी है, वहीं कांग्रेस 35 से कम सीटों पर तैयार होगी, इसकी संभावना कम है। राजद ने राज्य की 15 सीटों पर दावा ठोंका है। यदि इन तीनों दलों की दावेदारी को जोड़ दिया जाये, तो संख्या 91 होती है, जो विधानसभा की कुल सीटों से अधिक है। यह हाल तब है, जब झाविमो ने अलग राह अख्तियार कर ली है। ऐसे में ये तीनों दल कैसे सीटों का बंटवारा करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
किस्मत खुलने के इंतजार में झाविमो
झारखंड के चुनावी अखाड़े को त्रिकोणीय बनानेवाले झारखंड विकास मोर्चा अपनी चुनावी किस्मत खुलने के इंतजार में है। पिछले चुनाव में उसके आठ विधायक चुने गये थे, हालांकि इसके सात विधायक अब भाजपा में चले आये हैं। झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने विपक्षी गठबंधन के चैप्टर को क्लोज करार देकर साफ कर दिया है कि वह इस बार अपनी राजनीतिक ताकत के सटीक आकलन के लिए तैयार हैं। सभी 81 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के लिए वह रायशुमारी कर चुके हैं और अगले पांच दिन में सूची तैयार हो जाने की संभावना है। लोकसभा चुनाव में बुरी तरह विफल रहने के बाद यह बाबूलाल मरांडी की राजनीतिक इच्छाशक्ति ही है कि वह अकेले दम पर पूरे राज्य में चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गये हैं। यह तो हुई मुख्य मुकाबले की तसवीर, लेकिन हकीकत यह भी है कि इस मुकाबले में वामपंथी भी उतरेंगे। हालांकि दो-तीन सीटों पर ही वे असर डालने में सक्षम हैं, लेकिन चुनाव मैदान में उनकी मौजूदगी ही मुकाबले को चौकोर बना सकती है। इस तसवीर का एक संकेत यह भी है कि राज्य की एक दर्जन से अधिक सीटों पर झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच मुकाबला हो सकता है। इन सीटों में सिमडेगा, कोलेबिरा, खूंटी, तोरपा, चाईबासा, जगन्नाथपुर, डाल्टनगंज, गढ़वा, तमाड़, गांडेय और बोकारो शामिल हैं। ये ऐसी सीटें हैं, जिन पर गठबंधन के कम से कम दो घटकों की दावेदारी है। कुल मिला कर स्थिति किसी के लिए भी एकतरफा नहीं है। सत्ताधारी भाजपा और आजसू के लिए जहां सत्ता में वापसी के लिए अपने बीच के हरेक मतभेद को स्थायी रूप से दूर करने की जरूरत है, ताकि एकजुट होकर वह विपक्ष का मुकाबला कर सके।
यदि ऐसा नहीं हुआ, तो 65 प्लस का लक्ष्य दूर होता जायेगा। दूसरी तरफ विपक्षी दलों को भी तालमेल को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिये जाने की जरूरत है, ताकि चुनावी मैदान में मुकाबले के लिए ताकत बची रह सके।